...तो ऐतिहासिक गलती में बदल जाएगा पीएम मोदी का साहसिक फैसला!

Edited By ,Updated: 23 Nov, 2016 10:34 AM

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ज्यादातर मौकों की तरह ही वित्त मंत्री अरुण जेतली ने विमुद्रीकरण के फैसले पर बाकी राजनीतिक पाॢटयों को मनाने और उनकी चिंताओं को दूर करने की जिम्मेदारी संभाल ली है। वहीं जेतली ने यह भी साफ कर दिया है

नई दिल्ली: ज्यादातर मौकों की तरह ही वित्त मंत्री अरुण जेतली ने विमुद्रीकरण के फैसले पर बाकी राजनीतिक पाॢटयों को मनाने और उनकी चिंताओं को दूर करने की जिम्मेदारी संभाल ली है। वहीं जेतली ने यह भी साफ कर दिया है कि शुरू होने वालेरबी फसल के सत्र में किसानों के दर्द को कम करने के लिए सरकार नोट उपलब्ध करवाने के मद्देनजर अगले कुछ हफ्ते गांवों पर ध्यान केंद्रित करेगी। बहरहाल, नोटबंदी के 14वें दिन भी हालात कमोबेश एक जैसे ही हैं, तो वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी पूरी कैबिनेट लोगों को यह बताने, समझाने और प्रचारित करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे है कि पी.एम. का यह फैसला दीर्घकालिक लिहाज से बहुत ही फायदेमंद होगा। 

वहीं, पी.एम. ने कुछ ऐसा ही समझाने और बताने की जिम्मेदारी सांसदों को भी सौंपी है। यह बात बहुत हद तक सही है कि एक बार वर्तमान में जारी ‘दर्द’ खत्म होने के बाद दीर्घकालिक लिहाज से मोदी का फैसला अर्थव्यवस्था को बदलने का काम करेगा लेकिन इसके लिए सिर्फ और सिर्फ विमुद्रीकरण से ही काम नहीं चलने वाला। इससे हासिल होने वाले लक्ष्य के बाद कई ऐसे कदम हैं जो पी.एम. को उठाने पड़ेंगे। इसके तहत देशवासियों को नकदी रहित भुगतान के बारे में जागरूक करना, निचले स्तर पर जारी भ्रष्टाचार पर वार करना, नौकरियां पैदा करना और देश में निजी निवेश लाना है। 
 

यह सही है कि मोदी ने 2 बार सार्वजनिक तौर पर रैली में बहुत ही भावुक अंदाज में अपने फैसले का बचाव किया है लेकिन सरकार को यह समझना होगा कि वर्तमान में जारी नकदी संकट अगर एक तय सीमा से आगे खिंचता है तो इसके बड़े आॢथक परिणाम होंगे। अगर सरकार तुरंत ही कृषि के अलावा अर्थव्यवस्था के कुछ पहलुओं पर ध्यान नहीं देती तो मोदी का विमुद्रीकरण का यह ऐतिहासिक फैसला उनके लिए ऐतिहासिक गलती के रूप में भी बदल सकता है और नतीजा यह भी हो सकता है कि आॢथक विकास दर थम जाए और अर्थव्यवस्था कुछ कदम पीछे चली जाए। इस बात को देखते हुए जेतली की यह बात एकदम सही है कि सरकार अगले कुछ दिन गांवों में पैसे की उपलब्धता पर ध्यान देगी। साफ है कि सरकार का ध्यान कृषि की ओर गया है। रबी का सत्र मुंह बाए खड़ा है और किसानों को नकदी की जरूरत है। 

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