सुप्रीम कोर्ट से जमानत, निचली अदालत ने लगाई रोक

Edited By shukdev,Updated: 31 May, 2018 08:01 PM

bail from supreme court lower court ban imposed

उच्चतम न्यायालय ने हैरानी जताते हुए पूछा कि क्या मजिस्ट्रेट अदालत उससे ऊपर है। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी तब की जब उसे पता चला कि उसके द्वारा जमानत दिए जाने के बावजूद मुंबई की एक निचली अदालत ने आरोपी को रिहा करने से इंकार कर दिया।यह विचित्र स्थिति...

नई दिल्ली : उच्चतम न्यायालय ने हैरानी जताते हुए पूछा कि क्या मजिस्ट्रेट अदालत उससे ऊपर है। शीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी तब की जब उसे पता चला कि उसके द्वारा जमानत दिए जाने के बावजूद मुंबई की एक निचली अदालत ने आरोपी को रिहा करने से इंकार कर दिया।

यह विचित्र स्थिति न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति मोहन एम शांतनगौडर की पीठ के समक्ष पैदा हुई जब उसे आरोपी के वकील ने बताया कि निचली अदालत ने उनके मुवक्किल को यह कहते हुए राहत देने से मना कर दिया कि शीर्ष अदालत ने अपने 17 मई के आदेश में जमानत राशि का उल्लेख नहीं किया था। पीठ ने कहा , ‘हमने (शीर्ष अदालत ने) उसे (आरोपी) जमानत दी है। क्या एसीएमएम (अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट) हमारे ऊपर हैं। क्या एसीएमएम उच्चतम न्यायालय का अपीलीय अदालत है। हमने जमानत का आदेश दिया है और मजिस्ट्रेट कह रहे हैं कि उच्चतम न्यायालय जमानत देना नहीं जानता है। ’

पीठ ने कहा कि एसीएमएम ने 21 मई के आदेश में जो आधार बताया था वह उचित नहीं है। एसीएमएम ने कहा था कि शीर्ष अदालत ने अपने आदेश में जमानत राशि का उल्लेख नहीं किया। अदालत ने कहा , ‘अतिरिक्त मुख्य मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट को समझना चाहिए कि उच्चतम न्यायालय द्वारा याचिकाकर्ता को जमानत पर रिहा करने का आदेश दिए जाने और जमानत राशि का उल्लेख नहीं किए जाने पर मुचलका तय करने की जिम्मेदारी निचली अदालत पर है। ’

पीठ ने यह भी कहा कि एसीएमएम को सलाह दी जाती है कि वह मुचलके की राशि निर्धारित करके व्यक्ति को जमानत पर रिहा करें। गत 17 मई को न्यायमूर्ति रोहिंटन नरीमन की अध्यक्षता वाली पीठ ने आरोपी को इस शर्त पर जमानत पर रिहा करने का आदेश दिया था कि वह अपने खिलाफ दर्ज मामलों की जांच में सहयोग करेगा।

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