Edited By ,Updated: 12 Jun, 2015 11:45 AM
मणिपुर और नागालैंड से लगती म्यांमार सीमा में अंदर तक घुसकर उग्रवादियों के खिलाफ चलाए गए ऑपरेशन में सेना के 100 से भी अधिक छाताधारी कमांडो और वायुसेना के हेलिकॉप्टरों ने हिस्सा लिया।
नई दिल्ली: मणिपुर और नागालैंड से लगती म्यांमार सीमा में अंदर तक घुसकर उग्रवादियों के खिलाफ चलाए गए ऑपरेशन में सेना के 100 से भी अधिक छाताधारी कमांडो और वायुसेना के हेलिकॉप्टरों ने हिस्सा लिया। लेकिन इस अभियान में मुख्य भूमिका निभाई राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल ने। डोभाल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ बंगलादेश के दौरे पर नहीं गए थे। प्रधानमंत्री के दौरे पर जाने से ठीक पहले डोभाल ने प्लान बदल लिया था। वह बंगलादेश जाने की बजाय मणिपुर पहुंचे, जहां पर 4 जून को आतंकियों के हमले में 18 जवान शहीद हो गए थे।
डोभाल के नेतृत्व में तैयार हुआ ऑपरेशन प्लान
डोभाल को ऑपरेशन चलाने में माहिर माना जाता है। पिछले कुछ दिनों तक वह मणिपुर में डटे रहे। इस दौरान उन्होंने सेना और इंटेलीजेंस एजैंसियों से मिली सूचनाओं पर नजर रखी। इसी के बाद इंडियन आर्मी ने म्यांमार बॉर्डर पर अहम ऑपरेशन को अंजाम दिया और उग्रवादियों को मार गिराया। इस ऑपरेशन को प्लान करने के लिए ही राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार पी.एम. के साथ बंगलादेश के अहम दौरे पर नहीं गए।
एक सप्ताह पहले ही विदेश सचिव एस जयशंकर ने गुपचुप तरीके से म्यांमार का दौरा किया था। इस दौरे के बारे में ज्यादा जानकारी नहीं दी गई है। इसी का नतीजा रहा कि मंगलवार को चले ऑपरेशन के दौरान म्यांमार सरकार चुप्पी साधे रही। इस बीच भारत ने ट्रैक किया है कि म्यांमार के अंदर उग्रवादियों की एक्टिविटी अचानक बढ़ गई है। रिपोर्ट्स के मुताबिक म्यांमार आर्मी ने मणिपुर के उग्रवादियों के कुछ ठिकाने भी साफ किए हैं। जून में भारतीय बलों पर हुए हमले में देखा गया था कि उग्रवादी आधुनिक हथियार इस्तेमाल कर रहे थे। भारत को यकीन है कि उन्हें ये बाहरी एजैंसियों से ही मिले हैं।
काम आया अजीत डोभाल का अनुभव
राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल मणिपुर में इंटेलीजैंस इनपुट्स पर नजर रख रहे थे। डोभाल जब आई.बी. में थे, तब उन्हें 186 में पूर्वोत्तर में उग्रवादियों के खिलाफ खुफिया अभियान चलाने का अनुभव है। उनका अंडरकवर ऑपरेशन इतना जबरदस्त था कि लालडेंगा उग्रवादी समूह के 7 में से 6 कमांडरों को उन्होंने भारत के पक्ष में कर लिया था। बाकी उग्रवादियों को भी मजबूर होकर भारत के साथ शांति समझौता करना पड़ा था। 168 के केरल बैच के आई.पी.एस. अफसर अजीत डोभाल 6 साल पाकिस्तान में अंडरकवर एजैंट रहे हैं। वे पाकिस्तान में बोली जाने वाली उर्दू सहित कई देशों की भाषाएं जानते हैं। एन.एस.ए. बनने के बाद वे सभी खुफिया एजैंंसियों के प्रमुखों से दिन में 10 बार से ज्यादा बात करते हैं। ऑपरेशन ब्लूस्टार के 4 साल बाद 1988 में अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में एक और अभियान ऑपरेशन ब्लैक थंडर को अंजाम दिया गया। मंदिर के अंदर दोबारा कुछ आतंकी छिप गए थे। तब डोभाल वहां रिक्शा चालक बनकर पहुंचे थे। कई दिनों तक आतंकियों ने उन पर नजर रखी और एक दिन बुला लिया। डोभाल ने आतंकियों को भरोसा दिलाया कि वे आई.एस.आई. एजैंंट हैं और मदद के लिए आए हैं।
सोमवार रात से ही शुरू हो गया था ऑपरेशन
जोरदार प्लानिंग के बाद सोमवार देर रात ही भारतीय हैलीकॉप्टर्स ने पैरा कमांडोज को म्यांमार सीमा के अंदर एयरड्रॉप किया। मंगलवार तड़के 3 बजे उनका ऑपरेशन शुरू हो गया। हालांकि, भारतीय राजदूत इसके बारे में म्यांमार के विदेश मंत्रालय में उस वक्त बता पाए, जब मंगलवार सुबह तयशुदा वक्त पर उनके दफ्तर खुले। कमांडोज ने 13 घंटे के ऑपरेशन में दोषी उग्रवादियों को ठिकाने लगा दिया। इसमें इंडियन एयरफोर्स के हैलीकॉप्टर और ड्रोन्स ने स्पैशल कमांडोज की मदद की। कमांडोज म्यांमार के 7 कि.मी. अंदर तक घुस गए। ऑपरेशन में भाग लेने वाले कमांडोज का फोटो भी एजैंसी के माध्यम से जारी किया गया है लेकिन किसी का भी चेहरा साफ नहीं दिखाया गया है। ऐसा उनकी पहचान गुप्त रखने के लिए किया जा रहा है। इंटेलीजैंस के इनपुट्स के आधार पर कमांडोज नैशनल सोशलिस्ट काऊंसिल ऑफ नागालैंड (खापलांग) के कैंपों तक चुपचाप पहुंचे। कमांडोज को इन उग्रवादियों के कैंपों तक पहुंचने के लिए सैंकड़ों मीटर तक रेंग कर जाना पड़ा। तकनीकी एक्सपर्ट्स ने पुष्टि की कि आतंकी इन्हीं कैम्पों में हैं।