यह हैं वो पांच कारण जिनकी वजह से राहुल गांधी ने फिर फूंकी कांग्रेस में जान

Edited By Anil dev,Updated: 11 Dec, 2018 01:53 PM

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अगर पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में नजर डाले तो यह साबित होता है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय स्तर पर पीएम नरेंद्र मोदी को कड़ी चुनौती दे सकते हैं। मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और...

नई दिल्ली: अगर पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में नजर डाले तो यह साबित होता है कि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय स्तर पर पीएम नरेंद्र मोदी को कड़ी चुनौती दे सकते हैं। मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना विधानसभा के चुनाव नतीजों के रुझान पर अगर हम एक नजर डालें तो पता लगता है कि राहुल गांधी न केवल कांग्रेस पार्टी में बल्कि राष्ट्रीय स्तर पर मोदी के मुकाबले खुद को साबित करने में कामयाब रहे हैं। आईए जानते हैं वो पांच कारण जिनकी वजह से राहुल एक बार फिर कांग्रेस को 'जिंदा' करने में सफल हुए। 

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राहुल का स्पष्ट रूप से गलती को स्वीकार करना
विश्लेषकों का मानना है कि कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभालने के बाद राहुल ने जिस तरह 2014 के लोकसभा चुनाव में हार की वजह पार्टी का अहंकार बताया वो काफी हद तक उनके पक्ष रहा। इसके साथ ही राहुल के इस बयान का सीधा प्रभाव भी पार्टी कार्यकर्ताओं के मनोबल पर पड़ा। 
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नई रणनीति बनाना
पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद राहुल ने मोदी की तरह अपनी बात को अच्छी तरह से जनता के बीच रखना सीखा। इसका असर उनके भाषणों में साफ नजर आया। गोवा और मेघालय में सबसे बड़ी पार्टी बनने के बाद भी सरकार न बना पाने की कमी को उन्होंने कर्नाटक में पूरी तरह भुनाया। यहां उन्होंने नतीजे घोषित होते ही जेडीएस से हाथ मिलाकर राहुल ने किस तरह भाजपा की उम्मीदों पर पानी फेरा था।

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चुटीले शब्द का उपयोग करना 
2018 से पहले कांग्रेस में नेतृत्व की कमी के कारण जनता तक अपनी बात पहुंचाने में सफल हो रही थी। भाजपा सरकार अपने तरीके से काम कर रही थी, लेकिन विपक्ष उनके सामने पूरी तरह विफल साबित हो रहा था। पार्टी अध्यक्ष बनने के बाद राहुल ने इस कमी को दूर करते हुए गब्बर सिंह टैक्स और मोदी मेड डिजास्टर जैसे चुटीले शब्द का उपयोग करना शुरु किया।
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बड़े नेताओं पैदा हुए मनमुटाव किया दूर
राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद सबसे पहले मध्य प्रदेश में कमलनाथ और सिंधिया के बीच पैदा हुए मनमुटाव को दूर करने की कोशिश की। उन्होंने कमलनाथ को पार्टी की कमान सौंपी तो सिंधिया को पार्टी प्रचार समिति की कमान दे डाली। इससे चुनाव तक दोनों बड़े नेताओं ने समान रूप से मेहनत की। ठीक इसी तरह, राजस्थान में सचिन पायलट और अशोक गहलोत के समर्थकों में विवाद न हो, इसलिए राहुल गांधी के निर्देश पर दोनों चुनाव में उतरे। इससे चुनाव तक राजस्थान में कांग्रेस के कार्यकर्ता ने एकजुट होकर काम किया।


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मोदी को घेरना
ताबड़तोड़ प्रचार के बाद भी कांग्रेस को गुजरात में हार का मुंह देखने पड़ा लेकिन इस हार के बाद राहुल गांधी एक नेता के तौर पर निखरते चले गए। अपने भाषणों से राहुल लगातार विपक्ष पर दबाव बनाने में साबित रहे। उन्होंने किसान, राफेल, सीबीआई, आरबीआई, रोजगार जैसे मुद्दों पर पीएम नरेंद्र मोदी को सीधे घेरते हुए जनता में खुद की छवि बनाने में कामयाब रहे। 


 

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