Edited By prachi upadhyay,Updated: 29 Jul, 2019 04:51 PM
कहीं एक किलो प्लास्टिक देकर आपको खाना मिल सकता है, तो कहीं पर स्कूल फीस के तौर पर बच्चे दे रहे हैं प्लास्टिक कचरा, वहीं किसी ने तो इस कचरे से पेट्रोल ही बना डाला। आपको ये सब बातें काफी अलग और अनोखी लग रही होंगी। लेकिन जिस तरह से हमने अपनी सहूलियतों...
नेशनल डेस्क: कहीं एक किलो प्लास्टिक देकर आपको खाना मिल सकता है, तो कहीं पर स्कूल फीस के तौर पर बच्चे दे रहे हैं प्लास्टिक कचरा, वहीं किसी ने तो इस कचरे से पेट्रोल ही बना डाला। आपको ये सब बातें काफी अलग और अनोखी लग रही होंगी। लेकिन जिस तरह से हमने अपनी सहूलियतों के लिए प्रकृति और पर्यावरण को ताक पर रखते हुए जी-खोलकर प्लास्टिक का उपयोग किया है। उसका नतीजा तो अब हम सबके सामने है ही।
मौजूदा वक्त में हमारी जरूरत की कोई भी चीज ऐसी नहीं है जिसमें प्लास्टिक का उपयोग ना होता है। कॉपी-किताब से लेकर खाने पीने तक, मोबाइल हैंडसेट से लेकर वॉशिंग मशीन तक, जरूरत का लगभग हर सामान या तो प्लास्टिक से बना हुआ होता है या फिर उसमें बड़ी मात्रा में प्लास्टिक का उपयोग किया गया है। केवल भारत में ही हर रोज 26 हजार टन प्लास्टिक कचरा निकलता है, तो आप सोच सकते है कि पूरे विश्व की क्या हालत होगी।
लेकिन यहां हम बात करने जा रहे हैं उन लोगों की, जिन्होने अपने-अपने तरीके से इस प्लास्टिक के कचरे निपटने के लिए कुछ ऐसी कवायद की, जिससे हमें इस जहर से मुक्ति भी मिले और वो लोगों के काम भी आए।
Garbage Cafe
छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर में अपनी तरह की ये एक अनोखी पहल शुरू हुई है। यहां जल्द ही एक गार्बेज कैफे खोला जाएगा। जहां आपको एक किलो प्लास्टिक के कचरे के बदले में भरपेट खाना मिलेगा। वहीं 500 ग्राम प्लास्टिक का कचरा लाने पर नाश्ता मिलेगा। अंबिकापुर नगर निगम की ये पहल गरीबों और बेघरों को ध्यान में रखते और शहर को प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्त बनाने के मकसद से शुरू की गई है। ये गार्बेज कैफे को शहर के मुख्य बस अड्डे के पास खोला जाएगा और नगर निगम ने इसके लिए 5 लाख का बजट भी आवंटित कर दिया है। इस कैफे से इक्ट्ठा होने वाले प्लास्टिक वेस्ट को सड़क बनाने के काम में उपयोग किया जाएगा। आपको बता दें कि अंबिकापुर में राज्य की पहली ऐसी सड़क मौजूद है, जो प्लास्टिक और डामर के मिश्रण से बनी हुई है। ये सड़क काफी मजबूत और टिकाऊ है और इसकी निर्माण लागत भी आम सड़कों के मुकाबले कम है।
Plastic Roads
जैसा कि आपने अभी पढ़ा कि अंबिकापुर में प्लास्टिक और डामर से सड़क बनी हुई है। जो कि काफी मजबूत और टिकाऊ है। इन सड़कों की स्थिति और लागत को देखते हुए केंद्रीय परिवहन मंत्रालय ने सड़कों के निर्माण में प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल करने की कवायद शुरू कर दी है। जिसके तहत प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तीसरे चरण में बननेवाली सड़को में प्लास्टिक का ज्यादा इस्तेमाल किया जाएगा। दरअसल सड़क निर्माण में प्लास्टिक वेस्ट को यूज करने का एक तरीका होता है। इन सड़कों के निर्माण के लिए सबसे पहले पॉलिथीन्स, प्लास्टिक कैरी बैग, कप-ग्लास और सैशे को बीनकर उसकी सफाई की जाती है। फिर उसको श्रेडर मशीन के जरिए एक निश्चित आकार में काटा जाता है। जिसके बाद उसे 160 डिग्री से ऊपर के तापमान पर गर्म किया जाता है। जिससे उसमें से एक तेल सरीखा पेस्ट तैयार होता है। फिर इस पेस्ट को तारकोल के साथ मिलाया जाता है। जिसे फिर सड़क बनाने में इस्तेमाल किया जाता है। इन सड़कों को 8-10 साल तक मरम्मत की जरूरत नहीं पड़ती, वहीं इस तरह की सड़कों की निर्माण लागत भी कम होती है।
