देश की राजनीति से गायब होता लेफ्ट!

Edited By Punjab Kesari,Updated: 03 Mar, 2018 07:27 PM

2019 was the easiest to win in the northeast

2014 के आम चुनाव में केंद्र में सरकार बनाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने भाषणों में लगातार पूर्वी भारत का बार-बार जिक्र किया। जिसका नतीजा त्रिपुरा, मेघायल और नागालैंड में देखने को मिला। अब तक आए रुझानों में बीजेपी त्रिपुरा में अपने दम पर...

नेशनल डेस्क (अनिल देव):  त्रिपुरा में मिली हार के बाद देश की राजनीति से लेफ्ट साफ होता हुआ नजर आ रहा है।  वर्ष 2004 के लोकसभा चुनाव से लेकर 2014 तक लेफ्ट का वोटर उससे दूर होता दिखा है। पिछले 14 सालों के संसदीय चुनावों पर गौर करें तो लेफ्ट का न सिर्फ वोट शेयर लगातार गिरता जा रहा है बल्कि उसकी सीटों में भी जबरद्सत गिरावट आई है। शनिवार को त्रिपुरा, नागालैंड और मेघालय के चुनाव परिणामों के बाद  देश की राजनीति से लेफ्ट  के सफाए के संकेत  मिलने शुरू हो गए हैं। लेफ्ट फिलहाल अगले चुनाव में कांग्रेस के साथ गठजोड़ करने के पक्ष में नहीं है और यदि प्रकाश कारत का ये फैसला कायम रहा तो 2019 के चुनाव में भी भाजपो को इससे मदद मिलेगी और देश की राजनीति में लेफ्ट की स्पेस न मात्र रह जाएगी। 

वर्ष 2004 2009 2014
CPI 10 04 01
CPM 43 16 09
वोट शेयर 7 प्रतिशत 4 प्रतिशत 2.5 प्रतिशत

लेफ्ट का घटता जनाधार
 लेफ्ट का जनाधार 2004 से 2014 तक आते आते खत्म होने के कगार पर पहुंच गय है। जहां 2004 में लेफ्ट पार्टियों का वोट शेयर 7 प्रतिशत हुआ करता था, वो बीते दस सालों में केवल 2.5 प्रतिशत आकर सिमट गया है। इस औसत के अनुसार आने वाले 2019 के लोकसभा चुनाव में लेफ्ट का वोटर शेयर 1 प्रतिशत से भी कम होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। त्रिपुरा, नागालैंड और मेघायल में अपनी जमानत जब्त पार्टी की छवी को बीजेपी ने दमदार तरीके से हटाया है। बीजेपी के इस प्रदर्शन के बाद अब महज केरल में लेफ्ट पार्टी की सरकार बची है। यहां भी लेफ्ट को सत्ता से बाहर करने में कांग्रेस लगातार कोशिश में रहती है लेकिन अब त्रिपुरा के नतीजों के बाद इस राज्य में वामपंथ राजनीति से मुक्त करने में क्या बीजेपी को अधिक प्रभावी माना जा सकता है?

अब केरल में बीजेपी बनाम लेफ्ट?
त्रिपुरा में बीजेपी के हाथों शिकस्त की संभावनाओं के बीच सीपीआई(एम) जनरल सेक्रेटरी एस सुधाकर रेड्डी ने दावा किया है कि उनकी पार्टी के लिए बीजेपी नंबर वन दुश्मन है। रेड्डी ने दलील दी कि बीजेपी के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए लेफ्ट पार्टियों को अपनी रणनीति बदलने की जरूरत है। रेड्डी के मुताबिक बीजेपी को शिकस्त देने के लिए जरूरी है कि वह एक वृहद प्लेटफॉर्म पर शामिल हो। लिहाजा बिना नाम लिए इशारा किया कि बीजेपी का मुकाबला करने के लिए अब वामदलों को कांग्रेस का दामन पकड़ने के विकल्प पर सोचना चाहिए। हालांकि इससे पहले की लेफ्ट और कांग्रेस के गठबंधन का कयास लगे रेड्डी के इस बयान को बीजेपी के खिलाफ लड़ाई में कांग्रेस से बढ़ती नजदीकी के तौर पर न देखे जाने की सफाई दे दी गई। यह सफाई केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने दी। विजयन ने कहा कि 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के साथ किसी गठबंधन की संभावना नहीं है।
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बीजेपी बनी दुश्मन नंबर 1
गौरतलब है कि त्रिपुरा चुनावों से पहले वामपंथी नेता सीताराम येचुरी ने भी यही दावा किया था। येचुरी ने कहा था कि लेफ्ट पार्टियों की सबसे बड़ी दुश्मन बीजेपी है और उसे हराने के लिए कांग्रेस का साथ जरूरी है। येचुरी के इस बयान का त्रिपुरा समेत केरल के वामपंथी नेताओं ने जमकर विरोध किया था। दोनों राज्यों में पार्टी इकाइयों का दावा था कि वह अपने दम पर दोनों राज्यों में लेफ्ट के किले को बचाने में सफल होंगे। दोनों राज्यों में लेफ्ट पार्टियां का मानना है कि कांग्रेस से किसी तरह का गठबंधन उनके लिए नीतिगत तौर पर गलत साबित होगा।

कांग्रेस से हाथ ना मिलाना गलती
बहरहाल त्रिपुरा के नतीजों से राज्य में वामदल को जवाब मिल चुका है। यदि उन्होंने येचुरी की बात को मानते हुए कांग्रेस के साथ गठबंधन का प्रयास किया होता तो संभवत: राज्य में नतीजे कुछ और होते। अब देखना है कि क्या केरल में मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन त्रिपुरा में पार्टी को मिली हार से कोई सबक लेते हैं? या फिर वह भी केरल में बीजेपी का अकेले मुकाबला करने की जिद पर बीजेपी से लेफ्ट बनाम राइट का आखिरी स्क्रिप्ट लिखेंगे।

 

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