Edited By Parminder Kaur,Updated: 05 Sep, 2024 11:32 AM
किसी भी बच्चे का पहला गुरु उसकी मां होती है। मां ही बच्चे को अच्छे और बुरे की समझ, समाज में रहने के तरीके और जीवन जीने के कौशल सिखाती है। कई माएं ऐसी होती हैं, जो चुनौतीपूर्ण बच्चों के लिए अपनी जिंदगी को पूरी तरह बदल देती हैं। आज हम ऐसी मां के बारे...
नेशनल डेस्क. किसी भी बच्चे का पहला गुरु उसकी मां होती है। मां ही बच्चे को अच्छे और बुरे की समझ, समाज में रहने के तरीके और जीवन जीने के कौशल सिखाती है। कई माएं ऐसी होती हैं, जो चुनौतीपूर्ण बच्चों के लिए अपनी जिंदगी को पूरी तरह बदल देती हैं। आज हम ऐसी मां के बारे में बात करने जा रहे हैं, जिन्होंने बेटे के लिए अपना करियर छोड़ दिया और टीचर बन गईं।
दरअसल हम बात कर रहे हैं अंजलि दादा की, जिन्होंने अपने ऑटिज्म पीड़ित बेटे को पढ़ाने के लिए करियर छोड़ टीजर बन गईं। अब वे अन्य मांओं को ट्रेनिंग भी देती हैं। पिछले 18 साल में अंजलि ने 600 से अधिक मांओं को ट्रेनिंग दी है और ऑटिज्म पीड़ित बच्चों के लिए काम कर रही हैं।
जब उनके बेटे धनंजय की उम्र 3 साल थी, तब उन्हें पता चला कि वह ऑटिज्म से पीड़ित है। एक साल बाद अंजलि ने कई स्कूलों में उसे एडमिशन दिलाने की कोशिश की, लेकिन सभी ने मना कर दिया। तब उन्होंने घर पर ही अपने तरीके से पढ़ाना शुरू किया और इंटरनेट पर ऑटिज्म के बारे में जानकारी जुटाई। कुछ दोस्तों की मदद से उन्होंने दिल्ली के नेशनल सेंटर ऑफ ऑटिज्म के बारे में पता किया, जहां उन्होंने 2 साल तक ऑटिज्म पीड़ित बच्चों को पढ़ाने और ट्रेनिंग देने का तरीका सीखा।
इसके बाद अंजलि ने अपने बेटे को ट्रेनिंग देने के साथ-साथ एक संस्था "सोच" की स्थापना की। इस संस्था के माध्यम से उन्होंने ऑटिज्म पीड़ित बच्चों के माता-पिता को ट्रेनिंग देना शुरू किया। साथ ही वे कपूरथला में अपने बेटे के लिए एक सहायक स्कूल भी खोजने में सफल रहीं।
शुरुआत में कई कठिनाइयां आईं, लेकिन अंजलि ने अपने बेटे को सिखाया कि वह अलग हो सकता है, लेकिन किसी से कम नहीं। आज धनंजय 21 साल का हो चुका है और अपने बिजनेस की शुरुआत करने वाला है।