Edited By Anil dev,Updated: 15 Mar, 2019 10:47 AM
14 फरवरी तक चुनाव में भाजपा की संभावनाएं बहुत अच्छी नहीं दिख रही थीं। दिसंबर, 2018 में उसे राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। उधर 14 फरवरी, 2019 को पुलवामा हमले में 40 सीआरपीएफ कर्मियों की शहादत....
नई दिल्ली: 14 फरवरी तक चुनाव में भाजपा की संभावनाएं बहुत अच्छी नहीं दिख रही थीं। दिसंबर, 2018 में उसे राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। उधर 14 फरवरी, 2019 को पुलवामा हमले में 40 सीआरपीएफ कर्मियों की शहादत के बाद देश में राजनीतिक माहौल बदला हुआ प्रतीत हो रहा है। इस घटना को लेकर देश में बढ़ते विरोध के बीच भारतीय वायुसेना ने 26 फरवरी को पाकिस्तान में आतंकी शिविर पर हमला किया। मतदाता राष्ट्रीय सुरक्षा को प्राथमिकता दे सकते हैं। बालाकोट हमले के बाद राजनीतिक घटनाक्रमों से पता चलता है कि भाजपा इस मुद्दे को लेकर ध्रुवीकरण करना चाहती है।
राजनीतिक विश्लेषक पहले भी कर चुके हैं टिप्पणी
इस हमले में हुए वास्तविक नुकसान के बारे में विपक्ष द्वारा जानकारी मांगे जाने को भाजपा द्वारा देश विरोधी और सशस्त्र सेनाओं पर सवाल उठाना बताया जा रहा है। भाजपा द्वारा विपक्ष को देश विरोधी बताए जाने को लेकर राजनीतिक विश्लेषक पहले भी टिप्पणी कर चुके हैं। अब सवाल यह है कि क्या इस धु्रवीकरण से भाजपा को चुनाव में फायदा होगा। चुनाव परिणाम पर प्रभाव को लेकर भारत में मिलीजुली संभावनाएं रही हैं। एक सवाल यह भी उठता है कि क्या 2019 इससे अलग होगा क्योंकि भाजपा इस चुनाव को राष्ट्रवादी और राष्ट्रविरोधी ताकतों के बीच की लड़ाई बनाने का प्रयास कर रही है।
बाबरी मस्जिद को ढहाए जाने के बाद हुआ था यूपी चुनाव
इस चुनाव में क्या संभावनाएं हैं इसके लिए 1993 के उत्तर प्रदेश विधनसभा चुनाव और 2002 के गुजरात विधनसभा चुनाव का उदाहरण लिया जा सकता है। इन चुनावों में व्यापक ध्रुवीकरण देखा गया था। 1993 का उत्तर प्रदेश का चुनाव बाबरी मस्जिद को ढहाए जाने के बाद हुआ था। गुजरात के 2002 के चुनाव वहां हुए सांप्रदायिक दंगों के बाद हुए थे। इन दोनोंं चुनावों के दौरान भाजपा सत्ता में थी। भाजपा ने दोनों चुनवों में अपने वोट में वृद्धि की। इससे पता चलता है कि ध्रुवीकरण उसके पक्ष में रहा। हालांकि उत्तर प्रदेश में उसकी सीटें घटीं, जबकि गुजरात में बढ़ीं। उत्तर प्रदेश में सपा और बसपा के गठबंधन के कारण ऐसा हुआ।
कारगिल युद्ध के बाद भाजपा के वोट में नहीं हुई एक जैसी वृद्धि
जुलाई, 1999 में भारत की फौज ने कारगिल युद्ध में पाकिस्तान पर जीत हासिल की थी। इसके बाद हुए ुचनाव में भाजपा का औसत वोट शेयर (लड़ी गई सीटों पर) बढ़कर 40 फीसद पहुंच गया। जबकि 1998 के चुनाव में यह 36 फीसद था। इसे कुछ हद तक कारगिल युद्ध का परिणाम कहा जा सकता है। कारगिल युद्ध के बाद हुए चुनाव में भाजपा का वोट प्रतिशत सबसे अधिक राजस्थान में बढ़ा था। उसके वोट में 7.4 प्रतिशत की वृद्धि हुई थी। वहीं गुजरात में यह वृद्धि 4.9 फीसद थी। जबकि कर्नाटक, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश में उसके वोट प्रतिशत में कमी आई थी।