Edited By ,Updated: 08 Mar, 2016 11:52 AM
बहुत से लोग ग्रहण को मात्र एक खगोलीय घटना ही मानते हैं और इसमें किसी भी प्रकार की सावधानी बरतने को अंधविश्वास या दकियानूसी करार देते हैं परंतु
बहुत से लोग ग्रहण को मात्र एक खगोलीय घटना ही मानते हैं और इसमें किसी भी प्रकार की सावधानी बरतने को अंधविश्वास या दकियानूसी करार देते हैं परंतु वैज्ञानिक दृष्टि से भी ग्रहण के समय विकिरण के कारण आंखों, रक्त संचार, रक्तचाप और खाद्य पदार्थों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। भारत की हर परंपरा के पीछे वैज्ञानिक कारण हैं।
आज वैज्ञानिक सुपर कम्प्यूटर के माध्यम से ग्रहण लगने और समाप्त होने का समय बताते हैं जबकि महाभारत काल में तो हमारे वैज्ञानिक ऋषि-मुनियों एवं गणितज्ञों ने त्रिकोणमिति अर्थात ट्रिग्नोमैट्री, जो भारत की देन है, की सहायता से 5000 साल पहले ही बता दिया था कि महाभारत युद्ध के दौरान कुरुक्षेत्र में पूर्ण सूर्य ग्रहण लगेगा।
पूर्ण सूर्य ग्रहण लगने से जब भरी दोपहरी में अंधकार छा जाता है तो पक्षी भी अपने घोंसलों में लौट आते हैं अत: ग्रहण का प्रभाव हर जीव-जन्तु, मनुष्य तथा अन्य ग्रहों पर पड़ता है। गुरुत्वाकर्षण घटने या बढऩे से धरती पर भूकंप आने की संभावना ग्रहण के 41 दिन पहले या बाद तक रहती है।
इस वर्ष मुख्यत: केवल दो ग्रहण ही लगेंगे। इस वर्ष का प्रथम खग्रास सूर्य ग्रहण 9 मार्च को तथा दूसरा कंकण सूर्य ग्रहण पहली सितम्बर, वीरवार को होगा। 9 मार्च, फाल्गुन अमावस, बुधवार प्रात: 04.49 बजे सूर्य ग्रहण आरंभ होगा और 10.05 बजे समाप्त होगा। इसका सूतक 8 मार्च सायं, 16.49 बजे आरंभ होगा। भारत में यह पंजाब, कश्मीर, राजस्थान ,गुजरात व महाराष्ट्र के पश्चिमी भागों में ही दिखाई देगा।