फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों: 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के छक्के छुड़ा कर पिया शहादत का जाम

Edited By vasudha,Updated: 08 Oct, 2020 11:43 AM

88th air force day

भारतीय वायु सेना 8 अक्टूबर को अपना 88 वां स्थापना दिवस मना रही है। वायु सेना भारतीय सशस्त्र सेना का एक अंग है जो वायु युद्ध एवं वायु सुरक्षा का महत्वपूर्ण कार्य देश के लिए करती है। इसकी स्थापना 8 अक्टूबर 1932 को की गई थी। 88 वर्ष बाद भारतीय वायु...

यूं तो हम हर वायुवीर का इस दिवस पर अभिनंदन करते हैं। पर इस अवसर पर हम भारतीय वायु सेना के एकमात्र परमवीर चक्र विजेता फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों के बलिदान को भुला नहीं सकते हैं। अब तक कुल 21 परमवीर चक्र में से 20 भारतीय सेना को मिल चुके हैं और एक परमवीर चक्र वायुसेना को मिला और इसे हासिल करने वाले जाबांज़ का नाम था- फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों। निर्मल जीत सिंह सेखों का जन्म 17 जुलाई 1943 को पंजाब के लुधियाना जिले में एक सैनिक परिवार में हुआ था। वे (मानद) फ्लाइट लेफ्टिनेंट तरलोक सिंह सेखों के पुत्र थे। उन्होंने 4 जून 1967 को एक पायलट अफसर के रूप में भारतीय वायु सेना में प्रवेश लिया। 14 दिसंबर 1971 को पाकिस्तानी वायुसेना बेस पेशावर से श्रीनगर हवाई अड्डे पर 26वीं स्क्वाड्रन के छह पाकिस्तानी वायु सेना F- 86 जेट विमानों द्वारा हमला किया गया था। फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह वहां पर 18 नेट स्क्वाड्रन के साथ तैनात थे। सुबह लगभग 8 बजे चेतावनी मिली कि दुश्मन आक्रमण पर है। कुछ ही मिनटों में सेखों व फ्लाइट लैफ्टिनेंट घुम्मन अपने विमानों में दुश्मन का सामना करने के लिए आसमान में थे।

 

एयर फील्ड से पहले घुम्मन के जहाज ने रन वे छोड़ा था। उसके बाद जैसे ही निर्मलजीत सिंह का नेट उड़ा, रन वे पर उनके ठीक पीछे एक बम आकर गिरा। बम गिरने के बाद एयर फील्ड से कॉम्बैट एयर पेट्रोल का सम्पर्क सेखों तथा घुम्मन से टूट गया था। सारी एयरफिल्ड धुएँ और धूल से भर गई थी, जो उस बम विस्फोट का परिणाम थी। घुम्मन ने भी इस बात की कोशिश की, कि वह निर्मलजीत सिंह की मदद के लिए पहुँच सकें लेकिन यह सम्भव नहीं हो सका। तभी रेडियो संचार व्यवस्था से निर्मलजीत सिंह की आवाज़ सुनाई पड़ी..."मैं दो सेबर जेट जहाजों के पीछे हूं...मैं उन्हें जाने नहीं दूंगा..." उसके कुछ ही क्षण बाद नेट से आक्रमण की आवाज़ आसमान में गूँजी और एक सेबर जेट आग में जलता हुआ गिरता नजर आया। तभी निर्मलजीत सिंह सेखों ने अपना सन्देश प्रसारित किया... "मैं मुकाबले पर हूँ और मुझे मजा आ रहा है। मेरे इर्द-गिर्द दुश्मन के दो सेबर जेट हैं……इसके बाद नेट से एक और धमाका हुआ जिसके साथ दुश्मन का दूसरा सेबर जेट भी ढेर हो गया। कुछ देर की शांति के बाद फ्लाइंग ऑफिसर निर्मलजीत सिंह सेखों का सन्देश फिर सुना गया। उन्होंने कहा..."शायद मेरा जेट भी निशाने पर आ गया है... घुम्मन, अब तुम मोर्चा संभालो।" और इस तरह, अपना आखिरी संदेश देने के बाद,उन्होने अपने प्यारे देश के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। सेखों की वीरता की प्रशंसा पाकिस्तानी पायलट सलीम बेग मिर्जा ने भी अपने लेख में की है। 1971 में मात्र 26 साल की उम्र में इन्होंने भारत-पाकिस्तान युद्ध में अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। उनकी इस अतुलनीय वीरता व साहस और सर्वोच्च बलिदान के लिए भारत सरकार ने उन्हें वर्ष 1972 में मरणोपरांत परमवीर चक्र का सम्मान दिया। और अपने इस बलिदान के साथ उन्होने अपने गुरुओं की वाणी को भी यथार्थ कर दिया।         

