कोर्ट में बोले अस्थाना, FIR से पहले सरकार की अनुमति जरूरी, सीबीआई-वर्मा ने कहा 'ना'

Edited By Yaspal,Updated: 08 Dec, 2018 12:19 AM

asthana speaks in court government permission is necessary before fir

दिल्ली उच्च न्यायालय में सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच कलह एक बार फिर शुक्रवार को सामने आयी जब अस्थाना ने दावा किया कि भ्रष्टाचार के एक मामले में उनके...

नई दिल्लीः दिल्ली उच्च न्यायालय में सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और विशेष निदेशक राकेश अस्थाना के बीच कलह एक बार फिर शुक्रवार को सामने आयी जब अस्थाना ने दावा किया कि भ्रष्टाचार के एक मामले में उनके और डीएसपी देवेंद्र कुमार के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने से पहले सरकार की मंजूरी की जरुरत थी। वर्मा ने उनकी इस दलील का जबर्दस्त विरोध किया।

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इस प्राथमिकी निरस्त करने की मांग संबंधी अस्थाना की याचिका के जवाब में वर्मा ने अपने हलफनामे में कहा कि भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे लोक सेवकों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने से पहले सरकार की अनुमति की जरुरत के संबंध में सीबीआई ने अतिरिक्त सॉलीसिटर जनरल (एएसजी) पी एस नरसिम्हा की राय मांगी थी और उन्होंने राय दी थी कि उसकी जरुरत नहीं है। न्यायमूर्ति नाजिमी वजीरी के समक्ष अस्थाना द्वारा पेश की गयी दलीलों का सीबीआई, वर्मा और संयुक्त निदेशक ए के शर्मा ने विरोध किया। इन तीनों ने कहा कि अनुमति की कोई जरुरत नहीं है क्योंकि इन दोनों अधिकारियों के विरुद्ध लगे आरोपों का संबंध उनके कर्तव्य निर्वहन या उनके द्वारा की गयी किसी सिफारिश या लिये गये निर्णय से नहीं है।

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अस्थाना और कुमार की ओर से क्रमश पेश वरिष्ठ वकील अमरेंद्र सरण और दयान कृष्णन ने अदालत से कहा कि केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) ने इस साल अक्टूबर में सीबीआई को दो पत्र भेजे थे और उसको पूर्वानुमति के बगैर इन दोनों अधिकारियों के खिलाफ कोई प्राथमिकी दर्ज नहीं करने या कार्रवाई नहीं करने को कहा था। उन्होंने दलील दी कि भ्रष्टाचार रोकथाम अधिनियम की धारा 17 ए यह अनिवार्य करती है कि किसी जनसेवक के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज करने या कोई प्राथमिक जांच शुरु करने से पहले अनुमति ली जाए। उन्होंने कहा, ‘‘जानबूझकर ऐसा (प्राथमिकी दर्ज) होने दिया। ’’ उन्होंने अदालत से इस कदम के कारण का पता लगाने के लिए केस डायरी समेत सभी फाइलें मंगवाने की अपील की।

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कृष्णन ने दलील दी, ‘‘वह 17 ए नहीं लगाने पर स्वयं ही निर्णय नहीं ले सकते। उन्हें कारण बताना होगा कि इसका इस्तेमाल क्यों नहीं हो सकता।’’ दालत ने सीबीआई से पूर्वानुमति लेने के संबंध में सीवीसी के ऐसे पत्र के प्रभाव के बारे में पूछा। दालत ने कहा, ‘‘माना कि ऐसा कोई निर्देश रहा होगा तो आपका क्या रुख होगा। क्या इससे आपके हाथ बंध जाएंगे।’’ इस पर, सीबीआई की ओर से पेश वकील अतिरिक्त सॉलीसीटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी ने कहा कि इसका जवाब देने से पहले उन्हें इन पत्रों को पढऩा होगा।   

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