पुराणों से जानें, किस तरह से व्यक्ति होता है शुद्ध-अशुद्ध

Edited By ,Updated: 13 Jul, 2016 11:26 AM

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* शय्या, आसन, सवारी, स्त्री, बालक, वृद्ध, वस्त्र, यज्ञोपवीत और कमंडल ये वस्तुएं अपनी हों तभी अपने लिए शुद्ध होती हैं। ये वस्तुएं दूसरों की हों

 * शय्या, आसन, सवारी, स्त्री, बालक, वृद्ध, वस्त्र, यज्ञोपवीत और कमंडल ये वस्तुएं अपनी हों तभी अपने लिए शुद्ध होती हैं। ये वस्तुएं दूसरों की हों तो अपने लिए शुद्ध नहीं होतीं। (बृहत्पराशरस्मृति 8/304)

 
 * नाभि से ऊपर की इंद्रियां स्पर्श में शुद्ध हैं परन्तु नाभि के नीचे की इंद्रियां अशुद्ध हैं। (मनुस्मृति 5/132)
 
 
 * बहुत से इकट्ठे हुए पदार्थों में से एक के अशुद्ध होने से केवल वह एक ही अशुद्ध होता है, अन्य नहीं। (अत्रिसंहिता 242)
 
 
 * कहीं से आया हुआ मनुष्य अपने दोनों पैर धोए बिना शुद्ध नहीं होता (पद्यपुराण)
 
 
 * ऊन, कपास, गोंद, गुड़ और नमक की शुद्धि धूप में तपाने से होती है। (अग्रिपुराण 146/5)
 
 
 * झाडऩा, लीपना, सींचना, खोदना और गायों को ठहराना इन पांच प्रकार से भूमि की शुद्धि होती है। (बौधायनधर्मसूत्र 1/6/9/11)
 
 
 * कांसे और लोहे का पात्र राख से और तांबे का पात्र खटाई से शुद्ध होता है। (वसिष्ठस्मृति 3/54)
 
 
 * अपिवत्र स्थान में उत्पन्न हुए वृक्षों के फल-फूल दूषित नहीं होते। (बौधायनस्मृति 1/6/9/4)
 
 
 * जब तक मनुष्य में मल-मूत्र का वेग रहता है तब तक वह अशुद्ध रहता है। (वृद्धगौतमस्मृति 12/16)
 
 
 * आपत्तिकाल में शुद्धि-अशुद्धि का विचार न करें। स्वस्थ होने पर विचार करे। (पाराशस्मृति 7/42)
 

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