Edited By vasudha,Updated: 05 May, 2020 04:39 PM
कोरोना संक्रमण(कोविड-19) के 90 से 95 प्रतिशत मरीज ठीक हो जाते हैं लेकिन इस समय सबसे बड़ी समस्या यह है कि ऐसे रोगी काफी देर के बाद अस्पताल पहुंचते हैं जिससे यह वायरस जानलेवा बन जाता है। चिकित्सकों के मुताबिक मरीजों के देर से सामने आने से उनका मामला...
नेशनल डेस्क: कोरोना संक्रमण(कोविड-19) के 90 से 95 प्रतिशत मरीज ठीक हो जाते हैं लेकिन इस समय सबसे बड़ी समस्या यह है कि ऐसे रोगी काफी देर के बाद अस्पताल पहुंचते हैं जिससे यह वायरस जानलेवा बन जाता है। चिकित्सकों के मुताबिक मरीजों के देर से सामने आने से उनका मामला बिगड़ता है और इसके 80 प्रतिशत मामले बहुत हल्के लक्षणों वाले होते हैं और 15 प्रतिशत मामलों में चिकित्सा सपोर्ट और ऑक्सीजन और पांच प्रतिशत मामलों में आईसीयू और एंव वेंटीलेटर की आवश्यकता पड़ती है।
इसलिए कोरोना के मरीजों का पता लगते ही उन्हें चिकित्सकीय सुविधा दिए जाने की जरूरत है। अगर किसी का टेस्ट पहले हो चुका है तो उसे तुरंत अस्पताल जाकर उपचार कराना चाहिए।राहत की एक और बात यह है कि संक्रमितों की मृत्यु दर 3.2 फीसदी पर ही बनी हुई है जो पहले की तुलना में बेहद मामूली वद्धि मानी जा सकती है। सोमवार को मरीजों के ठीक होने की दर बढ़कर 27.45 फीसदी से अधिक हो गयी जबकि रोगियों की मृत्यु दर दशमलव एक वृद्धि के साथ 3.2 प्रतिशत हो गयी। इस समय कोरोना वायरस को लेकर लोगों में दहशत और भय का माहौल है लेकिन उन्हें सामने आने तथा इलाज कराने के लिए प्रोत्साहित किए जाने की आवश्यकता है तभी लोगों का जीवन बचाया जा सकता है।
देश में कोरोना वायरस से संक्रमण के मामले दोगुने होने की दर बढ़कर अब 12 दिन हो गई है जो कोरोना वायरस के संक्रमण को नियंत्रित करने के केन्द्र सरकार के प्रयासों की सफलता को दशार्ता है। मार्च में लॉकडाउन से पहले यह दर 3़2 दिन थी। स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार देश में इस समय 130 हॉटस्पॉट जिले, 284 गैर-हॉटस्पॉट जिले और 319 गैर-संक्रमित जिले हैं। इन जिलों को ग्रीन, ऑरेंज एवं रेड जोन में विभाजित किया गया है और भारत सरकार के दिशा-निदेर्शों के अनुसार ही इन्हें खोला जाएगा। देश में कोरोना वायरस के मरीजों की संख्या में बढ़ोत्तरी तो हो रही है लेकिन अभी तक हम सामुदायिक संक्रमण की स्टेज में नहीं आए हैं और यह सब पहले से की गई तैयारी और पहले चरण के लॉकडाउन तथा सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग) का ही नतीजा है।
भारत में अभी सामुदायिक संक्रमण का दौर शुरू नहीं हुआ है और कईं क्षेत्रों में यह स्थानीय स्तर पर देखने को मिला है तथा इसे “क्लस्टर आउटब्रेक' कहा जाता है। इन क्षेत्रों में मामलों को पता चलते ही तुरंत मामलों को गंभीरता से लिया जाता है और पूरे क्षेत्र के लिए 'कंटेनमेंट प्लान' बनाकर उस क्षेत्र को घेर लिया जाता है और इसके आसपास के क्षेत्र यापी “ बफर जोन पर पूरी नजर रखी जाती है और इसमें रहने वाले सभी लोगों के घर घर का सवेर्क्षण किया जाता है और लोगों के खांसी, जुकाम , बुखार तथा सांस लेने में दिक्कतें जैसी समस्याओं के बारे में आंकड़े जुटाए जाते हैं।