Edited By Punjab Kesari,Updated: 19 Jul, 2017 08:14 PM
नीतीश कुमार की भाजपा के साथ नजदिकयों के चलते भले ही पार्टी का एक धड़ा नीतीश कुमार से नाराज हो।
नई दिल्ली: नीतीश कुमार की भाजपा के साथ नजदिकयों के चलते भले ही पार्टी का एक धड़ा नीतीश कुमार से नाराज हो लेकिन इस नाराजगी के बावजूद नीतीश की पार्टी में टूट की संभावना न के बराबर है। दरअसल, दलबदल विरोधी कानून इस रास्ते में सबसे बड़ी बाधा है लेकिन इसके बावजूद यदि पार्टी के सांसद और विधायक पार्टी तोडऩे पर अमादा होते हैं तो उनकी संसद और विधासनभा सदस्यता रद्द हो जाएगी और बिहार को उपचुनाव के दौर से गुजरना पड़ेगा।
क्या है दलबदल विरोधी कानून
दलबदल विरोधी कानून के प्रावधान के मुताबिक किसी भी पार्टी को तोड़कर अलग धड़ा बनाने के लिए 2 तिहाई सदस्यों का साथ होना जरुरी है। बिहार विधानसभा में नीतीश की पार्टी के 71 सदस्य हैं तो कम से कम 50 विधायक तोडऩे पर ही इनकी विधानसभा सदस्यात बचेगी और पार्टी से अलग हुई धड़े को मान्यता मिल सकेगी। यही नियम सांसदों पर भी लागू होता है। नीतीश की पार्टी में नाराजगी इस हद तक नहीं है कि पार्टी के 50 विधायक और 9 सांसद नीतीश से अलग हो जाएं। लिहाजा संवेधानिक तौर पर नीतीश की पार्टी को कोई खतरा नजर नहीं आता।
क्यों नाराज हैं नीतीश के विधायक और सांसद
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार द्वारा भाजपा के प्रति सदभाव दिखाए जाने के बाद जदयू के मुस्लिम वोट और यादव विधायक नीतीश से नाराज बताए जा रहे हैं। ऐसे विधायकों की संख्या करीब डेढ़ दर्जन है। पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व अध्यक्ष शरद यादव का भी बीजेपी की तरफ झुकाव नहीं है। पार्टी के 12 सांसदों में से 6 भी इसी तरह की मुखालफत कर सकते हैं। मीडिया रिपोट्र्स के मुताबिक, सरफराज आलम, मुजाहिद आलम, सरफुद्दीन आलम और नौशाद आलम कुछ ऐसे नाम हैं जो जेडीयू के एनडीए में शामिल होने की दशा में नीतीश से बगावत कर सकते हैं।