Petrol from Plastic
सड़के हो गई, कैफे हो गया...लेकिन अब सबसे जरूरी चीज पेट्रोल। जी हां, प्लास्टिक से पेट्रोल भी बन रहा है और इस पेट्रोल की कीमत प्राकृतिक रूप से मिलनेवाले पेट्रोल से कम है। हैदराबाद के एक प्रोफेसर है सतीश कुमार (45 साल) जिन्होने प्लास्टिक कचरे को रिसाइकल करने की एक ऐसी टेक्नोलॉजी का ईजाद किया है, जिससे 500 किलो प्लास्टिक कचरे को रिफांइड करके उससे 400 लीटर पेट्रोल का उत्पादन किया जा सके है। प्रो. सतीश बताते हैं कि इस टेक्नोलॉजी के जरिए पेट्रोल, डीजल और हवाई जहाजों के ईंधन का भी निर्माण किया जा सकता है। बकौल सतीश इस तरह के ईंधन से किसी तरह का कोई प्रदूषण नहीं होता, वहीं इसकी कीमत मौजूदा पेट्रोल से 30 फीसदी कम होती है। हालांकि अभीतक इसका वाहनों में प्रयोग नहीं किया गया है। लेकिन, सतीश इस ईंधन को आस-पास के उद्योगों के लिए मुहैया कराते हैं।
वहीं इंदौर नगर निगम भी प्लास्टिक से ईंधन बनाकर वाहनों में इस्तेमाल कर रही है। दरअसल प्लास्टिक के कचरे से निपटने के लिए इंदौर नगर निगम ने ये नई पहल शुरू की है। जिसके तहत इस कचरे को खत्म करने के लिए लगाए गए यूनिट से बननेवाले कच्चे तेल को रिफाइन करके उसे पेट्रोल बनाया जा रहा है। फिलहाल इस तरह से बने ईंधन को भट्ठी में इस्तेमाल किया जा रहा है। वहीं प्रयोग के तौर पर इसे एक बाइक और एक ट्रक में भी इस्तेमाल किया जा रहा है। जिससे अभी तक सकारात्मक परिणाम ही सामने आए हैं और प्रदूषण भी कम हो रहा है।
Plastic Waste as School Fees
अबतक की सभी पहल में सबसे अनोखी और अलग पहल गुवाहटी में हो रही है। जहां प्लास्टिक के कचरे को शिक्षा का माध्यम बनाया गया है। असम के गुवाहटी में एक स्कूल है ‘अक्षर स्कूल’। जहां फीस के तौर पर प्लास्टिक वेस्ट लिया जाता है। इस स्कूल को माजिन मुख्तार और उनकी पत्नी परमिता शर्मा ने स्थापित किया है। 2013 में माजिन अख्तर शिक्षा के क्षेत्र में कुछ करने का सपना लिए न्यूयोर्क से भारत आए थे। यहां उनकी मुलाकात परमिता से हुई। परमिता भी शिक्षा के क्षेत्र में काम करने की योजना बना रही थीं। जिसके बाद दोनों ने एक साथ काम करने और अपनी जिंदगी बिताने का फैसला किया।
माजिम और परमिता ने मिलकर 2015 में इस स्कूल की शुरूआत की। पहले इस स्कूल में कोई फीस नहीं ली जाती थी। लेकिन पर्यावरण के संरक्षण और बच्चों को इसका महत्व समझाने के लिए उन्होने फीस के तौर पर प्लास्टिक कचरा लेना शुरू कर दिया। इतना ही नहीं माजिन ने पिछले साल ही इस स्कूल में एक रिसाइकल सेंटर की शुरूआत भी की है। जहां बच्चों को इन प्लास्टिक कचरे का सही और पर्यावरण की बेहतरी के तहत इस्तेमाल करना सिखाया जाता है।
इस स्कूल की एक और खास बात है, यहां सीनियर बच्चे जूनियर बच्चों को पढ़ाते है। जिसके लिए उन्हे पैसे भी दिए जाते है। माजिन कहते है कि इस पहले के पीछे मकसद ये था कि ये टीनएज बच्चें स्कूल ना छोड़े। वरना घर से इनपर पैसे कमाने का बहुत दबाब होता है। जिसके चलते इन्हे स्कूल भी छोड़ना पड़ता है। ऐसे में जब स्कूल में ही पैसे कमाने का साधन मिल जाए तो ये ये बच्चे अपनी पढ़ाई आगे जारी रख सकते है। माजिन और परमिता चाहते है कि वो 5 साल में देशभर में तकरीबन ऐसे 100 स्कूल खोल सकें, जहां बच्चों को शिक्षा के साथ-साथ सामाज और पर्यावरण के तरफ अपनी जिम्मेदारी का भी अहसास हो।
प्लास्टिक से आपको-हमको और इस पर्यावरण को बहुत नुकसान हो रहा है। लेकिन उससे बचने के भी कई तरीके है, जिसे अगर हम थोड़ी गंभीरता और सजगता से लेना शुरू कर दें। तो, शायद हम अपनी इस बर्बाद होती इस धरती को संजो सकेंगे।