महाकालेश्वर मंदिर पर आदेश के बाद बोले जस्टिस अरुण मिश्रा- शिव की कृपा से आखिरी फैसला भी हो गया

Edited By Yaspal,Updated: 01 Sep, 2020 07:09 PM

after the order at the mahakaleshwar temple justice arun mishra

उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के प्रबंधन के बाबत सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश जारी किए हैं। अपना फैसला सुनाने के बाद मंगलवार को जस्टिस अरुण मिश्रा साथी जजों से बोले, “शिवजी की कृपा से यह आखिरी फैसला भी हो गया।“ कोर्ट ने महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की सुरक्षा...

नई दिल्लीः उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर के प्रबंधन के बाबत सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश जारी किए हैं। अपना फैसला सुनाने के बाद मंगलवार को जस्टिस अरुण मिश्रा साथी जजों से बोले, “शिवजी की कृपा से यह आखिरी फैसला भी हो गया।“ कोर्ट ने महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की सुरक्षा को लेकर दिशा-निर्देश जारी किए हैं। हाल ही में जस्टिस मिश्रा ने अपने विदाई समारोह में शामिल करने से इनकार कर दिया था। इस फैसले की वजह से कोरोना महामारी को माना जा रहा है।

पहले भी शीर्ष न्यायालय ने महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग पर भस्म और अन्य लेपन से हो रहे प्रभाव पर कुछ दिशा निर्देश दिए थे। बाद में चर्चा होने पर कोर्ट ने अपना आदेश ये कहते हुए संशोधित किया था कि पूजा अर्चना और सेवा भोग कैसे हो ये तय करना हमारा काम नहीं है। ये तो मन्दिर प्रबन्धन और पुरोहितों पुजारियों को ही तय करने दिया जाए। मामले की विस्तृत सुनवाई के बाद जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच ने मन्दिर प्रबन्धन को दिशा निर्देश जारी किए हैं। इसमें भक्तों के प्रवेश और अन्य उपचार को लेकर विस्तार से निर्देश हैं। कोर्ट के निर्देश जल्दी ही वेबसाइट पर आएंगे।

दरअसल, जस्टिस अरुण मिश्रा बुधवार को रिटायर होने वाले हैं। सोमवार को उन्होंने प्रशांत भूषण अवमानना केस समेत चार मामलों में फैसला सुनाया था। मंगलवार को महाकालेश्वर मंदिर के प्रबंधन को लेकर आदेश सुनाने से पहले AGR मामले पर भी फैसला सुनाया। बता दें कि सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अरुण मिश्रा की बेंच ने ही 2018 में दिशानिर्देश दिए थे, जिनका अब संशोधित, परिवर्धित और आधुनिक रूप आया है। उज्जैन स्थित महाकालेश्वर मंदिर के शिवलिंग के मामले में अक्टूबर 2018 में कोर्ट ने मंदिर प्रशासन को 8 सुझावों पर अमल करने को हरी झंडी दी थी। श्रद्धालु 500 ML से ज्यादा जल नहीं चढाएंगे। जल सिर्फ RO का होगा। भस्म आरती के दौरान शिवलिंग को सूखे सूती कपडे से पूरा ढका जाएगा. अभी तक 15 दिनों के लिए आधा ढका जाता था। अभिषेक के लिए हर श्रद्धालु को 1.25 लीटर दूध या पंचामृत चढाने की इजाजत होगी। 

इसके अलावा, शिवलिंग पर शुगर पाउडर लगाने की इजातत नहीं होगी बल्कि देसी खांडसारी के इस्तेमाल को बढावा दिया जाएगा। नमी से बचाने के लिए गर्भ गृह में ड्रायर व पंखे लगाए जाएंगे। बेल पत्र व फूल पत्ती शिवलिंग के ऊपरी भाग पर ही चढ़ाए जाएंगे ताकि शिवलिंग के पत्थर को प्राकृतिक सांस लेने में कोई दिक्कत ना हो। शाम पांच बजे के बाद अभिषेक पूरा होने के बाद शिवलिंग की पूरी सफाई होगी और इसके बाद सिर्फ सूखी पूजा होगी। अभी तक सीवर के लिए चल रही पारंपरिक तकनीक ही चलती रहेगी क्योंकि सीवर ट्रीटमेंट प्लांट  के बनने में लंबा समय लगेगा।

सुप्रीम कोर्ट ने इस पर ASI, जियोलाजिकल और याचिकाकर्ता से आपत्ति या सुझाव भी मांगे थे। लेकिन इसके बाद जब अगली सुनवाई नवम्बर 2018 के आखिरी हफ्ते में हुई तो सुप्रीम कोर्ट ने मंदिर प्रबंधन समिति को तुरंत वो नोटिस बोर्ड हटाने को कहा जिसमें लिखा गया था कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर पूजा के नए नियम बनाए गए हैं।

कोर्ट ने कहा कि ये आदेश कभी नहीं दिया कि धार्मिक अनुष्ठान कैसे किए जाएं और ना ही ये कहा कि भस्म आरती कैसे हो। सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि कोर्ट को मंदिर और पूजा के रीति रिवाजों से कोई लेना देना नहीं है. कोर्ट ने ये मामला सिर्फ शिवलिंग की सुरक्षा के लिए सुना और एक्सपर्ट कमेटी बनाई। कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर मंदिर प्रबंधन समिति ने ये प्रस्ताव पेश किए थे। सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी कि अगर इस मामले में मीडिया गलत रिपोर्टिंग करता है या पक्षकार मीडिया में गलत बयानी करता है तो उसके खिलाफ कानून के मुताबिक सख्त कार्रवाई की जाएगी।

बता दें कि जस्टिस अरूण मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित होने वाले उनके विदाई समारोह में शामिल होने से मना तो किया साथ ही यह भी कहा कि कोरोना संकट काल के मद्देनज़र वह समारोह का आयोजन नहीं चाहते क्योंकि उनकी अंतरात्मा इसकी अनुमति नहीं देती है।

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