Edited By Punjab Kesari,Updated: 03 Jan, 2018 10:13 AM
क्या यू.पी.ए. के घटक दल गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस से खुद को दूर कर रहे हैं! बहुत से राजनीतिक पर्यवेक्षक ऐसा ही सोचते हैं। उन्होंने इस संबंधी हाल ही में एक उदाहरण दिया जिसमें कांग्रेस सांसदों द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से...
नेशनल डेस्कः क्या यू.पी.ए. के घटक दल गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद कांग्रेस से खुद को दूर कर रहे हैं! बहुत से राजनीतिक पर्यवेक्षक ऐसा ही सोचते हैं। उन्होंने इस संबंधी हाल ही में एक उदाहरण दिया जिसमें कांग्रेस सांसदों द्वारा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तरफ से पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के खिलाफ की गई आपत्तिजनक टिप्पणी के मामले को लेकर लोकसभा से बहिष्कार किया गया, जबकि यू.पी.ए. के घटक दलों ने ऐसा नहीं किया। यहां तक कि कांग्रेस के करीबी समझे जाने वाले राजद के सदस्यों ने भी कांग्रेस का साथ नहीं दिया। इसी तरह केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े की संविधान में बदलाव संबंधी की गई टिप्पणी पर भी घटक दल कांग्रेस के साथ एकजुट दिखाई नहीं दिए।
गैर-भाजपा पार्टियों में से किसी ने भी सदन में एकता नहीं दिखाई। कहा जाता है कि गुजरात चुनाव के बाद यू.पी.ए. के घटक दलों, विशेषकर तृणमूल कांग्रेस, राकांपा और सपा ने इस बात की आशंका व्यक्त की कि कांग्रेस राहुल गांधी को संयुक्त रूप से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार 2019 के लोकसभा चुनावों में पेश कर सकती है। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का कहना है कि ये दल ऐसा नहीं चाहते इसलिए उन्होंने सदन में कांग्रेस से अपनी दूरी बनाए रखी। महत्वपूर्ण बात यह है कि ममता के बहुत करीबी तृणमूल कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य डैरेक ओ’ ब्रायन ने हाल ही में कहा था कि अगला लोकसभा चुनाव ममता बनर्जी के नेतृत्व में लड़ा जाना चाहिए। यह कांग्रेस के लिए खतरे की घंटी है।