अद्भुत लाहौर बस यात्रा में अटल जी ने सभी काे दिया था आपने साथ बात करने को माैका: पुस्तक

Edited By vasudha,Updated: 25 Dec, 2020 04:59 PM

atal bihari vajpayee lahore bus tour

पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 1999 में जब अमृतसर से लाहौर के बीच बस के जरिये ऐतिहासिक यात्रा की थी तब उसमें यूं तो विभिन्न क्षेत्रों की हस्तियां सवार थीं लेकिन उनमें सबसे अधिक शालीन संभवत: कपिल देव थे। यह कहना है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री...

नेशनल डेस्क: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 1999 में जब अमृतसर से लाहौर के बीच बस के जरिये ऐतिहासिक यात्रा की थी तब उसमें यूं तो विभिन्न क्षेत्रों की हस्तियां सवार थीं लेकिन उनमें सबसे अधिक शालीन संभवत: कपिल देव थे। यह कहना है कि तत्कालीन प्रधानमंत्री वाजपेयी के निजी सचिव रहे शक्ति सिन्हा का। उन्होंने अपनी नयी पुस्तक ‘‘वाजपेयी: द ईयर्स दैट चेंज्ड इंडिया'' में यह बात कही है। उस बस यात्रा में 40 मिनट का समय लगा और वाजपेयी की बगल वाली सीट यादगार यात्रा के दौरान सबसे ज्यादा पसंद की गई। 

 

बस में दो खास सीटें थी
पुस्तक में कहा गया है कि बस में दो खास सीटें थी। वाजपेयी बस में बाईं ओर पहली सीट पर थे। चालीस मिनट की छोटी यात्रा के दौरान, हमने प्रतिनिधिमंडल के प्रत्येक सदस्य को वाजपेयी के साथ बैठने और थोड़ी देर बातें करने का मौका दिया। दिवंगत नेता की 96वीं जयंती के मौके पर शुक्रवार को आई इस पुस्तक में सिन्हा ने लिखा कि जब वाजपेयी के साथ किसी ओर के बैठने की बारी आई तो कपिल देव सबसे शालीन नजर आये। उन्होंने तुरंत अपनी सीट छोड़ दी जबकि दूसरों को मुझे वहां से हटाना पड़ता था। उनके नाम बताना आवश्यक नहीं है क्योंकि वे अब हमारे बीच नहीं है।

 

शत्रुघ्न सिन्हा भी थे इस यात्रा के गवाह 
यात्रा में वाजपेयी के साथ अन्य लोगों में पत्रकार कुलदीप नैयर, कवि जावेद अख्तर, अभिनेता देव आनंद, गायक महेंद्र कपूर और अभिनेता-नेता शत्रुघ्न सिन्हा थे। सिन्हा ने कहा  कि जब बस सीमा के दूसरी ओर पहुंची, तो दोनों प्रधानमंत्री, वाजपेयी और नवाज शरीफ ने एक-दूसरे को गले लगाया। देव आनंद, जो उनके बगल में खड़े थे, ने उस समय के बारे में याद करना शुरू कर दिया जब वह लाहौर से मुंबई रवाना हुए थे।

 

पुस्तक में हैं 10 अध्याय
अमृतसर जाने के लिए जब दिल्ली में हवाई अड्डे जा रहे थे तो वाजपेयी को पता चला कि वह अपनी सुनने वाली मशीन (हियरिंग एड) घर पर ही भूल गये है। सिन्हा ने लिखा कि हवाई अड्डे जाते समय वाजपेयी ने मेरी ओर देखा और मुझसे कहा कि वह कान की मशीन घर पर ही भूल गये हैं। वह अपनी जेब में मशीन खोज रहे थे और वे खाली थीं। संयोग से हमारे पास मोबाइल फोन था और मैंने तुरंत फोन किया और जल्दी से मशीन भेजने के लिए कहा। करीब तीन सौ पृष्ठों की इस पुस्तक में 10 अध्याय हैं और इसका प्रकाशन पेंगुइन रैंडम हाउस इंडिया ने किया है। 

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