Edited By Seema Sharma,Updated: 01 Jul, 2022 04:45 PM
पश्चिम बंगाल में covid-19 की पहली लहर की वजह से लागू लॉकडाउन के दौरान हर पांच में से कम से कम एक घर ने “ किसी न किसी रूप में भोजन के संकट” का सामना किया
नेशनल डेस्क: पश्चिम बंगाल में covid-19 की पहली लहर की वजह से लागू लॉकडाउन के दौरान हर पांच में से कम से कम एक घर ने “ किसी न किसी रूप में भोजन के संकट” का सामना किया और अगर राज्य सरकार ने जन वितरण प्रणाली के जरिये अनाज का मुफ्त वितरण नहीं किया होता तो यह स्थिति बदतर हो सकती थी। नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन के नेतृत्व वाले प्रतीची (इंडिया) न्यास की ओर से जारी एक रिपोर्ट में यह दावा किया गया है।
रिपोर्ट का शीर्षक “स्टेयिंग अलाइव- कोविड-19 एंड पब्लिक सर्विसेज इन वेस्ट बंगाल” (Staying Alive - Kovid-19 and Public Services in West Bengal) है जिसके अनुसार, राज्य के अनुसूचित जनजाति समुदायों के घरों में भोजन का संकट, अन्य सामाजिक वर्गों के मुकाबले अधिक था। रिपोर्ट में कहा गया कि अध्ययन के अनुसार, पांच में से एक घर में भोजन का किसी न किसी रूप में संकट पैदा हुआ। इस संकट की अवधि चार से 240 दिन के बीच रही। ज्यादातर घरों में लगभग 60 दिन तक यह परेशानी रही।” शहरी इलाकों के मुकाबले ग्रामीण क्षेत्रों में इस तरह के मामले ज्यादा सामने आए।
अध्ययन में कहा गया कि ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि शहरी क्षेत्रों में आय का स्रोत ज्यादा स्थिर था। शहरी इलाकों में ज्यादातर घरों में लोगों को आय और पेंशन के माध्यम से कमाई होती रही। सर्वेक्षण में दावा किया गया कि अनुसूचित जनजाति के घरों में भोजन के संकट की अधिक मार पड़ी। रिपोर्ट में कहा गया कि जिन घरों में भोजन का कुछ संकट पैदा हुआ उनमें से अधिकांश (29 प्रतिशत) वे थे जिनके आय का मुख्य स्रोत कृषि गतिवधियों में मजदूरी करना था। इसके बाद, गैर कृषि गतिविधियों से जीविकोपार्जन करने वाले 25 प्रतिशत लोग थे जिन्हें भोजन के संकट के दंश को झेला।