अपने अंदर छिपे भगवान का अनुभव करने के लिए करें कुछ ऐसा

Edited By ,Updated: 24 Oct, 2015 09:28 AM

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अपने अंदर छिपे भगवान का अनुभव करने के लिए करें कुछ ऐसा चंचल मन को जीतना जरूरी इहैव तैर्जित: सर्गो येषां साम्ये स्थितं मन:। निर्दोष हि समं ब्रह्म तस्माद् ब्रह्मणि ते स्थिता:।। 5/19

चंचल मन को जीतना जरूरी

इहैव तैर्जित: सर्गो येषां साम्ये स्थितं मन:।
निर्दोष हि समं ब्रह्म तस्माद् ब्रह्मणि ते स्थिता:।। 5/19
 
अर्थात : जिनका मन समभाव में स्थित है, उनके द्वारा जीते जी ही संसार जीत लिया गया है, क्योंकि ब्रह्म निर्दोष और सबके लिए बराबर है। ऐसे में वे ब्रह्म में ही स्थित हैं।
 
साधक का लक्ष्य ब्रह्मभाव में आना और उसी में रह जाना होता है लेकिन यह स्थिति तब मिलती है जब साधक अपने मन को जीत ले। इस ब्रह्मभाव में पहुंचने में सबसे बड़ी अड़चन चंचल मन है। इसलिए मन को जीतना बेहद जरूरी है, वरना अध्यात्म की राह में रुकावट आ जाती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि चंचल मन अपना एक संसार बना लेता है और फिर इंसान उसी संसार में जीवन जीने लगता है। दुनिया में सभी अपने मन में अपने-अपने संसार बनाए रहते हैं। 
 
यदि घर में 5 लोग हैं तो सभी के मन में अपना-अपना संसार होता है। पति का अपना संसार, पत्नी का अपना और बच्चों का अपना। साधना में अपने संसार की इसी आसक्ति को छोड़कर इस पर विजय पाना होता है। ऐसा करने के लिए अपने बिखरे मन को एकाग्र करना होता है और फिर जैसे-जैसे मन थमने लगता है, वैसे-वैसे इंसान में समभाव आने लगता है। यह समता का भाव मन के भटकाव को दूर करता है। मन के वश में होने से इंसान अपने बनाए संसार पर जीत पा लेता है और फिर समभाव में रहकर भीतर तक ब्रह्म का अनुभव करने लगता है।

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