कोरोना वायरस के चलते राष्ट्रीय ध्वज की बिक्री में 50 फीसदी कमी, करोड़ो का हुआ नुक्सान

Edited By rajesh kumar,Updated: 15 Aug, 2020 11:59 AM

50 reduction in national flag sales due to corona virus loss of crores

कोरोना वायरस का असर राष्ट्रीय ध्वज की बिक्री पर भी पड़ा है। कोविड-19 के कारण हुए लॉकडाउन से स्वतंत्रता दिवस के मौके पर तिरंगे की बिक्री 50 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई। आज पूरा देश 74वां स्‍वतंत्रता दिवस (74th Independence Day) का जश्‍न मना रहा है।

नई दिल्ली: कोरोना वायरस का असर राष्ट्रीय ध्वज की बिक्री पर भी पड़ा है। कोविड-19 के कारण हुए लॉकडाउन से स्वतंत्रता दिवस के मौके पर तिरंगे की बिक्री 50 फीसदी तक की गिरावट दर्ज की गई। आज पूरा देश 74वां स्‍वतंत्रता दिवस (74th Independence Day) का जश्‍न मना रहा है। 15 अगस्‍त को एक बार फिर दिल्‍ली के लाल किले पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने राष्‍ट्रीय ध्‍वज फहराया। इस मौके पर पीएम मोदी ने कई घोषणाएं भी की।

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लॉकडाउन का असर- राष्ट्रीय ध्वज की मैन्युफैक्चरिंग पर 
कोविड के कारण लागू हुए लॉकडाउन से राष्ट्रीय ध्वज की मैन्युफैक्चरिंग व बि​क्री पर भी असर पड़ा है। लॉकडाउन में कई यूनिट में काम बंद रहा,  महामारी के डर के कारण मैन्युफैक्चरिंग यूनिट में कर्मचारियों का आना बहुत कम हो गया है। जिससे कारण बिक्री में 50 फीसदी की कमी आई है। KKGSS (फेडरेशन) के सेक्रेटरी शिवानंद माथापति ने कहा कि KKGSS के तहत तिरंगे के लिए धागा बनाने से लेकर झंडे की पैंकिंग तक से इस वक्त लगभग 500 वर्कर जुड़े हैं। इनमें से 90 फीसदी महिलाएं हैं। पिछले साल KKGSS ने 3 करोड़ रुपये के राष्ट्रीय ध्वज की बिक्री ​की थी।

देश के लाल किले, राष्‍ट्रपति भवन, संसद भवन, सरकारी बिल्डिंग पर, हमारी सेना द्वारा फ्लैग होस्टिंग के वक्‍त यहां तक कि विदेश में मौजूद इंडियन एंबेसीज में फहराए जाने वाले झंडे कहां बनते हैं? कौन लोग हैं जो देश की आन, बान और शान कहे जाने वाले तिरंगे को बनाते हैं? आइए हम आपको बताते हैं इन सबके बारे में..

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कहां बनता है तिरंगा
कर्नाटक के हुबली शहर के बेंगेरी इलाके में स्थित कर्नाटक खादी ग्रामोद्योग संयुक्‍त संघ KKGSS राष्ट्रध्वज ‘तिरंगा’ बनाती है। बता दें कि यह देश की एकमात्र ऑथराइज्‍ड नेशनल फ्लैग मैन्‍युफैक्‍चरिंग यूनिट है, जो KKGSS खादी व विलेज इंडस्‍ट्रीज कमीशन द्वारा सर्टिफाइड है। यानि इसके अलावा राष्ट्रीय ध्वज कोई और नहीं बनाता है। इसे हुबली यूनिट भी कहा जाता है।

