रेलवे लाइन के किनारे झुग्गियां हटाने से पहले इनके पुनर्वास के लिए सुप्रीम कोर्ट पहुंचे अजय माकन

Edited By Yaspal,Updated: 11 Sep, 2020 06:22 PM

ajay maken reached supreme court to rehabilitate slums

दिल्ली में रेलवे लाइन के किनारे बनी झुग्गियों को हटाने से पहले उनके पुनर्वास की व्यवस्था कराने के लिये कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय माकन ने सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन दायर किया है। शीर्ष अदालत ने 31 अगस्त को एक फैसले में दिल्ली में रेलवे लाइन के...

नई दिल्लीः दिल्ली में रेलवे लाइन के किनारे बनी झुग्गियों को हटाने से पहले उनके पुनर्वास की व्यवस्था कराने के लिए कांग्रेस के वरिष्ठ नेता अजय माकन ने सुप्रीम कोर्ट में एक आवेदन दायर किया है। शीर्ष अदालत ने 31 अगस्त को एक फैसले में दिल्ली में रेलवे लाइन के किनारे बनी 48,000 झुग्गियों को तीन महीने के अंदर हटाने का निर्देश दिया था। अदालत ने कहा था कि इस आदेश पर अमल में किसी प्रकार का राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं हो। माकन द्वारा दायर इस आवेदन में रेलवे, दिल्ली सरकार और दिल्ली शहरी आवास सुधार बोर्ड को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि इन झुग्गियों को हटाने से पहले यहां रहने वालों को अन्यत्र बसाया जाए।

आवेदन में रेल मंत्रालय, दिल्ली सरकार और दिल्ली शहरी आवास सुधार बोर्ड को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि इस मामले में दिल्ली स्लम और जेजे पुनर्वास नीति 2015 और झुग्गियों को हटाने संबंधी प्रोटोकाल का अक्षरश: पालन किया जाए। अधिवक्ता अमन पंवार और नितिन सलूजा के माध्यम से दायर आवेदन में कहा गया है कि अदालत के 31 अगस्त के आदेश के बाद रेल मंत्रालय ने झुग्गियां गिराने के लिए नोटिस जारी किए हैं और इसके लिए 11 और 14 सितंबर को अभियान चलाया जाएगा। आवेदन में कहा गया है कि झुग्गी बस्तियों को हटाने से पहले इनकी आबादी का सर्वे और पुनर्वास करने के बारे में भारत सरकार और दिल्ली सरकार की तमाम नीतियों का पालन नहीं किया गया है और न ही इस तथ्य को न्यायालय के संज्ञान में लाया गया।

आवेदन में कोविड-19 महामारी का हवाला देते हुए कहा गया है कि इस परिस्थिति में पहले पुनर्वास की व्यवस्था के बगैर ही इन झुग्गियों को गिराना बहुत ही जोखिम भरा होगा क्योंकि इनमें रहने वाली ढाई लाख से ज्यादा की आबादी को अपने आवास और आजीविका की तलाश में दूसरी जगह भटकना होगा। आवेदन में कहा गया है कि चूंकि इस मामले में झुग्गी बस्तियों में रहने वाले किसी भी तरह से पक्षकार नहीं थे और ऐसी स्थिति में उनसे संबंधित दस्तावेज अदालत के समक्ष नहीं लाए जा सके। आवेदन में 1986 की संविधान पीठ के फैसले का हवाला दिया है जिसमे कहा गया था कि फुटपाथ और सार्वजनिक संपत्तियों पर अपनी जिंदगी बरस कर रहे लोगों को अपना पक्ष रखने से वंचित करना न्यायोचित नहीं होगा।

अजय माकन और सह आवेदक कैलाश पंडित ने कहा कि वे प्रभावित आबादी को बेदखल करने से पहले इनके पुनर्वास की व्यवस्था के अनुरोध के साथ इस मामले में अतिरिक्त निर्देशों के लिए यह आवेदन दायर कर रहे हैं। इसमें दलील दी गयी है कि अदालत ने रेलवे लाइन के साथ बनी 48,000 झुग्गियों को हटाने का निर्देश देने के साथ ही यह भी कहा है कि कोई अदालत इस प्रक्रिया पर रोक नहीं लगाएगी जो न्याय प्राप्त करने के अधिकार में बाधा डालने के समान है। अदालत ने इस फैसले मे दिल्ली में 140 किलोमीटर तक रेल पटरियों के किनारे बनीं 48,000 झुग्गी बस्तियों को तीन माह के भीतर हटाने का निर्देश देते हुए कहा था कि इस कदम के क्रियान्वयन में किसी तरह का राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए।

पीठ ने इलाके में अतिक्रमण हटाने के संबंध में किसी भी अदालत को किसी तरह का स्थगन आदेश देने से रोकते हुए कहा कि रेल पटरियों के पास अतिक्रमण के संबंध में अगर कोई अंतरिम आदेश पारित किया जाता है तो वह प्रभावी नहीं होगा। पीठ ने कहा, “हम सभी हितधारकों को निर्देश देते हैं कि झुग्गियों को हटाने के लिए व्यापक योजना बनाई जाए और उसका क्रियान्वयन चरणबद्ध तरीके से हो। सुरक्षित क्षेत्रों में अतिक्रमणों को तीन माह के भीतर हटाया जाए और किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप, राजनीतिक या कोई और, नहीं होना चाहिए और किसी अदालत को ऐसे इलाकों में अतिक्रमण हटाने के संबंध में किसी तरह की रोक नहीं लगानी चाहिए।” पीठ ने कहा कि अगर अतिक्रमणों के संबंध में कोई अंतरिम आदेश दिया जाता है तो वह प्रभावी नहीं होगा।

Related Story

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!