Edited By Yaspal,Updated: 24 Jan, 2019 07:27 PM
मंदिरों, मस्जिदों, गिरिजाघरों और गुरुद्वारों जैसे धार्मिक स्थलों को लेकर गुरुवार को मद्रास हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा, " मंदिर में बैठे भगवान हों या इंसान, सभी के लिए कानून बराबर है और किसी को भी कानून का उल्लंघन करने की इजाजत नहीं...
नेशनल डेस्कः मंदिरों, मस्जिदों, गिरिजाघरों और गुरुद्वारों जैसे धार्मिक स्थलों को लेकर गुरुवार को मद्रास हाईकोर्ट ने अहम टिप्पणी की है। कोर्ट ने कहा, " मंदिर में बैठे भगवान हों या इंसान, सभी के लिए कानून बराबर है और किसी को भी कानून का उल्लंघन करने की इजाजत नहीं दी जा सकती है और न ही किसी को इसमें कोई छूट दी जा सकती है।
'द हिंदू' के मुताबिक, धार्मिक स्थलों द्वारा अतिक्रमण से जुड़ी याचिका पर सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने कहा, "अगर किसी मंदिर का कोई देवता अतिक्रमण का कार्य करता है, तो उसे भी कानून के मुताबिक निपटाया जाना चाहिए। सिर्फ इसलिए कि वह एक देवता हैं, कानून बदला नहीं जा सकता है। यही कानूनी सिद्धांत है और अदालत की भी राय है कि एक लोकतांत्रिक, सामाजिक और धर्मनिरपेक्ष देश होने के नाते भारत में सभी समाज को कानून का पालन करना चाहिए और ऐसा करने के लिए समान रूप से सभी समाज बाध्य हैं।
हाईकोर्ट की यह टिप्पणी उस याचिका पर सुनवाई के दौरान आई है, जिसमें मांग की गई थी कि कोयम्बटूर स्थित क्षेत्रीय राजस्व कार्यालय के परिसर में स्थित भगवान गणेश के मंदिर को हटाया जाए। याचिका में कहा गया था कि मंदिर सरकारी जमीन पर अतिक्रमण कर बनाया गया है। लिहाजा, उसे हटाने का आदेश पारित किया जाए। कोर्ट ने इसी महीने इस याचिका पर संज्ञान लेते हुए सरकार को तमिलनाडु के सभी नगर निगमों, नगरपालिकाओं और नगर पंचायतों से जानकारी लेकर रिपोर्ट तलब किया था।
कोर्ट ने गृह विभाग, नगरपालिका प्रशासन, हाईवे के सचिवों के साथ-साथ सभी हिंदू चैरिटेबल संस्थाओं को इस बारे ेमं नोटिस जारी किया था और पक्ष रखने को कहा था। गुरुवार को सुनवाई के दौरान म्यूनिसिपल एडमिनिस्ट्रेशन विभाग के सचिव ने कोर्ट को बताया कि 8 जनवरी को सभी स्थानीय निकायों को पत्र लिखकर ऐसे मंदिरों, मस्जिदों और चर्चों को विवरण मांगा गया है, जो सरकारी जमीन पर बनाए गए हैं। जस्टिस एस सुब्रमण्यम की खंडपीठ को बताया गया कि राज्य के 124 नगरपालिकाओं, 12 नगर निगमों और 528 नगर पंचायतों से डेटा जमा करने में चार सप्ताह का वक्त लगेगा। उसके बाद ही सही आंकड़े पेश किए जा सकेंगे। खंडपीठ ने सरकार को इसके लिए एक महीने का समय दिया है।