Edited By Punjab Kesari,Updated: 13 Feb, 2018 10:07 PM
च्चतम न्यायालय ने आधार की अनिवार्यता मामले में याचिकाकर्ताओं के समक्ष कुछ महत्वपूर्ण सवाल खड़े करते हुए मंगलवार को पूछा कि कोई गुमनाम व्यक्ति सरकार की लाभकारी योजनाओं का लाभ कैसे उठा पाएगा? मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय...
नई दिल्ली: उच्चतम न्यायालय ने आधार की अनिवार्यता मामले में याचिकाकर्ताओं के समक्ष कुछ महत्वपूर्ण सवाल खड़े करते हुए मंगलवार को पूछा कि कोई गुमनाम व्यक्ति सरकार की लाभकारी योजनाओं का लाभ कैसे उठा पाएगा?
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच-सदस्यीय संविधान पीठ ने सुनवाई के दौरान कहा, "आप कह रहे हैं कि पहचान छुपाए रखना व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। अगर कोई व्यक्ति गुमनाम रहता है, तो सरकार द्वारा दिए जाने वाले लाभों का फायदा वह कैसे उठाएगा? संविधान के भाग चार में नीति निदेशक सिद्धान्त दिए गए हैं, जिसमें सरकार का नागरिकों के प्रति दायित्वों का वर्णन किया गया है।" संविधान पीठ के अन्य सदस्य हैं- न्यायमूर्ति ए के सीकरी, न्यायमूर्ति ए एम खानविलकर, न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति अशोक भूषण।
संविधान पीठ ने कहा कि आधार योजना का यह उद्देश्य हो सकता है कि लोगों का एक पहचान कार्ड अवश्य होना चाहिए। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने बहस के दौरान पूछा कि यदि लाभकारी योजनाओं की पात्रता आपकी पहचान पर निर्भर करती है, तो क्या सरकार को इसके सत्यापन की आवश्यकता नहीं होगी? न्यायालय ने यह सवाल तब किए, जब एक याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल सुब्रह्मण्यम ने आधार कानून की वैधानिकता को चुनौती देते हुए कहा कि यह बहुत ही खतरनाक कानून है। व्यक्ति को अपनी पहचान छुपाए रखने का मौलिक अधिकार है, इसे इस तरह सार्वजनिक नहीं किया जा सकता।
सुब्रह्मण्यम ने कहा कि इस आधार व्यवस्था ने व्यक्ति को 12 नंबर की संख्याओं में तब्दील कर दिया है। ऐसा नहीं है कि पहले सरकार लोगो को सब्सिडी का लाभ नही देती थी, उसके पास पंचायत और प्रशासनिक स्तर पर सब आंकड़े थे। उन्होंने कहा कि निजता का अधिकार व्यक्ति का मौलिक अधिकार है और यह शीर्ष अदालत ने अपने फैसले में कहा है। इससे पहले एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने अपनी बहस पूरी कर ली।
आधार कानून को गलत ठहराते हुए सिब्बल ने कहा कि मामले में आने वाला फैसला आजादी के बाद सबसे महत्वपूर्ण फैसला होगा। एडीएम, जबलपुर केस में मौलिक अधिकार के एक पहलू की सीमित व्याख्या की गई थी, जबकि यह मामला असीमित व्याख्या का है। उन्होंने कहा कि इस मुकदमे के निर्धारण से भारत मे आने वाली पीढ़ी का भविष्य भी तय होगा। यह तय हो जाएगा कि भविष्य की प्रणाली क्या होगी? मामले की सुनवाई 15 फरवरी (गुरुवार) को भी जारी रहेगी।