संसद के भीतर और बाहर खल रही है जेतली की कमी

Edited By Anil dev,Updated: 25 Jun, 2019 10:38 AM

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भारतीय राजनीति में पिछले 20 सालों से भाजपा के सबसे बड़े रणनीतिकार माने जाते पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेतली के अचानक राजनीति से दूर जाने से हर कोई परेशान है। वह भी तब जब लोकसभा का बजट सत्र चल रहा हो। युवा पीढ़ी के सांसद, मंत्री हों, या फिर मीडिया...

नई दिल्ली(सुनील पाण्डेय): भारतीय राजनीति में पिछले 20 सालों से भाजपा के सबसे बड़े रणनीतिकार माने जाते पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेतली के अचानक राजनीति से दूर जाने से हर कोई परेशान है। वह भी तब जब लोकसभा का बजट सत्र चल रहा हो। युवा पीढ़ी के सांसद, मंत्री हों, या फिर मीडिया जगत के पत्रकार एवं संपादक सभी को जेतली की कमी खल रही है। वैसे तो इस बार लोकसभा में कई दिग्गज नेता (लाल कृष्ण अडवानी, मुरली मनोहर जोशी, सुषमा स्वराज) भी नहीं पहुंचे हैं, लेकिन जेतली की भूमिका सबसे अहम होती रही है। भाजपा के वरिष्ठ नेता होने के कारण पार्टी की राष्ट्रीय खबरों की जानकारी तो मीडिया से शेयर करते ही थे, विपक्षी दलों में भी क्या चल रहा है, उसकी भी खबरों से जेतली वाकिफ रहते रहे हैं। साथ ही अक्सर वह चर्चा भी कर लेते थे लेकिन, अचानक संसद से गायब होने के कारण राष्ट्रीय पत्रकार जो उनके ज्यादा जुड़े थे, परेशान हैं। पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण जेतली इस समय बीमार हैं। 

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भाजपा में जेतली ही एक ऐसे नेता हैं, जो समय निकालकर महत्वपूर्ण मुद्दों पर सरकार के विचार को अवगत कराते थे। पिछले कई वर्षों से जेतली जब भी संसद में पहुंचते थे तो मीडियाकर्मी उनके आसपास पहुंच जाते थे लेकिन इस बार बजट सत्र में जेतली नहीं पहुंच रहे हैं। बीमारी के चलते उनका इलाज चल रहा है। बता दें कि नरेंद्र मोदी की पहली सरकार के दौरान राज्यसभा के नेता और वित्त मंत्री थे। इस बार वह स्वास्थ्य कारणों से सरकार में शामिल नहीं हुए। अरुण जेतली ने प्रधानमंत्री मोदी को एक चि_ी लिखकर कहा था कि वे उनकी नई सरकार में कोई जिम्मेदारी नहीं ले पाएंगे। उन्हें स्वस्थ होने के लिए अभी और समय की जरूरत है। इससे पहले भी अरुण जेतली के कैबिनेट में शामिल होने को लेकर कई तरह की कयासबाजी लगाई जा रही थी।

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भाजपा ने देश में ऐतिहासिक जीत दर्ज करते हुए 303 सीटें हासिल की हैं जबकि एन.डी.ए. 352 सीटें जीतने में कामयाब रही। एन.डी.ए. की तरफ से सैंट्रल हॉल में आयोजित कार्यक्रम में नरेंद्र मोदी को जब सर्वसम्मति से प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार चुना गया। इस दौरान भी अरुण जेतली की कमी सभी को खल रही थी। इसके अलावा ऐतिहासिक जीत के बाद अरुण जेतली किसी चैनल पर भी प्रतिक्रिया देते नजर नहीं आए हैं। इसके पीछे उनकी खराब तबीयत बताई जा रही है। 1991 में भाजपा के औपचारिक सदस्य बनने के बाद से ही जेतली का ग्राफ तेजी से ऊपर चढ़ता गया। दिल्ली के मीडिया में अपने बेहतरीन संपर्कों और प्रखर प्रवक्ता होने के चलते उन्हें 1999 में भाजपा का राष्ट्रीय प्रवक्ता बनाया गया। इसके बाद वह विभिन्न पदों पर काबिज रहे। इसी बीच केंद्र में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार बनी और वह केंद्रीय मंत्री बने। जेतली 2000 में पहली बार गुजरात से ही राज्यसभा सांसद बने।

