Edited By Seema Sharma,Updated: 29 Sep, 2020 01:12 PM
सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए एक व्यक्ति को रेप केस के आरोप से बरी कर दिया। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी महिला चाकू की नोंक पर यौन शोषण होने के बाद आरोपी को प्रेम पत्र नहीं लिखेगी और न ही उसके साथ चार साल तक लिव इन...
नेशनल डेस्कः सुप्रीम कोर्ट ने झारखंड हाईकोर्ट का फैसला पलटते हुए एक व्यक्ति को रेप केस के आरोप से बरी कर दिया। इस दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि कोई भी महिला चाकू की नोंक पर यौन शोषण होने के बाद आरोपी को प्रेम पत्र नहीं लिखेगी और न ही उसके साथ चार साल तक लिव इन में रहेगी। दरअसल 20 साल पहले एक महिला ने व्यक्ति पर बलात्कार और धोखाधड़ी का आरोप लगाया था। ट्रायल कोर्ट और झारखंड हाई कोर्ट ने महिला के आरोपों को सही मानते हुए शख्स को दोषी ठहरा दिया था।
सुप्रीम कोर्ट ने पलटा फैसला
सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आरएफ नरीमन, जस्टिस नवीन सिन्हा और जस्टिस इंदिरा बनर्जी की बेंच मामले की सुनवाई कर रही थी। बेंच को सबसे पहले महिला द्वारा बताई गई उसकी उम्र पर शक हुआ। दरअसल महिला ने कहा था कि घटना के वक्त 1995 में उसकी उम्र महज 13 साल की थी जबकि 1999 में जब उसने प्राथमिकी (FIR) दर्ज कराई तो मेडिकल जांच में उसकी उम्र तब 25 साल की पाई गई। यानी महिला ने अपनी उम्र आठ साल कम बताई थी। इसका साफ मतलब है कि 1995 में महिला की उम्र 13 साल नहीं बल्कि 21 साल थी। महिला ने अपनी एफआईआर में कहा कि आरोपी ने उससे शादी करने का वादा किया था। इसलिए वो दोनों पति-पत्नी की तरह रह रहे थे, यानि कि दोनों लिव इन में थे।
महिला के मुताबिक, चार साल बाद 1999 में शख्स ने किसी दूसरी महिला से शादी कर ली तो उसने बलात्कार और वादाखिलाफी का मुकद्दमा दर्ज करवा दिया। दोनों एक-दूसरे के प्यार तब काफी पागल थे और उनके बीच शारीरिक संबंध भी बन गए और लंबे समय तक दोनों ऐसा करते रहे। इस पर बेंच ने कहा कि महिला शख्स के घर में भी रही और दोनों चार साल तक रिलेशन में भी रहे। जब युवक की शादी किसी और से होने वाली थी उससे ठीक 7 दिन पहले महिला ने यपवक के खिलाफ एफआईआर करवाई इससे शक पैदा होता है कि दोनों के बीच चार साल तक संबंध रजामंदी से बने, इसे रेप नहीं कहा जा सकता। युवक द्वारा महिला से शादी न करने पर कोर्ट ने कहा कि साक्ष्यों की गहन पड़ताल करते हुए पाया कि महिला और पुरुष अलग-अलग धर्म के हैं जो दोनों के विवाह की राह का सबसे बड़ा रोड़ा बना।
महिला का परिवार चर्च में शादी करवाना चाहता था जबकि लड़के का मंदिर में। जस्टिस नवीन सिन्हा ने फैसला लिखते हुए कहा कि दोनों एक ही गांव के हैं इसलिए एक-दूसरे को अच्छी तरह जानते थे। एक-दूसरे को लिखे प्रेम पत्र से भी पता चलता है कि दोनों का प्यार काफी लंबा चला है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर दोनों की शादी हो जाती तो महिला युवक पर रेप का आरोप भी नहीं लगाती। दोनों की लिखी चिट्ठियों से पता चलता है कि युवक भी महिला से काफी प्रेम करता था और शादी भी करना चाहता था लेकिन धर्म अलग होने के कारण उसे मजबूरी में लड़की से अलग होना पड़ा। ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता था कि युवक ने महिला को झांसा या धोखा दिया और उसका यौन शोषण किया क्योंकि चार साल तक दोनों के बीच आपसी सहमति से संबंध बनें। साथ ही कोर्ट ने कहा कि महिला के प्रेम पत्र में उसने कई बार यह बात भी कबूली कि लड़के ने हमेशा उसका सम्मान किया और उसका व्यवहार भी अच्छा था। इन सब आधारों के तहत सुप्रीम कोर्ट ने शख्स को आरोपों से बरी कर दिया।