राजीव गांधी हत्याकांड: हत्‍यारों को सुप्रीम कोर्ट ने छोडऩे से किया इंकार

Edited By ,Updated: 15 Jul, 2015 08:32 PM

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सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने बुधवार को राजीव गांधी के हत्यारों को छोडऩे के आदेश पर रोक हटाने से इंकार कर दिया है।

लखनऊ: सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने बुधवार को राजीव गांधी के हत्यारों को छोडऩे के आदेश पर रोक हटाने से इंकार कर दिया है। आपको बता दें कि इससे पहले अपने कार्यकाल के अंतिम दिन सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पी. सदाशिवम ने राजीव गांधी के हत्‍यारों का मामला संवैधानिक बेंच को सौंप दिया था। सुप्रीम कोर्ट के मुख्‍य न्यायाधीश एच एल दत्‍तू, जस्टिस इब्राहिम कालिफुल्‍ला, पिंकी घोष, ए एम सेपरे और यू यू ललित की संवैधानिक पीठ ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि इस आदेश को किसी पूर्व आदेश से जोड़कर नहीं देखना चाहिए। ये मामला राजीव गांधी के हत्यारों मरुगन, पेरारीवलन और संथन की समय से पहले रिहाई का है। तमिलनाडु सरकार ने तीनों को समय से पहले रिहा करने का आदेश दिया था।

दरअसल, साल 2008 में तमिलनाडु सरकार ने रविचंद्रन की रिहाई से मना किया था। वहीं तमिलनाडु सरकार ने बाकी तीनों को समय से पहले रिहा करने का आदेश दिया। इस साल 18 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने मरुगन, पेरारीवलन और संथन की सज़ा-ए-मौत को उम्रकैद में तब्दील किया था। इसके लिए दया याचिका पर हुई 11 साल की देरी को वजह बताया गया था। इसके बाद इस साल 18 फरवरी को सुप्रीम कोर्ट ने इन तीनों की मौत की सजा को आजीवन कारावास की सजा में बदल दिया। 
 
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उनकी दया याचिका पर अत्यधिक और बिना कोई वजह बताए की गई देरी उनकी सजा को कम करने का एक वैध आधार है। 19 फरवरी को तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने कोड ऑफ क्रिमिनल प्रक्रिया के तहत इन तीनों की समय से पहले रिहाई की घोषणा कर दी थी। इस निर्णय से भौचक केंद्र सरकार इसके खिलाफ 20  फरवरी को सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई और कोर्ट ने इस फैसले पर रोक लगा दी।
 
कब-क्या हुआ?
21 मई 1991 को तमिलनाडू के श्री पैरंबदूर में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की मानव बम से हत्या कर दी गई। इस हत्याकांड के 26 दोषियों को सबसे पहले 1998 में फांसी की सजा मिली। 2000 में इस सजा पर सुप्रीम कोर्ट ने भी मुहर लगा दी। इसके बाद संथन, मुरुगन और पेरारिवलन ने राष्ट्रपति को दया याचिका भेजी। जिसे 2011 में खारिज कर दिया गया। और इन तीनों ही हत्यारों को फांसी पर चढ़ाने की तैयारी होने लगी। लेकिन तब मद्रास हाईकोर्ट ने इनकी फांसी की सजा पर रोक लगा दी और इसके बाद मामला फिर सुप्रीम कोर्ट में आ गया था। इससे पहले दोषियों में शामिल मुरुगन की पत्नी नलिनी की फांसी को सोनिया गांधी की अपील पर उम्रकैद में बदल दिया गया था।

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