जे तो प्रेम खेलन का चाव,सर धर तली गली मेरी आओ, इत मार्ग पैर धरीजै, सीस दीजै,कान न कीजै
अर्थात “ प्रेम की गली में आने का शौक है तो जनाब जान देने का जज्बा रखिये। किसी और चीज की चिंता किए बगैर अपना शीश अर्पण करने के लिए तैयार रहें”। अपनी मातृभूमि की सेवा के लिए, उसके लिए अपना प्रेम दर्शाने के लिए वही नौजवान आगे आते हैं जिनमें अपने शीश को अपने हथेलियों पर रखकर भारत मां को भेंट करने का जज़्बा होता है और निर्मलजीत सिंह सेखों हमारे सामने एक जीवंत उदाहरण है।

 

कहते हैं कि - “मंजिल उन्हीं को मिलती है, जिनके सपनों में जान होती है, पंख से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है”
सेखों के पास न केवल पंख थे बल्कि वह आसमान की ऊंचाइयों को छूने का साहस भी रखते थे। सेखों एक ऐसे व्यक्ति का आदर्श उदाहरण थे जो अपने जीवन से बड़े थे। 26 साल की उम्र में उन्होंने अपना जीवन जिस तरह से जिया, सामान्य लोग इस तरह के जीवन का सिर्फ सपना देखते हैं। निर्मलजीत सिंह सेखों सरीखे वीर कभी मर नहीं सकते।जो उड़ान उन्होंने दी वह कभी नीचे नहीं आएगी बल्कि ऊँची और ऊँची होती जाएगी। उनके पंखों की उड़ान कभी मंद नहीं हो सकती। अब इस उड़ान को और भी गति देने के लिए, पुरुषों के साथ - साथ  महिलाएं भी पीछे नहीं हैं। अगस्त 1966 में, भारतीय वायु सेना चिकित्सा अधिकारी, फ्लाइट लेफ्टिनेंट कांता हांडा, 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान अपनी सेवा के लिए प्रशंसा प्राप्त करने वाली पहली महिला भारतीय वायु सेना अधिकारी बनीं।

 

1994 में, महिलाएं पायलट के रूप में वायु सेना में शामिल हुईं; गुंजन सक्सेना (उड़ान अधिकारी) और श्रीविद्या राजन कारगिल युद्ध के दौरान युद्ध क्षेत्र में उड़ान भरने वाली पहली महिलाओं में से थीं। 2006 में, दीपिका मिश्रा सारंग प्रदर्शन टीम के लिए प्रशिक्षण देने वाली पहली IAF महिला पायलट थीं। 2012 में, राजस्थान की निवेदिता चौधरी (फ्लाइट लेफ्टिनेंट), माउंट एवरेस्ट को फतह करने वाली भारतीय वायु सेना की पहली महिला बनीं। 2015 में, भारतीय वायु सेना ने लड़ाकू पायलट के रूप में महिलाओं के लिए नए दरवाजे खोले, इसके अलावा भारतीय वायु सेना में हेलीकॉप्टर पायलट के रूप में उनकी भूमिका थी। वायु सेना में महिलाओं का यह रूप अद्भुत, अविश्वसनीय, व अकल्पनीय है। भारतीय वायु सेना एक जज़्बा, एक जुनून है, कुछ कर दिखाने का। अब राफाल जैसे अत्याधुनिक जहाज़ को उड़ाने के लिए भी महिला पायलट चुनी जा चुकी हैं। भारतीय वायु सेना के हर जवान और अधिकारी के साहस और दृढ़ संकल्प को हर देशवासी का सलाम। देश आपकी सेवा के लिए सदा आपका आभारी है। मैं मनीष सिंह की ये पंक्तियाँ भारतीय वायु सेना को समर्पित करना चाहूंगी।

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जिंदगी की असली उड़ान अभी बाकी है 
जिंदगी के कई इंतेहाँ अभी बाकी है 
अभी तो नापी है मुट्ठी भर ज़मीन हमने 
अभी तो सारा आसमान बाकी है|
जय हिन्द

- श्रीमती नीलम हुंदल (सैनिक पुत्री एवं सैनिक पत्नी, जालंधर कैंट)

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