2G घोटाला: डी.एम.के. ने चुकाई थी बड़ी सियासी कीमत

Edited By Punjab Kesari,Updated: 22 Dec, 2017 11:32 AM

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डी.एम.के. को 2जी घोटाले की बड़ी राजनीतिक कीमत भी चुकानी पड़ी है। इस घोटाले के सामने आने के बाद तमिलनाडु की राजनीति में डी.एम.के. को तगड़ा झटका लगा। इससे पहले तमिलनाडु की राजनीति में डी.एम.के. की तूती बोलती थी। 2006 के विधानसभा चुनाव में डी.एम.के. ने...

जालन्धर(नरेश): डी.एम.के. को 2जी घोटाले की बड़ी राजनीतिक कीमत भी चुकानी पड़ी है। इस घोटाले के सामने आने के बाद तमिलनाडु की राजनीति में डी.एम.के. को तगड़ा झटका लगा। इससे पहले तमिलनाडु की राजनीति में डी.एम.के. की तूती बोलती थी। 2006 के विधानसभा चुनाव में डी.एम.के. ने 132 सीटों पर चुनाव लड़ा और उसमें से 96 सीटें हासिल की थीं। पार्टी को 26.46 प्रतिशत मत हासिल हुए जबकि 2010 में इस घोटाले के चर्चा में आने के अगले ही साल 2011 के विधानसभा चुनाव में डी.एम.के. को इसकी सियासी कीमत चुकानी पड़ी। 
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इस चुनाव में पार्टी को 23 सीटें मिली थीं जबकि जयललिता की ए.आई.ए. डी.एम.के. को 150 सीटें हासिल हुई थीं। इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान ही डी.एम.के. पर 2जी घोटाले का साया भारी रहा और उसका राज्य से सूपड़ा साफ हो गया। पार्टी का कोई भी उम्मीदवार लोकसभा का चुनाव नहीं जीत पाया। हालांकि पार्टी को 23.91 प्रतिशत वोट हासिल हुए जबकि जयललिता की ए.आई.ए.डी.एम.के. ने 44.92 प्रतिशत वोटों के साथ राज्य की 37 लोकसभा सीटों पर कब्जा कर लिया। हालांकि 2016 के विधानसभा चुनाव में डी.एम.के. की सीटें बढ़कर 88 हो गईं जबकि ए.आई.ए.डी.एम.के. को 135 सीटें हासिल हुईं लेकिन पार्टी अभी तक राज्य में अपनी खोई सियासी साख पूरी तरह से हासिल नहीं कर पाई है। 
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 स्पैक्ट्रम आबंटन में अनियमितता के सामने आने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने 8 बड़ी कंपनियों को आबंटित किए गए 122 लाइसैंस रद्द करने के आदेश दिए थे और साथ ही कंपनियों को 5 करोड़ रुपए तक का जुर्माना देने की सजा भी सुनाई गई थी। इन 8 कंपनियों के पास 2012 में करीब 7 करोड़ टैलीकॉम उपभोक्ता थे। लाइसैंस रद्द होने के बाद इनमें से अधिकतर कंपनियां टैलीकॉम क्षेत्र से बाहर हो गईं और टैलीकॉम सैक्टर में अधिग्रहण का दौर शुरू हो गया। यह दौर शुरू होने के बाद अब देश में गिनी-चुनी कंपनियां ही बची हैं। जियो के सामने  आने के बाद अब देश में एयरटैल, वोडाफोन,आइडिया, बी.एस.एन.एल. और एम.टी. एन.एल. जैसी कंपनियां ही मुख्य रूप से मैदान में हैं जिस कारण उपभोक्ताओं के सामने बहुत ज्यादा विकल्प नहीं बचे हैं। इस क्षेत्र में प्रतिस्पर्धा न होने के कारण भविष्य में कंपनियां मनमानी भी शुरू कर सकती हैं।


 

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