Edited By ,Updated: 23 Jul, 2016 08:21 PM
एग्रीगेटर कंपनियां ओला और उबर द्वारा रेट को लेकर ग्राहकों से की जाने वाले मनमानी पर लगाम लगाने की तैयारी है। पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन पॉलिसी...
नई दिल्ली: एग्रीगेटर कंपनियां ओला और उबर द्वारा रेट को लेकर ग्राहकों से की जाने वाले मनमानी पर लगाम लगाने की तैयारी है। पब्लिक ट्रांसपोर्टेशन पॉलिसी को ग्राहको के लिए आसान बनाने की लिए सरकार नियमों में कुछ बदलाव कर सकती है। राज्य सरकारें ‘ऐप बेस्ड कैब सर्विस’ देने वाली कंपनियों के लिए फिक्स रेट तय कर पाएंगी। ऐप बेस्ड कंपनियों द्वारा अलग-अलग राज्यों से किराए को लेकर अकसर शिकायतें आती रही है। ग्राहको की शिकायत है कि यह कंपनियां बेस फेयर का 3 से 5 गुना तक सर्ज प्राइसिंग के रूप में अलग वसूल करती हैं। इन कंपनियों में सेटी को लेकर भी कई सवाल उठ चुके है। कर्नाटक सरकार ने इन्हें रेग्युलेट किए जाने की पहल की।
यह नियम हो सकते है लागू
ऐप बेस्ट कंपनियों में बदलाव की जिमेदारी केन्द्र सरकार को दी जा सकती है। ओला और उबर जैसी कंपनियों को रेग्युलेट करने के लिए केंद्र सरकार मोटर व्हीकल्स एक्ट में बदलाव करने की योजना बना रही है। इस बदलाव से राज्यों को यह अधिकार होगा कि वे टैक्सी एग्रीगेटर कंपनियों को रेग्युलेट कर सकें तथा इसके साथ टैक्सी एग्रीगेटर्स की नई डेफनिशन भी तय होगी। इसके इलावा मोटर व्हीकल्स एक्ट में बदलाव के बाद राज्य सरकारें अपने राज्य में किराए की मैक्सिमम लिमिट तय कर सकेंगी। सर्ज प्राइसिंग में मैक्सिमम लिमिट मैक्सिमम बेस फेयर से 50 फीसदी मैक्सिमम तय किया जा सकता है। अन्य बदलावो में ड्राइवर्स के लिए ड्रेस कोड, कैब में मीटर फेयर, कस्टमर्स की सेटी के लिहाज से कैब में जीपीएस किसी भी तरह की कंप्लेंट के लिए 24 घंटे के लिए कॉल सेंटर जरूरी किया जा सकता है। इस बात को लेकर उबर कंपनी ने कई सवाल उठाए हैं। उबर का कहना है कि वह कंपनी टेक्नोलॉजी बेस्ड है।