संस्था 2006 से बना रही है तिरंगा
बता दें कि KKGSS की स्‍थापना नवंबर 1957 में हुई थी। वर्ष 1982 से इन्होंने खादी बनाने का काम शुरू किया। फिर साल 2005-06 में इसे ब्‍यूरो ऑफ इंडियन स्‍टैंडर्ड्स (BIS) से सर्टिफिकेशन मिला और फिर राष्‍ट्रीय ध्‍वज बनाने का काम शुरू हुआ। देश के किसी भी हिस्से में आधिकारिक तौर पर राष्‍ट्रीय ध्‍वज इस्‍तेमाल होता है, यहीं के बने झंडे की सप्‍लाई की जाती है। भारतीय दूतावासों के लिए भी यहीं से तिरंगे बनकर जाते हैं। कोई भी  कुरियर के जरिए ​राष्ट्रीय ध्वज KKGSS खरीद सकता है।

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झंडे की पैंकिंग में इतने लोगों की है मेहनत
KKGSS के तहत तिरंगे के लिए धागा बनाने से लेकर झंडे की पैंकिंग तक में लगभग 250 लोग काम करते हैं। इनमें 80-90 फीसदी महिलाएं भी काम करती है। तिरंगे को इतने चरणों में बनाया जाता है- धागा बनाना, कपड़े की बुनाई, ब्‍लीचिंग व डाइंग, चक्र की छपाई, तीनों पटिृयों की सिलाई, आयरन करना और टॉगलिंग (गुल्‍ली बांधना)।

जानें टेबल से लेकर राष्ट्रपति भवन तक लगने वाले झंडे के साइज के बारे में..

  • सबसे छोटा 6:4 इंच- मीटिंग व कॉन्‍फ्रेंस आदि में टेबल पर रखा जाने वाला झंडा
  •  9:6 इंच- VVIP कारों के लिए
  • 18:12 इंच- राष्‍ट्रपति के VVIP एयरक्राफ्ट और ट्रेन के लिए
  • 3:2 फुट- कमरों में क्रॉस बार पर दिखने वाले झंडे
  • 5.5:3 फुट- बहुत छोटी पब्लिक बिल्डिंग्‍स पर लगने वाले झंडे
  • 6:4 फुट- मृत सैनिकों के शवों और छोटी सरकारी बिल्डिंग्‍स के लिए
  • 9:6 फुट- संसद भवन और मीडियम साइज सरकारी बिल्डिंग्‍स के लिए
  • 2:8 फुट- गन कैरिएज, लाल किले, राष्‍ट्रपति भवन के लिए
  • सबसे बड़ा 21:14 फुट- बहुत बड़ी बिल्डिंग्‍स के लिए

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तिंरगे की क्वालिटी को BIS चेक करता है
KKGSS में बनने वाले राष्ट्रीय ध्वज की क्वालिटी को BIS चेक करता है और इसमें थोड़ा सा भी डिफेक्ट नजर आया तो इसे रिजेक्ट कर दिया जाता है। यहां बनने वाले तिरंगों में लगभग 10 फीसदी रिजेक्ट हो जाते हैं। हर सेक्शन में लगभग18 बार तिरंगे की क्‍वालिटी चेक की जाती है। राष्ट्रीय ध्वज को कुछ मानकों पर खरा उतारना होता है. जैसे कि KVIC और BIS द्वारा निर्धारित रंग के शेड से तिरंगे का शेड बिल्कुल भी अलग नहीं होना चाहिए, केसरिया, सफेद और हरे कपड़े की लंबाई-चौड़ाई में नहीं जरा सा भी अंतर नहीं होना चाहिए। वहीं, पिछले भाग में अशोक चक्र की छपाई समान होनी चाहिए। फ्लैग कोड ऑफ इंडिया 2002 के प्रावधानों के मुताबिक, झंडे की मैन्‍युफैक्‍चरिंग में रंग, साइज या धागे को लेकर किसी भी तरह का डिफेक्‍ट एक गंभीर अपराध है और ऐसा होने पर जुर्माना या जेल या दोनों हो सकते हैं।

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