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मोदी-जेतली की जुगलबंदी
2001 में गुजरात में जब केशुभाई पटेल को हटाकर नए मुख्यमंत्री बनाने की बात चली तो नरेंद्र मोदी का नाम दावेदार के रूप में चलने लगा। भाजपा के एक नेता की मानें तो अक्तूबर 2001 की सुबह नरेंद्र मोदी को एक फोन आया। यह फोन अटल जी का था। उन्होंने मोदी को तुरंत मिलने के लिए बुलाया था।  इस समय भाजपा में अटल-अडवानी के बाद दूसरी पंक्ति के नेताओं में अरुण जेतली, प्रमोद महाजन और सुषमा स्वराज जैसे बड़े नामों का बोलबाला हुआ करता था। उपचुनावों में मिली हार के बाद केशुभाई पटेल की स्थिति भाजपा में खराब होती चली गई और उन्हें हटाने का फैसला लिया गया। 7 अक्तूबर 2001 को अटल बिहारी वाजपेयी की रजामंदी से मोदी को गुजरात का नया मुख्यमंत्री बनाया गया। राजनीतिक जानकारों की मानें तो मोदी के मुख्यमंत्री पद के लिए और गुजरात दंगों के बाद जब उनको हटाने की बात चल रही थी तब अरुण जेतली मोदी के पीछे चट्टान की तरह खड़े थे।

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गुजरात से तीन बार राज्यसभा सांसद बने
भाजपा के वरिष्ठ नेता अरुण जेतली वर्ष 2000 में पहली बार संसद के उच्च सदन के लिए गुजरात से चुने गए। इसके बाद 2006 और 2012 में गुजरात से राज्यसभा सांसद चुने गए। 2006 और 2102 जब वह राज्यसभा के लिए चुने गए तब नरेंद्र मोदी गुजरात के सी.एम. थे। 2014 के लोकसभा चुनाव में जेतली अमृतसर में पहली बार लोकसभा चुनाव लड़े, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। 

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अमित शाह को दी कानूनी सलाह
भाजपा के एक वरिष्ठ नेता की मानें तो साल 2010 में जब सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अमित शाह को गुजरात छोडऩे के लिए मजबूर होना पड़ा तो वह सीधे दिल्ली में अरुण जेतली के घर पहुंचे थे। साल 2014 में जब अमित शाह भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने तो उस समय उनके अदालतों में उनके ऊपर केस चल रहा था। अमित शाह अपने केस के सिलसिले में अक्सर अरुण जेतली से ही सलाह लेते थे। यह भी कहा जाता है कि जेतली ने उनके केसों को निपटाने में भी बहुत मदद की।

सबसे ज्यादा भरोसा जेतली पर
स्वतंत्र भारत के इतिहास में जेतली एकमात्र राजनेता हैं, जिन्होंने वित्त मंत्री और रक्षा मंत्री का दोहरा दायित्व एक साथ निभाया है। जेतली के वित्त मंत्री रहने के दौरान ही मोदी सरकार ने जी.एस.टी. और नोटबंदी जैसे दो ऐतिहासिक कदम उठाए। प्रधानमंत्री मोदी, अरुण जेतली पर इतना भरोसा करते हैं कि गुजरात विधानसभा चुनाव 2017 में उन्हें ही प्रभारी बनाया था। रणनीतिकार के रूप में जेतली के कद का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भले ही भाजपा हार गई लेकिन गुजरात के बेहद कड़े मुकाबले में भाजपा को जीत मिली थी।

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