पाकिस्तान है कि मानता नहीं

Edited By ,Updated: 26 Apr, 2016 06:20 PM

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पाकिस्तान की हरकतों से लगता है कि वह अपनी पुरानी आदतों को छोड़ना ही नहीं चाहता। कई अरसे से दोनों देशों में द्विपक्षीय बातचीत

पाकिस्तान की हरकतों से लगता है कि वह अपनी पुरानी आदतों को छोड़ना ही नहीं चाहता। कई अरसे से दोनों देशों में द्विपक्षीय बातचीत के जो प्रयास किए जा रहे थे, उसमें कश्मीर का कहीं जिक्र ही नहीं था। आतंकवाद और सुरक्षा पर ही बातचीत को मुख्यतौर पर केंद्रित माना जा रहा था। इसे उसकी नासमझी या शरारत माना जाएगा कि विदेश सचिवों के बीच द्विपक्षीय मुद्दों पर होने वाली वार्ता से पहले ही उसने प्रोटोकॉल को तोड़ दिया। पाकिस्तान के सचिव ऐजाज अहमद चौधरी ने प्रेस कांफ्रेंस का आयोजन करके वार्ता के मुख्य मुद्दे का खुलासा कर दिया। दूसरा, उसने फिर कश्मीर मसले के समाधान पर बल दिया। जबकि भारत की ओर से उसे दो टूक जवाब दिया जा चुका है कि कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है। इसमें वह दखलांदाजी न करे। मगर वह बाज नहीं आ रहा है। इस अवसर पर दोनों देश जिन समस्याओं को हल करने के लिए बैठे थे इनमें कश्मीर का दूर-दूर तक कोई वास्ता ही नहीं था।

भारत और पाकिस्तान के विदेश सचिवों की पठानकोट हमले के बाद यह पहली औपचारिक द्विपक्षीय वार्ता थी। समझा नहीं आता कि पाकिस्तानी पक्ष ने कश्मीर को मुख्य मुद्दा कैसे बता दिया। इसका समाधान कैसे निकाला जाए, यह भारत को देखना है पाकिस्तान क्यों बिना मांगे इसके सुझाव दे रहा है। जब पाकिस्तानी विदेश सचिव एजाज अहमद चौधरी ने ब्लूचिस्तान से गिरफ्तार किए गए भारतीय का मुद्दा उठाया तो भारत ने तुरत जवाब दे दिया कि किसी भी जासूस को कोई एजेंसी फील्ड में अपना पासपोर्ट देकर नहीं भेजती। ब्लूचिस्तान के मुद्दे पर भारत ने सारे आरोपों को गलत ठहरा दिया। भारत के विदेश सचिव एस. जयशंकर ने पाकिस्तान से पठानकोट हमले की जांच और मुंबई हमले के केस में तेजी लाने पर जोर दिया। बातचीत में मछुआरों, कैदियों और धार्मिक पर्यटन का मुद्दा भी उठाया।

नियमों के अनुसार जब दो देशों की वार्ता से पहले प्रेस कॉन्फ्रैस करके यह नहीं बताया जाता कि उनमें किन मुद्दों पर बात की जाएगी। इसके बावजूद पाकिस्तान ने प्रेस कॉन्फ्रैस की और उसमें बता दिया कि उनके सचिव भारत में कश्मीर का मुद्दा उठाएंगे। जब पाकिस्तान अपनी आदत में सुधार ही नहीं लाना चाहता और जिद को नहीं छोड़ना चाहता तो भारत को उससे किसी भी प्रकार की वार्ता नहीं करनी चाहिए। उसे पाक सरकार को बता देना चाहिए कि पहले वह वार्ता के नियमों का पालन करना सीखे। इसके बाद ही उनका आयोजन किया जा सकता है। भारत की ओर से जब तक ऐसा सख्त रवैया नहीं अपनाया जाएगा पाकिस्तान अपनी मनमानी करता रहेगा। यह नियमों के उल्लंघन के अलावा भारत का असम्मान भी है।

उल्लेखनीय है कि इस साल जनवरी माह में होने वाली यह वार्ता टल गई थी। उसके बाद यह मौका था दोनों देशों के पास आपसी मतभेद दूर करने का। इसका भी सदुपयोग नहीं हो पाया। बैठक से पहले भारतीय अधिकारियों ने कहा था कि विदेश सचिव स्तर की वार्ता के दौरान पठानकोट हमले और एनआईए की पाकिस्तान की संभावित यात्रा का मुद्दा उठाया जाएगा। भारत ने साफ कर दिया था कि वह बातचीत बहाल होने से पहले आतंकवाद और पठानकोट हमले को लेकर कार्रवाई चाहता है। लेकिन पाकिस्तान के पास इसका जवाब नहीं है, इसीलिए वह कश्मीर के मसले को छेड़ देता है जिससे कोई ठोस हल नहीं निकलता है। 

इसी माह संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान की दूत मलीहा लोधी ने कहा था कि व्यापक वार्ता बहाल करने के लिए भारत आगे नहीं आ रहा है। उसका यह रवैया द्विपक्षीय संबंधों को सामान्य करने की राह में बाधक है। लोधी ने सुझाव भी दिया था कि दोनों देशों में विस्तृत और व्यापक बातचीत होनी चाहिए। उन्होंने भारत पर ही असहयोगात्मक रवैया बरतने का आरोप लगा दिया था। सच्चाई यह है कि जब बातचीत शुरू होती है तो पार्किस्तान स्वयं इन मुद्दों से पीछे हट जाता है और कश्मीर का राग अलापना शुरू कर देता है। यह सरासर विश्व की आंखों में धूल झोंकने के समान है। 

नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह के बाद भारत और पाकिस्तान के मुखियाओं की पांच बार मुलाकात हो चुकी है,लेकिन प्रमुख मुद्दों पर आज तक ठोस हल नहीं निकल पाया है। बार-बार दोनों देशों का एक-दूसरे को यह बताना कि वह बातचीत के लिए तैयार हैं, इससे कोई लाभ नहीं निकल है। कश्मीर के अतिरिक्त अन्य मुद्दे भी हैं, जिन पर बातचीत होनी चाहिए और पाकिस्तान इसे अच्छी तरह जानता है। देखना होेगा कि पाक विदेश सचिव स्वदेश लौट कर क्या बयान देते हैं। रंग बदलने में पाकिस्तान वैसे भी माहिर है।

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