आरक्षण की नीति पर हो पुर्नविचार मोहन भागवत का सही बयान

Edited By ,Updated: 22 Sep, 2015 02:14 AM

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सरकारी सेवाओं व संस्थाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं रखने वाले पिछड़े समुदायों व अनुसूचित जातियों और जनजातियों में सामाजिक व शैक्षिक पिछड़ापन दूर करने के लिए भारत सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों व

सरकारी सेवाओं व संस्थाओं में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं रखने वाले पिछड़े समुदायों व अनुसूचित जातियों और जनजातियों में सामाजिक व शैक्षिक पिछड़ापन दूर करने के लिए भारत सरकार ने सार्वजनिक उपक्रमों व निजी शिक्षा संस्थानों में पदों व सीटों का प्रतिशत आरक्षित करने की कोटा प्रणाली तय की हुई है।

इस समय जबकि पाटीदार तथा गुर्जर सहित कुछ वर्गों द्वारा कुछ महीनों से ओ.बी.सी. कोटे से आरक्षण की मांग को लेकर किए जा रहे आंदोलन के चलते देश का राजनीतिक वातावरण गर्माया हुआ है, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक श्री मोहन भागवत ने एक वर्ग पर आरक्षण को लेकर राजनीति करने व उसके दुरुपयोग का आरोप लगाया है। 
 
संघ के मुखपत्रों ‘पांचजन्य’ और ‘आर्गेनाइजर’ को दिए साक्षात्कार में उन्होंने सुझाव दिया है कि ‘‘आरक्षण की नीति पर पुनॢवचार का समय आ गया है। इसके लिए एक गैर-राजनीतिक समिति बनाई जानी चाहिए जो तय करे कि कितने लोगों को कितने दिनों तक आरक्षण की जरूरत होनी चाहिए।’’
 
‘‘समिति में ऐसे समर्पित लोगों के अलावा ऐसे राजनीतिक प्रतिनिधियों को भी शामिल किया जाए जो वास्तव में लोगों के हित के लिए चिंतित हों तथा राजनीतिज्ञों से अधिक ‘सेवाभावियों’ को महत्व दिया जाए।’’
 
‘‘यह समिति एक स्वायत्त आयोग की भांति हो जिसे अपने निर्णयों को लागू करने का भी अधिकार हो और एक राजनीतिक अथारिटी इनके कार्यान्वयन में ईमानदारी तथा नेक-नीयती पर नजर रखे।’’  
 
श्री मोहन भागवत के अनुसार, ‘‘जहां तक हमारे देश के संविधान में सामाजिक रूप से पिछड़े वर्ग पर आधारित आरक्षण नीति की बात है, तो यह वैसी ही होनी चाहिए जैसी संविधान निर्माताओं के मन में थी।’’
 
‘‘यदि आरक्षण संबंधी नीति का पालन हमारे संविधान के निर्माताओं की कल्पना के अनुसार किया गया होता तो आज ये सारे प्रश्न खड़े ही नहीं होते तथा कोई विवाद भी उत्पन्न नहीं होता। देश में आरक्षण का राजनीतिक स्वार्थों के लिए उपयोग किया जाता रहा है।’’
 
श्री भागवत ने कहा कि ‘‘प्रजातंत्र की कुछ आकांक्षाएं होती हैं लेकिन दबाव समूहों के माध्यम से दूसरों को दुखी करके तथा व्यापक जनहित की उपेक्षा करके इन्हें पूरा नहीं किया जाना चाहिए और न ही इन आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए दबाव समूहों के आगे समर्पण करने की आवश्यकता है।’’
 
केंद्र सरकार द्वारा विपक्षी दलों और किसान संगठनों के विरोध के चलते विवादास्पद भूमि अधिग्रहण अध्यादेश वापस लेने का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि ‘‘देश की सरकार को इतना संवेदनशील तो होना ही चाहिए कि किसी भी विषय को लेकर विरोध बढऩे और लोगों द्वारा आंदोलन करने की नौबत आने से पूर्व ही उसका निपटारा कर दिया जाए। ‘वन रैंक वन पैंशन’ पर भी अंतिम निर्णय सरकार ने व्यापक प्रदर्शनों के पश्चात ही लिया।’’  
 
श्री मोहन भागवत के अनुसार,‘‘यही समझकर चलना समझदारी है कि हमें सब के हित को ध्यान में रख कर ही कोई भी काम करना है और देश के हित में ही हमारा हित है।’’ 
 
श्री मोहन भागवत को एक व्यावहारिक नेता के रूप में जाना जाता है जो बदलते समय के साथ चलने की विचारधारा में विश्वास रखते हैं। इसी कारण वह हिन्दू समाज में जातीय असमानताओं के भी घोर विरोधी हैं।
 
उनका कहना है कि समाज में अस्पृश्यता के लिए कोई स्थान नहीं होना चाहिए और इसके साथ ही श्री भागवत अनेकता में एकता के सिद्धांत पर स्थापित हिन्दू समाज को अपने ही समुदाय के लोगों के विरुद्ध होने वाले भेदभाव के स्वाभाविक दोषों पर विशेष ध्यान देने की सलाह देते रहे हैं।
 
कांग्रेस नेता मुनीष तिवारी ने भी आरक्षण नीति में बदलाव की जरूरत व्यक्त करते हुए कहा है कि ‘‘इसका आधार आॢथक होना चाहिए। गरीबी सबसे बड़ा पिछड़ापन है। समय आ गया है कि इस पर बात होनी चाहिए।’’
 
उपरोक्त बयानों के परिप्रेक्ष्य में जरूरतमंदों के लिए आरक्षण की वकालत के सुझाव पर सरकार को जल्दी ध्यान देना चाहिए और इसके साथ ही जो लोग आरक्षण का लाभ ले कर सम्पन्न हो चुके हैं उन्हें इसके दायरे से बाहर निकालने की दिशा में भी पग उठाना चाहिए।

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