संसद आतंकी हमले की 18वीं बरसी: दहशत के वो 45 मिनट, जिसने हिला दिया पूरा देश

Edited By Seema Sharma,Updated: 13 Dec, 2019 11:05 AM

18th anniversary of parliament terrorist attack

संसद भवन पर आतंकवादी हमले को आज 18 साल हो गए हैं लेकिन उस हमले के जख्म आज भी लोगों के दिलों-दिमाग में ताजा हैं। दहशत के वो 45 मिनट कभी भुलाए नहीं जा सकते। सफेद रंग की एंबेसेडर कार ने इन चंद मिनटों में ताबड़तोड़ गोलियों की बौछार से पूरे संसद भवन को...

नेशनल डेस्कः संसद भवन पर आतंकवादी हमले को आज 18 साल हो गए हैं लेकिन उस हमले के जख्म आज भी लोगों के दिलों-दिमाग में ताजा हैं। दहशत के वो 45 मिनट कभी भुलाए नहीं जा सकते। शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत दोनों सदनों के सांसदों ने शहीदों को श्रद्धासुमन अर्पित किए। 13 दिसंबर, 2001 को  सफेद रंग की एंबेसेडर कार ने इन चंद मिनटों में ताबड़तोड़ गोलियों की बौछार से पूरे संसद भवन को हिला कर रख दिया। टीवी पर हमले की खबर चलते ही पूरा देश सकते में आ गया। लेकिन हमारे बहादुर जवानों के हाथों आतंकियों को मुंह की खानी पड़ी। आतंकियों का सामना करते हुए दिल्ली पुलिस के पांच जवान, सीआरपीएफ की एक महिला कांस्टेबल और संसद के दो गार्ड शहीद हुए और 16 जवान इस मुठभेड़ में घायल हुए थे।

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13 दिसंबर 2001 की पूरे घटनाक्रम पर एक नजर

  • सुबह 11 बजकर 20 मिनट पर संसद में ताबूत घोटाले पर चर्चा के दौरान हंगामा हो रहा था। जिसको लेकर काफी शोर-शराबे के बाद लोकसभा और राज्यसभा दोनों सदनों की कार्रवाई को स्थगित कर दिया गया। कार्रवाई स्थगित होने के बाद कुछ सांसद बाहर धूप में आकर खड़े हो गए और बातचीत करने लगे। तत्‍कालीन गृह मंत्री लाल कृष्‍ण आडवाणी अपने कई करीबी मंत्रियों और सांसदों के साथ लोकसभा में ही मौजूद थे। जबकि तत्‍कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी और विपक्ष की नेता सोनिया गांधी लोकसभा से निकलकर अपने-अपने सरकारी आवास के लिए कूच कर चुके थे।
  • सुबह 11 बजकर 29 मिनट पर पार्लियामेंट में तैनात सिक्युरिटी ऑफिसर्स के वायरलेस पर मेसेज आया कि वाइस-प्रेजिडेंट कृष्णकांत घर जाने के लिए निकलने वाले हैं। ऐसे में उनके काफिले की गाड़ियां गेट नंबर 11 के सामने लाइन में खड़ी कर दी गईं। सुरक्षाकर्मी उपराष्‍ट्रपति के बाहर आने का इंतजार कर ही रहे थे कि तभी एक सफेद रंग की कार तेजी से सदन के अंदर दाखिल हुई। लोकसभा सुरक्षा कर्मचारी जगदीश यादव ने कार को रोकना चाहा लेकिन वो तेजी से आई। जगदीश यादव कार के पीछे भागा। जगदीश को कार के पीछे यूं बेतहाशा भागते देख उप राष्‍ट्रपति के सुरक्षा में तैनात एएसआई राव, नामक चंद और श्‍याम सिंह भी उस कार को रोकने के लिए उसकी तरफ झपटे। सुरक्षाकर्मियों को अपनी ओर आते देख कार का चालक ने फौरन कार को गेट नंबर 1 की तरफ मोड़ दिया जहां उप राष्‍ट्रपति की कार खड़ी थी। तेज रफ्तार और मोड़ के चलते कार चालक का कार पर नियंत्रण नहीं रहा और सीधे उप राष्‍ट्रपति की कार से जा टकराई।
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  • (संसद का गेट नंबर 1)-11 बजकर 40 मिनट इस टक्‍कर के बाद कोई सुरक्षाकर्मी कुछ समझ पाता, कार के चारों दरवाजे खुले और गाड़ी में बैठे पांचों आतंकी बाहर निकले और अंधाधुध फायरिंग शुरू कर दी। पांचों आतंकी एके-47 लिए हुए थे। ऐसा पहली बार हुआ था कि आतंकी लोकतंत्र की दहलीज पार कर अंदर घुस गए थे।
  • आतंकियों की गोली का शिकार सबसे पहले वह चार सुरक्षाकर्मी बने जो उनकी कार रोकने की कोशिश कर रहे थे। तभी एक आतंकी संसद भवन के गेट नंबर 1 की तरफ भागा लेकिन वह सदन के अंदर जा पाता इससे पहले ही सुरक्षाकर्मियों ने उसे घेर लिया और मार गिराया।
  • एक आतंकी गेट नंबर 6 की तरफ गया लेकिन वहां भी सुरक्षाकर्मियों ने उसे घेर लिया। सुरक्षाकर्मियों ने जैसे ही उसे चारों ओर घेरा उसने खुद को ही उड़ा लिया। इतनी देर में संसद के सारे गेट बंद कर दिए गए ताकि आतंकी बाहर न भाग सकें।
  • आतंकी हमले की सूचना सेना और एनएसजी कमांडो को दी गई थी। इतनी देर में साथ ही दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल ने भी मोर्चा संभाल लिया था।
  • कमांडो और सेना के आने की खबर सुन आतंकी डर गए और उनके आने से पहले अपने मिशन को पूरा करने के लिए गेट नंबर 9 से संसद में घुसने की फिर से कोशिश की लेकिन एक बार फिर से भारतीय जाबांज सेना के आगे आतंकी ढेर हो गए।
  • आतंकी पूरी तैयारी के साथ खुद को बारूद के साथ पूरा ढक कर लाए थे, उनके पीठ पर काले बैग थे। दोपहर के 12 बजकर 10 मिनट (संसद का गेट नंबर 9) इस समय तक पूरा ऑपरेशन गेट नंबर 9 पर सिमट चुका था। बीच-बीच में आतंकी सुरक्षा‍कर्मियों पर हथगोले भी फेंक रहे थे। आतंकी चारों तरफ से घिर चुके थे और उनके बचने की कोई उम्‍मीद थी। ऐसे में अन्य तीन आतंकियों को भी सुरक्षाबलों ने गेट नंबर 9 पर मार गिराया।

