वायु प्रदूषण से एंटीबायोटिक दवाएं हो रहीं बेअसर, जानलेवा बनी समस्या

Edited By Seema Sharma,Updated: 21 Nov, 2019 08:58 AM

air pollution is neutralizing antibiotics

बीते कई दिनों से राजधानी शहर का संभवत: हर शख्स दमघोंटू जहरीले वायु प्रदूषण से जूझ रहा है। विशेषज्ञों का तर्क है कि इसके चलते बैक्टीरिया की क्षमता में बढ़ौतरी हो जाने के कारण सांस से जुड़ी परेशानी के इलाज में दी जाने वाली एंटीबायटिक दवाएं बेअसर ही...

नई दिल्ली: बीते कई दिनों से राजधानी शहर का संभवत: हर शख्स दमघोंटू जहरीले वायु प्रदूषण से जूझ रहा है। विशेषज्ञों का तर्क है कि इसके चलते बैक्टीरिया की क्षमता में बढ़ौतरी हो जाने के कारण सांस से जुड़ी परेशानी के इलाज में दी जाने वाली एंटीबायटिक दवाएं बेअसर ही साबित हो रही हैं। अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स), आर.एम.एल. एवं दिल्ली विश्वविद्यालय से संबद्ध वल्लभ भाई पटेल चैस्ट इंस्टीच्यूट के विशेषज्ञों ने कहा कि शोध से हमें यह समझने में मदद मिली है कि किस तरह वायु प्रदूषण मानव जीवन को प्रभावित करता है। इससे पता चलता है कि इन्फैक्शन पैदा करने वाले बैक्टीरिया पर वायु प्रदूषण का काफी प्रभाव पड़ता है। इस शोध में बताया गया है कि वायु प्रदूषण से इन्फैक्शन का प्रभाव बढ़ जाता है।

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नाक, गले और फेफड़े पर असर
इस शोध में बताया गया है कि वायु प्रदूषण कैसे हमारे शरीर के श्वसन तंत्र (नाक, गले और फेफड़े) को प्रभावित करता है। अध्ययन दौरान 4,567 ओ.पी.डी. एमरजैंसी में आने वाले मरीजों पर किया गया। आर.एम.एल. हॉस्पिटल में माइक्रोबायोलॉजी विभाग के सहायक प्रो. डा. अरविंद कुमार के अनुसार वायु प्रदूषण का प्रमुख घटक कार्बन है। यह डीजल, जैव ईंधन व बायोमास के जलने से पैदा होता है। यह प्रदूषक जीवाणु के उत्पन्न होने और उसके समूह बनाने की प्रक्रिया को बदल देता है।

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ऐसे हुआ शोध
यह शोध दो मानव रोगाणुओं स्टेफाइलोकोकस अयूरियस और स्ट्रैप्टोकोकस निमोनिया पर किया गया है। ये दोनों प्रमुख श्वसन संबंधी रोगकारक हैं जो एंटीबायटिक के प्रति उच्च स्तर का प्रतिरोध दिखाते हैं। कार्बन स्टेफाइलोकोकस अयूरियस की एंटीबायटिक बर्दाश्त करने की क्षमता को बदल देता है। यह स्टेफालोकोकस निमोनिया के पेनिसिलीन के प्रति प्रतिरोधकता को भी बढ़ा देता है। इसके अलावा पाया गया कि कार्बन स्ट्रैप्टोकोकस निमोनिया को नाक से निचले श्वसन तंत्र में फैलाता है, जिससे बीमारी का खतरा बढ़ जाता है।

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जानलेवा बनी समस्या
एम्स के निदेशक डा. रणदीप गुलेरिया के अनुसार एंटीबायटिक का इस्तेमाल इतनी तेजी से हो रहा है कि विभिन्न बैक्टीरिया पर इसका असर ही नहीं हो रहा। इससे ऐसे मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है जिसके बैक्टीरिया पर किसी भी एंटीबायटिक का असर नहीं होता है और उनकी मौत हो जाती है। एम्स में ही माइक्रोबायोलॉजी यूनिट के डा. विजय कुमार गुर्जर के अनुसार आई.सी.यू. में दाखिल होने वाले करीब 70 फीसदी मरीजों पर एंटीबायटिक बेअसर हो जाता है।

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ऐसे करें बचाव
पटेल चैस्ट इंस्टीच्यूट के निदेशक डा. राज कुमार के अनुसार इन बैक्टीरियाओं से बचाव का एक ही उपाय है-सफाई। ये बैक्टीरिया आमतौर पर गंदे हाथ, खाने-पीने, सांस लेने और गंदे वातावरण से शरीर में आते हैं। इन्हें साफ-सफाई से ही रोका जा सकता है। इसमें भी हाथों की सफाई बेहद अहम है।

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