Edited By ,Updated: 06 Dec, 2016 12:59 PM
साहब आपने योजनाएं तो बनाई हैं लेकिन मुझे उनका लाभ नहीं मिला। इंतजार भी बहुत किया पर आपने ध्यान नहीं दिया।
रायपुर: साहब आपने योजनाएं तो बनाई हैं लेकिन मुझे उनका लाभ नहीं मिला। इंतजार भी बहुत किया पर आपने ध्यान नहीं दिया। क्या करें जिंदगी तो जीने का नाम है। आपने भले ही मदद न की हो, पर हमने जिंदगी के सफर पर चलने का रास्ता निकाल ही लिया। मुंह से बिना कुछ बोले टकटकी लगाए देख रही यह बच्ची शायद सरकार और उसके नुमाइंदों से यही कह रही है कि आप अपनी योजनाओं का ङ्क्षढढोरा भले ही पीटते रहो, मगर असल में जरूरतमंदों को आपकी योजनाओं का लाभ अब भी नहीं मिल पा रहा है।
छत्तीसगढ़ का गरियाबंद जिले के गोंदलाबाहरा गांव की रहने वाली आदिवासी बच्ची गीता जब महज 15 दिन की थी तब उसके घर में आग लगने से उसके दोनों पैर जल गए थे और वह अपाहिज हो गई थी। आज गीता 12 साल की हो गई है। दोनों पैरों के पंजे जल जाने के कारण उसे चलने में भारी कठिनाई होती है। बेटी के इलाज के लिए उसकी मां रामबाई और पिता देवी सिंह ने सरकार से भी मदद मांगी पर जब आश्वासन के सिवाय कुछ नहीं मिला तो उसने स्टील का गिलास काट एक जुगाड़ बना लिया।
दर्द होने के बाद भी गीता मजबूरीवश उसी गिलास को पैर की तरह इस्तेमाल करके चलती-फिरती है और स्कूल भी जाती है। यह गिलास अब उसकी जिंदगी का एक हिस्सा बन गया है। कृत्रिम पैर और आर्थिक मदद के लिए गीता के माता-पिता ने शासन से कई बार गुहार लगाई, जिला अस्पताल गए, कलैक्टर के पास गए, आवेदन दिए, फरियादें लगाईं मगर हर बार सिवाय कोरे आश्वासन के कुछ नहीं मिला।