आसमान में मौत की घंटी साबित हो रहे वायुसेना के पुराने विमान

Edited By Seema Sharma,Updated: 27 Jul, 2018 09:52 AM

air force old plane proves death bell in the sky

मशीनरी को समय-समय पर रिपेयर व अपग्रेड करने के साथ-साथ कंडम घोषित करने की आवश्यकता होती है लेकिन वायुसेना में अभी भी 40-50 साल पुराने विमान हैं जोकि आसमान मेें मौत की घंटी साबित हो रहे हैं। 2007 से 2015 तक 8 सालों में वायुसेना के 45 मिग क्रैश हो चुके...

जालंधर(पुनीत डोगरा): मशीनरी को समय-समय पर रिपेयर व अपग्रेड करने के साथ-साथ कंडम घोषित करने की आवश्यकता होती है लेकिन वायुसेना में अभी भी 40-50 साल पुराने विमान हैं जोकि आसमान मेें मौत की घंटी साबित हो रहे हैं। 2007 से 2015 तक 8 सालों में वायुसेना के 45 मिग क्रैश हो चुके हैं। अपग्रेड न होने के कारण पुराने पड़ चुके मिग विमान लगातार हादसों के शिकार हो रहे हैं। इन विमानों को वायुसेना से हटाने की प्रक्रिया में हो रही देरी भी इसके लिए जिम्मेदार है। पहले इन विमानों को 2015 तक हटाने की योजना थी लेकिन नए विमानों के अधिग्रहण में देरी के कारण यह अवधि 2017 की गई लेकिन अभी भी 150 से अधिक विमानों का इस्तेमाल भारतीय वायुसेना कर रही है जोकि 40-50 साल पुराने हैं। सूत्रों के अनुसार इनमें से काफी विमान हैं जिन्हें बीच-बीच में अपग्रेड किया गया है, किन्तु यह कार्य हिन्दुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड ने अपने संसाधनों से किया है। इसके लिए उपयुक्त कलपुर्जों की प्राप्ति रूस से नहीं हो रही है, इसलिए अपग्रेड करना भी ज्यादा प्रभावी नहीं हुआ है। रक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट भी इस बात की पुष्टि करती है।
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27 विमान तकनीकी खामियों का शिकार
रक्षा मंत्रालय की रिपोर्ट के मुताबिक 2007-15 के बीच 45 मिग हादसे का शिकार हुए। इस रिपोर्ट के अनुसार 2007-15 के बीच वायुसेना के कुल 93 विमान हादसे के शिकार हुए जिनमें 45 मिग विमान थे। इनमें मिग-21, मिग-27 तथा मिग-29 शामिल हैं। हर विमान हादसे के बाद कोर्ट ऑफ इंक्वायरी होती है जिसमें पता चला है कि हादसे के शिकार 45 मिग विमानों में से 27 विमान तकनीकी खामियों के कारण हादसे के शिकार हुए जबकि 18 हादसे अन्य कारणों से हुए।
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योजना के बावजूद नहीं हटाए गए मिग 
बता दें कि 23 फरवरी 2011 में तत्कालीन रक्षा मंत्री ए.के. एंटनी ने संसद में कहा था कि 2017 तक मिग विमानों को वायुसेना से हटा लिया जाएगा। उन्होंने कहा था कि इसके लिए बाकायदा कार्य योजना बनाई जा चुकी है। हाल में संसदीय समिति ने इस मिग विमानों को हटाने में देरी पर चिंता व्यक्त की थी।  रक्षा मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार मिग विमानों को हटाने में देरी की वजह नए विमानों का अधिग्रहण नहीं हो पाना है। यू.पी.ए. सरकार में 126 लड़ाकू विमानों की खरीद लंबे समय तक अधर में लटकी रही। इस उपरांत एन.डी.ए. सरकार आने पर 36 राफेल विमान खरीदे गए लेकिन उनकी आपूर्ति होने में अभी समय है। मिग की जगह लेने के लिए स्वदेशी तेजस के निर्माण में भी विलंब हुआ। तेजस का लड़ाकू संस्करण अभी भी तैयार नहीं है। मिग की जगह लेने के लिए सुखोई एम.के.आई. विमानों की आपूर्ति में भी विलंब हुआ। इनके चलते वायुसेना मिग विमानों से काम चला रही है।
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जरूरत 45 स्क्वाड्रन की, मौजूद 36
बीते दिनों संसद में बताया गया कि 2015 से अब तक वायुसेना के 26 विमान हादसे के शिकार हुए हैं। 3 मई 2002 को जालंधर में भी एक मिग क्रैश हुआ था। वायुसेना को चीन और पाकिस्तान की चुनौती से निपटने के लिए लड़ाकू विमानों के 45 स्क्वाड्रन की जरूरत है। एक स्क्वाड्रन में करीब 18 लड़ाकू विमान होते हैं लेकिन अभी सिर्फ 36 स्क्वाड्रन ही वायुसेना के पास हैं। इनमें भी करीब 8 मिग श्रेणी के विमानों की है। यदि इन्हें हटाया गया तो वायुसेना की 8 स्क्वाड्रन कम हो जाएगी। 

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