विदेश से आए फूलों से सजा बांके बिहारी मंदिर, आनन्द उत्सव में डूबा है पूरा मथुरा

Edited By vasudha,Updated: 06 Apr, 2021 04:37 PM

banke bihari temple decorated with flowers from abroad

कन्नौज के राजा द्वारा सवा सौ साल पहले प्रारंभ कराये गए आनन्द उत्सव में वर्तमान में उत्तर प्रदेश में मथुरा के बांके बिहारी मन्दिर में आनन्द की ऐसी वर्षा हो रही है कि भक्ति भाव से दर्शन के लिए आये भक्त का रोम रोम पुलकित हो रहा है। 29 मार्च से प्रारंभ...

नेशनल डेस्क:  कन्नौज के राजा द्वारा सवा सौ साल पहले प्रारंभ कराये गए आनन्द उत्सव में वर्तमान में उत्तर प्रदेश में मथुरा के बांके बिहारी मन्दिर में आनन्द की ऐसी वर्षा हो रही है कि भक्ति भाव से दर्शन के लिए आये भक्त का रोम रोम पुलकित हो रहा है। 29 मार्च से प्रारंभ हुए बिहारी जी महाराज के 129वें आनन्द उत्सव के आध्यात्मिक पक्ष में नित्य देहरी पूजन, हवन, ब्राह्मण सेवा और बिना भेदभाव के नित्य प्रसाद का वितरण प्रमुख है। इस उत्सव का दूसरा प्रमुख अंश ठाकुर का विशेष श्रंगार और उनके द्वारा नित्य नई अनूठी पोशाक धारण करना है। उत्सव में मन्दिर की सजावट फूल बंगले से भी बेहतर होती है तथा इसके लिए विदेश तक से फूल मंगाए जाते हैं।

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उत्तर प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल दिवंगत मोतीलाल वोरा तो इस उत्सव में इतना अधिक भावमय हो गए थे कि अपने पद का ख्याल किये बिना वे नृत्य कर उठे थे। यह उत्सव 12 अप्रैल तक चलेगा। बांकेबिहारी मन्दिर के राजभोग सेवायत आचार्य ज्ञानेन्द्र किशोर गोस्वामी ने बताया कि इस उत्सव की शुरूआत 128 वर्ष पूर्व तत्कालीन कन्नौज के राजा ने कराई थी।उन्होंने मन्दिर के तत्कालीन राजभोग अधिकारी ब्रजविहारी लाल गोस्वामी के सानिध्य में बिहारी जी महराज की पहली बार जब सेवा पूजा की तो उस साल न केवल उनकी प्रजा सुखी रही बल्कि राजकाज सुन्दर तरीके से चला और कृषि की पैदावार भी बहुत अच्छी हुई। इससे प्रभावित होकर उन्होंने उस समय के राजभोग अधिकारी से इसका आयोजन हर साल करने के लिए कहा तथा उस पर आनेवाले व्यय को भी उन्होंने वहन किया था।

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उनके निधन के चार दशक बाद इस उत्सव को बांकेबिहारी मन्दिर की प्रबंध समिति के अध्यक्ष आनन्द किशोर गोस्वामी ने इसे आगे बढाया तथा उत्सव के दौरान मन्दिर को सजाने सवांरने का कार्य अपने हाथ में लिया और मन्दिर की सजावट फूल बंगले जैसी होने लगी।समय के साथ जिन भक्तों ने आनन्द उत्सव का चमत्कार देखा, वे इससे जुड़ते चले गए।इस उत्सव में जिस प्रकार नर सेवा नारायण सेवा बिना भेदभाव के होती है उसी के कारण इससे लोग जुड़ते चले आते हैं तथा इस उत्सव के पुष्पित और पल्लवित होने का मुख्य कारण ठाकुर की भाव प्रधान सेवा है। प्रत्येक दिन इस उत्सव की शुरुआत देहरी पूजन से होती है। राजभोग सेवायत आचार्य गोस्वामी ने बताया कि जब कान्हा घुटनों के बल चलने लगे तो मां यशोदा को इस बात की चिन्ता हुई कि देहरी पार करते समय कहीं उनके लाला को चोट न लग जाय क्योंकि उस समय दरवाजे की देहरी ऊंची बनाई जाती थी। उन्होंने उस समय देहरी का पूजन किया था।

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ठाकुर बांकेबिहारी मन्दिर की सेवा चूंकि यशोदा भाव से होती है इसलिए देहरी पूजन में विधिवत देहरी का पंचामृतक अभिषेक किया जाता है तथा भोग सामग्री में मिठाई, मेवा, मौसम के फल अर्पित किये जाते हैं साथ ही मौसम के अनुकूल ठाकुर की पेाशाक एवं शैया तैयार की जाती है।देहरी पूजन में देहरी तथा पास के जगमोहन को सैकड़ो लीटर गुलाबजल से धोया जाता है तथा एक मन से अधिक गुलाब के फूलों का प्रयोग किया जाता है। देहरी पूजन के दौरान देहरी और बीच में बने लकड़ी के कटघरे को एक सैकड़ा से अधिक इत्र की शीशियों में भरे इत्र से आच्छादित किया जाता है। राजभोग के दर्शन बन्द होने के पहले भक्तों में फल, वस्त्र भी लुटाए जाते हैं । कोविद -19 के कारण वर्तमान में इसे रोक दिया गया है। कुल मिलाकर बिहारी जी महराज के इस उत्सव से वृन्दावन का कोना कोना कृष्णमय हो उठा है।

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