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45 मिनट चला पूरा ऑप्रेशन
सुरक्षाबलों ने 45 मिनट में आतंकियों को ढेर कर दिया लेकिन उसके बाद भी संसद भवन से रुक-रुक कर गोलियां चलने की आवाज आ रही थी। दरअसल आतंकियों के चारों तरफ फैलने की वजह से जगह-जगह ग्रेनेड गिरे हुए थे और वह थोड़ी-थोडी देर में ब्‍लॉस्‍ट कर रहे थे। थोड़े ही समय में बम निरोधक दस्‍ते ने बम को निष्‍क्रिय किया और संसद अब पूरी तरह सुरक्षित था।

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सेना की वर्दी में हुए दाखिल
आतंकियों ने सेना की वर्दी पहन रखी थी इसलिए पहले तो किसी ने उन्हें नहीं रोका लेकिन जब संसद के गेट के अंदर दाखिल हुए तो कार की स्पीड से एएसआई जीतराम को शक हुआ। उन्होंने कार रुकवाकर गाड़ी के ड्राइवर से बाहर आने को कहा लेकिन उसने कहा कि हट जाओ वरना गोली मार देंगे। इस पर वे समझ गए कि ये सेना के जवान नहीं हैं। यह सब जगदीश ने देख लिया और उसने फर्ती से सभी गेट बंद करने का मैसेज कर दिया और सभी को अलर्ट कर दिया। गृह मंत्री लालकृष्ण अडवाणी समेत कई बड़े नेताओं को संसद के खुफिया मार्ग से सेफ जगहों पर ले जाना शुरू कर दिया। उस समय सदन में 100 से ज्यादा सांसद मौजूद थे।

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साजिश के पीछे अफजल गुरु का हाथ
सभी पांचों आतंकी तो मारे गए लेकिन इसके पीछे मास्टर माइंड कोई और था। हमले की साजिश रचने वाले मुख्य आरोपी अफजल गुरु को दिल्ली पुलिस ने 15 दिसंबर 2001 को गिरफ्तार किया। संसद पर हमले की साजिश रचने के आरोप में सुप्रीम कोर्ट ने 4 अगस्त, 2005 को उसे फांसी की सजा सुनाई थी। उसने राष्ट्रपति के सामने दया याचिका दायर की थी। दया याचिका को 3 फरवरी, 2013 को राष्ट्रपति ने खारिज की और 9 फरवरी, 2013 को अफजल गुरु को दिल्ली की तिहा‌ड़ जेल में फांसी दी गई।

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