बाबरी मस्जिद केस: 35 साल तक होता रहा शह-मात का खेल, मुंह के बल जा गिरी CBI

Edited By Anil dev,Updated: 01 Oct, 2020 10:32 AM

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बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि विवाद राजनीतिक युद्ध का ऐसा मैदान बना कि पिछले 35 साल इस मुद्दे पर शह और मात का खेल होता रहा। बाबरी विध्वंस पर फंसे भी नेता और इसीलिए बरी भी हुए वही। आज सीबीआई अदालत के निर्णय के बाद इसका पटाक्षेप हो गया। सीबीआई इस मामले पर...

नई दिल्ली (नवोदया टाइम्स): बाबरी मस्जिद राम जन्मभूमि विवाद राजनीतिक युद्ध का ऐसा मैदान बना कि पिछले 35 साल इस मुद्दे पर शह और मात का खेल होता रहा। बाबरी विध्वंस पर फंसे भी नेता और इसीलिए बरी भी हुए वही। आज सीबीआई अदालत के निर्णय के बाद इसका पटाक्षेप हो गया। सीबीआई इस मामले पर मुंह के बल जा गिरी। पूरा मामला पत्रकारों और अखबार की कटिंग पर आधारित था। संघ परिवार, भाजपा व अन्य हिंदू संगठनों से जुड़े नेताओं को बाबरी मस्जिद गिराने का साजिशकर्ता बताया गया, लेकिन उनकी साजिश को पूरा किसने किया इसका कहीं अता-पता नहीं। वास्तव में 6 दिसम्बर 1992 को लगभग 9:30 बजे कार सेवकों का एक जत्था तेजी से विवादित ढांचे की ओर बढ़ा और फावड़े ,गैंती, बड़े-बड़े हथौड़े से विवादित ढांचे को गिराना शुरू किया। इस प्रयास में लगभग आधा दर्जन से अधिक लोग मारे गए और बड़ी संख्या में कारसेवक घायल भी हुए। 

घायलों को अस्पताल तक पहुंचाने के लिए कुछ पत्रकारों सहित कई लोगों की गाडिय़ों पर कब्जा कर लिया गया। सीबीआई के सामने ही पूरा रिकॉर्ड था कि उस ढांचे को गिराने वाले कौन लोग थे और इसके लिए क्या-क्या तैयारियां की गई थीं। लेकिन इस पक्ष की ओर सीबीआई ने ध्यान नहीं दिया। वास्तव में मंदिर आंदोलन से जुड़े तमाम नेताओं को यह पता ही नहीं था इस तरह कोई घटना होने जा रही है। संघ परिवार के एक बड़े नेता ने कहा कि उन्हें जरा भी जानकारी होती की इस तरह की तैयारी कारसेवकों के एक वर्ग द्वारा की गई है तो भाजपा के तमाम बड़े नेताओं को अयोध्या बुलाते ही नहीं। यह उनकी सबसे बड़ी चूक थी। लेकिन तत्कालीन केंद्र सरकार जो इस मामले पर घिरी हुई थी वह लक्ष्य बनाकर तीर चला रही थी। वह उन भाजपा नेताओं को किनारे लगा कर एक वर्ग का गुस्सा शांत कर देना चाहती थी जो मंदिर आंदोलन के अगुआ थे। इसीलिए 120 बी यानी आपराधिक षड्यंत्र के सहारे ही सारा मामला आगे बढ़ा और नेताओं पर निशाना साधा गया। यह अलग बात है कि सारा केस अखबारों की कटिंग व वीडियो पर आधारित था। 

इस मामले में वे लोग आसानी से पता किए जा सकते थे जिन्होंने 6 दिसम्बर के पहले ही बड़ी संख्या में उस सामान को इक्ट्टा  कर लिया था जिससे इतना विशाल विवादित ढांचा ढहाया जा सके। जहां एक ओर कुछ उत्साही कारसेवक ढांचे के ऊपर चल गए थे, लेकिन एक वर्ग उस विशाल ढांचे को नीचे से खोखला कर रहा था जिससे यह जल्द ही गिर जाए। ऐसा हुआ भी। सीबीआई उन लोगों से यह भी पता कर सकती थी की ढांचा गिराने वाला सामान कहां से आया था और अयोध्या में कहां रखा गया था और वह केंद्रीय सुरक्षा बल होने के बावजूद ढांचे के करीब तक कैसे पहुंच गया। लेकिन राजनीतिक लड़ाई कहीं ज्यादा बड़ी होने के कारण यह मामला कुछ चुनिंदा लोगों तक सीमित रहा और बड़े नामों पर मुकदमा चला।

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