बच्चों में बढ़ रही यह बीमारी, PGI में हर महीने आ रहे 10 केस

Edited By ,Updated: 16 Nov, 2016 11:52 AM

advance eye center

ज्यादातर लोगों का सोचना है कि काला मोतिया सिर्फ बड़ी उम्र में ही होता है लेकिन पी.जी.आई. के एडवांस आई सैंटर में हर महीने 10 बच्चे इस बीमारी के इलाज के लिए आ रहे हैं जबकि 250 बच्चे फॉलोअप चैकअप के लिए आई सैंटर पहुंचते हैं।

चंडीगढ़(रवि ) : ज्यादातर लोगों का सोचना है कि काला मोतिया सिर्फ बड़ी उम्र में ही होता है लेकिन पी.जी.आई. के एडवांस आई सैंटर में हर महीने 10 बच्चे इस बीमारी के इलाज के लिए आ रहे हैं जबकि 250 बच्चे फॉलोअप चैकअप के लिए आई सैंटर पहुंचते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो आई इंजरी, और दवाइयों में मौजूद स्टेराइड बच्चों में काला मोतिया होने के लिए काफी जिम्मेदार है। पी.जी.आई. एडवांस आई सैंटर में बच्चों के साथ-साथ 1200 से 1500 तक बड़ी उम्र के मरीज भी काले मोतिया के लिए इलाज के लिए रजिस्टर किए जा रहे हैं। पूरे विश्व में 90 प्रतिशत केसों में आंखों की रोशनी जाने के लिए काला मोतियां ही एक मुख्य वजह है। डाक्टरों की मानें तो बीमारी के शुरूआती चरण में काला मोतिया का इलाज काफी आसानी से किया जा सकता है। लेकिन बीमारी का चरण बढ़ जाने पर इलाज में काफी मुश्किलें आ जाती है जिसमें आंखों को रोशनी जाने का भी खतरा बढ़ जाता है। 

 

भारत में 1 करोड़ 30 लाख लोग हैं इससे ग्रस्त :
भारत में 1 करोड़ 30 लाख लोग इस बीमारी के चपेट में हैं जिसमें 70 प्रतिशत लोगों को नहीं पता होता कि उन्हें काला मोतिया है या नहीं जिसकी वजह से वह अपनी आंखों की रोशनी खो देते हैं। डाक्टर दीक्षा की मानें तो दवाइयों में मौजूद स्टेराइड आंखों के कुछ हिस्सों पर ४यादा दबाव डाल देते हैं जिसकी वजह से भी काला मोतिया होने की संभावना बढ़ जाती है। साथ ही उन्होंने बताया कि आंखों की दवाई लेने के लिए किसी अच्छे डाक्टर के पास ही जाए। वहीं कुछ लोग बिना किसी परामर्श के आई ड्राप्स लेना शुरू कर देते हैं जो कि गलत है। वहीं आनुवांशिकता, उम्र, डायबटिज, पास की नजर कमजोर होने से भी इस बीमारी के होने के चांस बढ़ जाते हैं। डाक्टर्स की मानें तो इस बीमारी के शुरूआती लक्षण नहीं होते जिसकी वजह से इसे आसानी से डायग्रोस करने में परेशानी होती है। लेकिन जितनी इसका इलाज शुरू होगा उतना ही आंख की रोशनी जाने का खतरा कम हो जाता है।


 

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