26/11 हमला: फांसी देख डर गया था मुंबई को दहलाने वाला कसाब, ये थे उसके आखिरी शब्द

Edited By Anil dev,Updated: 26 Nov, 2018 10:41 AM

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मुंबई पर हुए आतंकी हमले की आज 10वीं बरसी है, लेकिन आतंकियों द्वारा दिए जख्म आज भी ताजा हैं। इस हमले में कइयों ने अपनों को हमेशा के लिए खो दिया। 26/11 के दोषी अजमल आमिर कसाब को हमले के महज चार साल के भीतर 21 नवंबर, 2012 को पुणे की यरवदा जेल में फांसी...

नई दिल्लीः मुंबई पर हुए आतंकी हमले की आज 10वीं बरसी है, लेकिन आतंकियों द्वारा दिए जख्म आज भी ताजा हैं। इस हमले में कइयों ने अपनों को हमेशा के लिए खो दिया। 26/11 के दोषी अजमल आमिर कसाब को हमले के महज चार साल के भीतर 21 नवंबर 2012 के दिन पुणे की यरवदा जेल में फांसी दी गई थी। कसाब को मीरन सी बोरवंकर के सामने फांसी दी गई थी। मीरन देश की इकलौती महिला आईपीएस ऑफिसर रहीं, जिनके सामने कसाब को फांसी पर चढ़ाया गया था। कसाब को यरवदा जेल में फांसी दी गई और यहीं पर उसको दफनाया गया। मीरन इसी साल सिंतबर में पुलिस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ब्यूरो के डायरेक्टर जनरल पद से रिटायर हुईं। उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में कसाब के आखिरी दिनों के बारे में बताया था।

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डरा हुआ था कसाब
कसाब के आख़िरी पलों के बारे में बात करते हुए मीरन ने बताया कि वह डरा हुआ था, लेकिन उसे मालूम नहीं था कि उसके साथ क्या होने वाला है। 21 नवंबर की सुबह हम उसे फांसी के लिए लेकर गए। नियमों के अनुसार डॉक्टरों, मजिस्ट्रेट और पुणे कलेक्टर फांसी के समय वहां मौजूद थे। कसाब ने फांसी से पहले कई बार माफी मांगी और कहा कि दोबारा ऐसा नहीं होगा। फांसी के समय उसके अंतिम शब्द थे, 'अल्लाह कसम, ऐसी गलती दोबारा नहीं होगी।' मीरन के मुताबिक, फांसी के बाद उसे करीब सात मिनट तक टंगा रहने दिया गया और फिर डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित किया। डॉक्टरों की पुष्टि के बाद कसाब को उसके धर्म के मुताबिक उसका अंतिम संस्कार किया गया।

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गोपनीय थी कसाब की फांसी
"कसाब की फांसी के मामले में कई एजेंसियां शामिल थीं और इसमें गोपनीयता प्राथमिकता थी। मीरन के मुताबिक, कसाब मुंबई की आर्थर रोड जेल में आईटीबीपी की हिरासत में था और उसे फांसी देने के लिए पुणे ले जाया गया था। कसाब को ले जाने वाली टीम को 36 घंटे तक एक जगह रखा गया और उनसे फोन ले लिए गए, ताकि बाहर कोई बात न जाए।

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चुनौतीपूर्ण थी कसाब की फांसी
मीरन के मुताबिक, 36 साल के कैरियर में 2012 में कसाब की फांसी चुनौतीपूर्ण थी। जिस दिन कसाब को फांसी दी जानी थी, उस दिन राकेश और आर.आर पाटिल सर ने मुझे फोन किया था, जिसके बाद मैंने यरवदा जेल जाने का फैसला लिया। मैं अपनी गाड़ी नहीं ले सकती थी, क्योंकि मीडिया को भनक मिल जाती, इसलिए मैं अपने गनर के साथ उसकी मोटरसाइकिल पर बैठकर जेल पहुंची। एसपी और डीआईजी भी बिना सरकारी गाड़ी के जेल पहुंचे और हम सभी ने वह रात जेल में ही बिताई। हमने कसाब को बेहोश करके क्राइम ब्रांच टीम को सौंपा था, ताकि गाड़ी में ले जाते समय उसे कोई देख न ले।

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