VIDEO: 26/11 धमाके के 8 साल बाद भी सबीरा को जिंदगी की तालाश

Edited By ,Updated: 24 Nov, 2016 05:50 PM

26 नवंबर 2008 ऐसी तारीख है जिसे कोई नहीं भूल सकता और इसे याद करने पर वो सारे जख्म ताजा हो जाते हैं जो बेहद दर्द देते हैं। कुछ ऐसी दर्द भरी कहानी है सबीरा खान की जो इस दर्द को रोज जीती है।

मुंबई: 26 नवंबर 2008 ऐसी तारीख है जिसे कोई नहीं भूल सकता और इसे याद करने पर वो सारे जख्म ताजा हो जाते हैं जो बेहद दर्द देते हैं। कुछ ऐसी दर्द भरी कहानी है सबीरा खान की जो इस दर्द को रोज जीती है।

सबीरा की कहानी फेसबुक पर इन दिनों काफी वायरल हो रही है। 26 नवंबर 2008, बच्चों को ट्यूशन पढ़ाकर अपने घर वापिस लौट रही सबीरा खान जैसे ही डॉक्यार्ड रोड पर पहुंची तो एक टैक्सी में हुए बम धमाके ने उन्हें अपनी जगह से 20 फीट दूर फेंक दिया। धमाके के बाद सबीरा की जब आंखें खुली तो उसने खुद को एक सरकारी अस्पताल में पाया जहां उनका 2 महीने तक इलाज चला। सबीरा आज भी अपने पैरों पर चल नहीं पाती हैं।  बैसाखी के साहरे से ही वे कहीं आती-जाती है। सबीरा बताती हैं सरकारी अस्पताल में उनका इलाज ठीक से नहीं किया गया। उन्हें जो खून चढ़ाया गया था वह पीलिया से इंफेक्टिड था जिसने उनके पैर को हमेशा के लिए खराब कर दिया। सबीरा अलग-अलग अस्पतालों में 6 सर्जरी करा चुकी हैं लेकिन उनका पैर ठीक नहीं हो सका।

हमले को 8 साल गुजर गए, नहीं मिली मदद
26/11 आतंकी हमलों को गुजरे हुए 8 साल हो गए हैं लेकिन सबीरा आज भी किसी सरकार द्वारा मिलने वाली मदद का इंतजार कर रही हैं। उनका दावा है कि उन्हें न तो सही मुआवजा ही मिला और न ही इलाज के लिए कोई फंड। सबीरा के बड़े बेटे हामिद ने कुछ कागज दिखाए जिन पर लिका था “सेंट्रल स्कीम फॉर असिस्टेंस टू विक्टिम्स ऑफ टेररिस्ट एंड क्मूनल वॉइलेंस”। हामिद बताते हैं कि उनकी मां को 3 लाख रुपए का मुआवजा और परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने का वादा किया गया था लेकिन अभी तक दोनों में से कुछ भी नहीं मिला है। हामिद का दावा है कि उसने 100 से ज्यादा अर्जियां तमाम सरकारी मंत्रालयों, विभागों, अधिकारियों और प्रधानमंत्री को भी भेजी हैं लेकिन उनमे से किसी पर भी कोई सुनवाई नहीं हुई और न ही कोई उम्मीद नजर आती है। सबीरा के परिवार में 6 बच्चे हैं और उनकी 90 साल की मां। उसके पति मुंबई पोर्ट ट्रस्ट में काम करते हैं लेकिन 2 महीने से अपनी चोट की वजह से वह काम पर नहीं जा पा रहे। सबीरा का बड़ा बेटा हामिद अंधेरी इलाके में जीन्स का स्टॉल लगाता है जिससे घर को हर महीने 10 हजार रुपए की आमदनी हो जाती है। सबीरा ने बताया कि उनके इलाज में 12 लाख रुपए का खर्चा हो चुका है जिसका भुगतान उन्होंने उधार लेकर, दुकान बेचकर और अपने घर को गिरवी रखकर पूरा किया है। परिवार शासन-प्रशासन को लेकर गुस्सा है।

पीड़ितों का बस राजनीतिक इस्तेमाल
हामिद कहते हैं कि सभी राजनीतिक दल आतंकवाद के शिकार बने पीड़ितों का बस राजनीतिक इस्तेमाल करते हैं। वह बताते हैं कि जब हमला हुआ था तो कांग्रेस सत्ता में थी तब भाजपा के कुछ नेता मेरी मां को मदद दिलाने के लिए मंत्रालय लेकर गए। भाजपा ने कहा था कि जब उनकी सरकार आएगी तो वह सभी पीड़ितों का ध्यान रखेंगे। आज जब भाजपा सत्ता में है तो उसने भी हमारे लिए कुछ नहीं किया है।

सबीरा बच्चों को उर्दू और अरबी पढ़ाती हैं। 26/11 के दिन भी वह बच्चों की क्लास लेकर घर वापिस लौट रही थीं लेकिन उस बम धमाके ने उनकी जिंदगी बदल दी। पहले वह 20-25 बच्चों को पढ़ाती थीं लेकिन आज उनके घर पर महज 5-6 बच्चे पढ़ने आते है। वह गरीब बच्चों को उनके घर जाकर पढ़ाती थी और बतौर फीस मामूली रकम लेती थी। आज सबीरा का बस एक ही सपना है कि उनका अपना एक घर हो जहां पर वह बच्चों को पढ़ा सकें क्योंकि इसी काम से उन्हें खुशी मिलती है।

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