सद्मावत: राजस्थान में राजेे का राज खत्म

Edited By Anil dev,Updated: 12 Dec, 2018 01:57 PM

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राजस्थान में राजपूतों की नाराजगी को भाजपा की वसुंधरा सरकार को सत्ता से बाहर करने का मुख्य कारण माना जा रहा है। हालांकि 2013 में राजपूतों के दम पर ही भाजपा सत्ता में पहुंची थी, लेकिन गैंगस्टर आनंद पाल एनकाउंटर और फिर दलित आरक्षण आंदोलन और बाद में...

नई दिल्ली: राजस्थान में राजपूतों की नाराजगी को भाजपा की वसुंधरा सरकार को सत्ता से बाहर करने का मुख्य कारण माना जा रहा है। हालांकि 2013 में राजपूतों के दम पर ही भाजपा सत्ता में पहुंची थी, लेकिन गैंगस्टर आनंद पाल एनकाउंटर और फिर दलित आरक्षण आंदोलन और बाद में दलित एट्रोसिटी एक्ट से उपजी सवर्णों की नाराजगी विशेष रूप से राजपूतों की नाराजगी वसुंधरा सरकार को ले डूबी।

करीब 9-11 प्रतिशत हैं राजस्थान में राजपूत
राजस्थान में करीब 9-11 प्रतिशत राजपूत हैं, जो कि राज्य की 50-60 सीटों पर खासा असर रखते हैं। हर विधानसभा चुनाव में 15-17 राजपूत भाजपा के टिकट पर विधायक बनते रहे हैं। 2013 में कुल 27 राजपूत विधायकों में से 24 भाजपा से थे। राजपूत भाजपा का पारंपरिक वोट बैंक माना जाता है। लेकिन राजपूत पिछले महीनों में हुए उपचुनावों में भाजपा के हाथ से वे तीन सीटें चली गईं, जो राजपूत बहुल थीं। यह इस बात का इशारा था कि राज्य का राजपूत वसुंधरा सरकार से खफा है। इसकी शुरुआत पिछले साल हुए गैंगस्टर आनंदपाल एनकाउंटर से हुई। 

 वसुंधरा को भी था राजपूतों के गुस्से का अंदाजा
राजपूतों ने इसे अपनी अस्मिता से जोड़ कर देखा। आनंदपाल की मां और बेटी ने एनकाउंटर के बाद वसुंधरा राजे के खिलाफ राजपूत बहुल इलाकों में जाकर सरकार की मुखालफत का अभियान छेड़ रखा था। इसका राजपूतों पर गहरा असर पड़ा।  इसी साल अप्रैल में हुए दलित आरक्षण आंदोलन में मचे हंगामे और उत्पात में कई जगहों पर राजपूत नेताओं और सवर्णों के खिलाफ एफआईआर दर्ज किए गए थे। इसने आग में घी का काम किया। राजपूतों के गुस्से का अंदाजा वसुंधरा को भी था। इसलिए उन्होंने प्रदेश में ‘गौरव यात्रा’ निकाली, जिसमें राजस्थान के स्वर्णिम इतिहास को याद किया। जाहिर है, इसमें राजपूतों के इतिहास को ज्यादा याद दिलाने की कोशिश की गई।     

पद्मावती प्रकरण भी पड़ा भारी!
फिल्म ‘पद्मावत’ भी भाजपा पर भारी पड़ा। राजपूत समाज के लोगों नें करणी सेना के नेतृत्व में इस फिल्म की शिकायत मुुख्यमंत्री वसुंधरा राजे से की थी। फिल्म को रोकने के लिए अपील की, लेकिन फिल्म रुक नहीं पाई जिसके कारण राजपूत समाज के लोग नाराज हो गए। करणी सेना समेत तमाम राजपूत संगठनों ने राजस्थान के साथ देश के तमाम हिस्सों में बड़ा प्रदर्शन किया। फिल्म में कुछ विवादित दृश्यों में बदलाव जरूर हुए, लेकिन इसका असर राजपूतों पर नहीं हुआ।

वसुंधरा सरकार के कई दिग्गज मंत्री हारे
वसुंधरा राजे सरकार में कद्दावर रहे कई मंत्री विधानसभा चुनाव हार गए हैं। इनमें परिवहन मंत्री यूनुस खान, खान मंत्री सुरेंद्र पाल सिंह टीटी, यूडीएच मंत्री श्रीचंद कृपलानी शामिल हैं। राजे के करीबी माने जाने वाले युनुस खान टोंक विधानसभा सीट से 54,179 मतों से हार गए। इस सीट पर कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष व पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ रहे सचिन पायलट जीते हैं। वहीं जल संसाधन मंत्री डॉ. रामप्रताप हनुमानगढ़ सीट पर 15,522 मतों से तो पशुपालन मंत्री रहे ओटाराम देवासी सिरोही सीट पर 10,253 मतों से पराजित हुए। इसी तरह राजे सरकार के कृषि मंत्री प्रभु लाल सैनी अंता सीट पर 34,059 मतों से हारे। उन्हें कांग्रेस के प्रमोद भाया ने हराया। खान मंत्री सुरेंद्र पाल सिंह टीटी करणपुर सीट पर हारे और वह मुकाबले में तीसरे स्थान पर रहे। 

खाद्य व आपूॢत मंत्री बाबू लाल वर्मा बारां अटरू सीट पर 12,248 मतों से हार गए। पर्यटन मंत्री कृष्णेंद्र कौर दीपा नदबई सीट पर बसपा के जोङ्क्षगदर सिंह से 4,094 मतों से हारीं जबकि यूडीएच मंत्री श्रीचंद कृपलानी ङ्क्षनबाहेडा सीट पर 11,908 मतों से हारे हैं। सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्री अरुण चतुर्वेदी सिविल लाइंस सीट पर 18,078 मतों से हार गए। उद्योग मंत्री राजपाल सिंह शेखावत झोटवाड़ा सीट पर 10,747 मतों से हार गए। वहीं गृहमंत्री गुलाब चंद कटारिया ने उदयपुर सीट पर कांग्रेस की गिरिजा व्यास को 9,307 मतों से पराजित किया। 

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