Edited By Tanuja,Updated: 21 Apr, 2018 12:51 PM
पुनर्जन्म की कहानियाँ तो लोगों ने बहुत सुनी होगी लेकिन वर्तमान में भूटान के राजघराने से जुड़ा एक नया मामला सामने आया है । भूटान की महारानी दोरजी वांगचुक के नाती राजकुमार ट्रूएक बागचूंग के पुनर्जन्म का दावा किया जा रहा है
थिम्पूः पुनर्जन्म की कहानियाँ तो लोगों ने बहुत सुनी होगी लेकिन वर्तमान में भूटान के राजघराने से जुड़ा एक नया मामला सामने आया है । भूटान की महारानी दोरजी वांगचुक के नाती राजकुमार ट्रूएक बागचूंग के पुनर्जन्म का दावा किया जा रहा है। भूटान के इस छोटे से राजकुमार का दावा अगर सच निकला तो यह माना जाएगा कि नालंदा के एक प्रोफेसर का ही जन्म भूटान के राजकुमार के रूप में हुआ है। भूटान की महारानी कहती हैं कि पिछले 3 साल से उनके नाती ने जो कुछ बताया उसे जानकर वह हैरान रह गईं।
मामला सामने आने पर पहले तो राजकुमार की बात को घर के लोगों के दरकिनार कर लिया लेकिन जब वह इस बारे में बार-बार बात करता रहा तो घर के लोगों ने इसे गंभीरता से लिया और उसकी बातों को ध्यान से सुना। भिक्षु येरो ने बताया कि जिग्मे जब थोड़ा बहुत बोलने लगा तब वो नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में ही बात करता था। जिग्मे ने 824 वर्ष पूर्व नालंदा में पढ़ने की बात बताई। उसकी हर बात 824 वर्ष पूर्व के शिक्षाविद् वेरोचना से मिलती थी। जिग्मे अक्सर अपनी नानी से सारनाथ आने की इच्छा जताता था। उसकी बातों को सुनकर महारानी ने बुद्ध से जुड़े स्थलों के दर्शन का निर्णय लिया।
जिग्मे को जब नालंदा ले जाया गया तो वह उसे ऐसे देख रहा था जिसे वह उसी का घर हो । राजकुमार ने सिर्फ चार घंटे में ही खंडहर बन चुके नालंदा विश्वविद्यालय की दरों-दीवार को पहचान लिया। जिग्मे की बातों और भाव-भंगिमाओं पर विश्वास करें तो वह आज से 824 साल पहले नालंदा विश्वविद्यालय में बतौर स्कॉलर रह चुका है।
उस दौर में उसे शिक्षाविद वेरोचेना के रूप में जाना जाता था और 824 साल बाद वह भूटान की महारानी के नाती के तौर पर पैदा हुआ है। इतना ही नहीं इस छोटी उम्र में उसे नालंदा विश्वविद्यालय के बारे में काफी कुछ पता है और वह अपने रहने वाले कमरे तक खुद ही पहुंच गया। उसकी इस हरकत से लोग स्तब्ध हैं।
जिग्मे नालंदा विश्वविद्यालय के चप्पे-चप्पे से वाकिफ है। जब वह नालंदा गया तो अपने कमरे तक पहुंच गया जहां पूर्वजन्म में रहता था। इतना ही नहीं, वहां उसने वह मुद्राएं दिखाईं जो नालंदा के छात्रों को सिखाई जाती थीं। गौरतलब है कि तक्षशिला के बाद नालंदा विश्वविद्यालय दुनिया का सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय है। इसकी स्थापना 450 ई. में गुप्त वंश के शासक कुमार गुप्त ने की थी। इनके बाद हर्षवर्द्धन, पाल शासक और विदेशी शासकों ने विकास में अपना पूरा योगदान दिया।
गुप्त राजवंश ने मठों का संरक्षण करवाया। 1193 ई. में आक्रमणकारी बख्तियार खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को तहस-नहस कर जला डाला था। इस विश्वविद्यालल को बचाने के लिए 10 हजार भिक्षुओं ने बलिदान दिया लेकिन वे सभी मारे गए। यह दुनिया का पहला आवासीय महाविहार था, जहां 10 हजार छात्र रहकर पढ़ाई करते थे और इन्हें पढ़ाने के लिए 2000 शिक्षक होते थे।