हिंदी साहित्य के संसार को ‘तमस’ जैसा तोहफा देने वाले महान साहित्यकार भीष्म साहनी का है आज जन्मदिन

Edited By prachi upadhyay,Updated: 08 Aug, 2019 02:57 PM

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विभाजन की त्रासदी पर ‘तमस’ जैसा उपन्यास लिखने वाले साहित्यकार भीष्म साहनी का आज जन्मदिन है। 8 अगस्त 1915 को पंजाब के रावलपिंडी (अब पाकिस्तान में) में पैदा हुए भीष्म साहनी मशहूर अभिनेता बलराज साहनी के छोटे भाई थे। भीष्म साहनी के लिए हिंदी साहित्य के...

नेशनल डेस्क: विभाजन की त्रासदी पर ‘तमस’ जैसा उपन्यास लिखने वाले साहित्यकार भीष्म साहनी का आज जन्मदिन है। 8 अगस्त 1915 को पंजाब के रावलपिंडी (अब पाकिस्तान में) में पैदा हुए भीष्म साहनी मशहूर अभिनेता बलराज साहनी के छोटे भाई थे। भीष्म साहनी के लिए हिंदी साहित्य के मशहूर आलोचक नामवर सिंह कहते हैं।

 हैरानी होती है यह देख कर कि रावलपिंडी से आया हुआ आदमी जो पेशे से अंग्रेज़ी का अध्यापक था और जिसकी भाषा पंजाबी थी, वह हिंदी साहित्य में एक प्रतिमान स्थापित कर रहा था।’

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उनकी ये हैरानी पूरी तरह से जायज थी। साल 1975 में अपने उपन्यास तमस के लिए भीष्म साहनी को साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। तमस में विभाजन की त्रासदी के बारे में लिखा गया है। केवल 5 दिन का वर्णन है। लेकिन वो पांच दिन की कहानी आपको अंदर तक कचोटने की मद्दा रखती है। उनकी कहानियां आपको अपने और दूसरों के अंर्तमन में छिपी कुरूपताओं, सांप्रदायिकताओं और विरोधाभास से नजर मिलाने की समझ देती है।तमस के अलावा उनका आखिरी उपन्यास नीलू, नीलिमा और नीलोफर में एक प्रेमकथा थी। जिसमें एक अंतर्धार्मिक प्रेम और विवाह के लिए ‘ऑनर किलिंग’ पहली बार किसी उपन्यास केंद्रबिंदु बनी।

विनम्र और मृदुल थे साहनी

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भीष्म साहनी की कहानियां जितनी ही बुलंदी और गहराई से अपनी बात अपने पाठकों के सामने रखती थी, साहनी स्वभाव से जितने शांत और विनम्र थे। इसका एक उदाहरण देते हैं। उन्होने अपने पहला नाटक लिखा ‘हानूश’। हालांकि तबतक वो हिंदी साहित्य के जानेमाने उपन्यासकारों में शामिल हो चुके थे। लेकिन फिर भी वो अपना नाटक लेकर अपने बड़े भाई बलराज साहनी के पास पहुंचे। लेकिन बलराज साहनी ने नाटक को पास नहीं किया। भीष्म साहनी बिना कोई बहस किए उदास होकर लौट गए। फिर दोबारा वो नाटक में कुछ तब्दीलियां करके अपने बड़े भाई को दिखाने पहुंचे। इस बार भी उन्होने नाटक को खारिज कर दिया। जिसके बाद साहनी ने तीसरी बार इस पर और मेहनत की और निर्देशक इब्राहीम अल्काजी के पास पहुंचे, जिन्होंने कई दिनों तक नाटक अपने पास रखा और बिना देखे वापस कर दिया। जिसके बाद भीष्म साहनी ने वो नाटक अपने मूल रूप में ही छपवाया। और जब राजिंदर नाथ ने हानूश को मंच पर उतारा तो वो बेहद कामयाब हुआ। इनसब के बावजूद भीष्म ने कभी अपने बड़े भाई बलराज साहनी और निर्देशक इब्राहिम अल्काजी को लेकर किसी तरह से अपने व्यवहार में कोई कटुता या शिकायत नहीं रखी।

पत्नी होती थी सबसे पहली पाठक और आलोचक

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भीष्म साहनी की बेटी कल्पना साहनी ने अपने पिता के आखिरी उपन्यास ‘नीलू, नीलिमा, नीलोफर’ के विमोचन के मौके पर एक बड़ी ही दिलचस्प बात बताई थी। उन्होने बताया कि, वो जो कुछ भी लिखते थे सबसे पहले मेरी मां को सुनाते थे। मेरी मां उनकी सबसे पहली पाठक और सबसे बड़ी आलोचक थीं।’ इस उपन्यास को भी मां को सौंपकर भीष्म जी किसी बच्चे की तरह उत्सुकता और बेचैनी से उनकी राय की प्रतीक्षा कर रहे थे। जब मां ने किताब के ठीक होने की हामी भरी तब जाकर उन्होंने चैन की सांस ली थी।’ 

जब ‘तमस’ पर बनी मिनी सीरीज

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निर्देशक गोविंद निहलानी ने जब तमस पढ़ी तो उन्होने इस पर फिल्म बनाने का फैसला किया। उन्होने भीष्म साहनी से पूछा तो उन्होने हामी भर दी। जिसके बाद दिल्ली में इंडिया इंटरनेशनल फ़िल्म फ़ेस्टिवल के दौरान गोविंद निहलानी ने उस वक्त की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से पूछा, ‘मैडम अगर मेरे पास भारत विभाजन जैसे विषय पर कोई गंभीर कहानी हो तो क्या भारत सरकार सहयोग करेगी।‘ इंदिरा गांधी ने पूछा, ‘सरकार से सहयोग के आपका क्या मतलब है।‘ तो गोविंद निहलानी ने कहा, ‘आर्थिक मदद।’ जिस पर उन्होने पूछा कि आप इस विषय पर कब फ़िल्म बनाना चाहते हैं। मैंने कहा कि, ‘जब मेरे पास फ़ंड होगा’। इस पर उन्होने कहा कि ‘ये उस वक़्त देश के राजनीतिक हालत पर निर्भर करता है। उसी के अनुसार सरकार ये तय करेगी की आपको मदद दें या न दें।’इंदिराजी के इस जवाब से साफ पता चल गया कि उनको लग गया था कि इस तरह की फिल्म से दंगे हो सकते है। जिसके बाद गोविंद निहलानी ने दूरदर्शन के लिए इस पर एक मिनी सीरीज बनाई। जिसे पर हंगामा मचा। लेकिन मिनी सीरीज के बाद तमस पर एक चार घंटे लंबी फीचर फिल्म भी बनाई गई। जिसने तीन नेशनल अवॉर्ड जीते।

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भीष्म साहनी ने अपने बड़े भाई से प्रभावित होकर फिल्मों में भी एक्टिंग की, इसके अलावा उन्होने बिजनेस में हाथ आजमाया लेकिन सफलता नहीं मिली। लेकिन कहानियों के जरिए भीष्म साहनी ने अपनी बात लोगों तक ऐसे पहुंचाई कि उनके उपन्यास पढ़ने के बाद आप कुछ वक्त तक उससे बाहर नहीं निकल पाएंगे। आपकी मानवता आपको उस कहानी के लिए बार-बार सोचने पर मजबूर करेगी। विभाजन पर ‘तमस’, ऑनर किलिंग पर ‘नीलू नीलिमा और नीलोफर’ और इमरजेंसी पर करारी चोट करती ‘हानूश’।       

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