बंद नहीं हुए हैं BJP की वापसी के रास्ते

Edited By Anil dev,Updated: 18 Dec, 2018 11:45 AM

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राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की जीत के साथ सियासी मिजाज भी बदल गया है। कहा जाने लगा है कि अब कांग्रेस लोकसभा चुनावों के लिए देश भर के किसानों का कर्ज माफ करने का वादा करेगी। इसके साथ ही बेरोजगारी और राफेल को भी मुख्य मुद्दा बनाएगी।

नई दिल्ली: राजस्थान, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की जीत के साथ सियासी मिजाज भी बदल गया है। कहा जाने लगा है कि अब कांग्रेस लोकसभा चुनावों के लिए देश भर के किसानों का कर्ज माफ करने का वादा करेगी। इसके साथ ही बेरोजगारी और राफेल को भी मुख्य मुद्दा बनाएगी। सवाल उठता है कि क्या इन हथियारों से कांग्रेस 2019 की लड़ाई जीत लेगी। सवाल यह भी उठता है कि क्या इस हार ने भाजपा की वापसी की संभावना खत्म कर दी है। दोनों ही सवालों के जवाब हां या ना में देना मुश्किल है। हालांकि, भाजपा को पिछली बार मिली 282 सीटों में से 80 से 90 तक गंवानी पड़ सकती है। ऐसे में भाजपा की रणनीति हारने वाले सीटों की संख्या कम करने और अन्य राज्यों में इसकी भरपाई की हो सकती है। राफेल मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत दी है। यह तय है कि कांग्रेस राफेल को मरने नहीं देगी लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मुद्दा हल्का जरूर हो गया है। इसके लिए कांग्रेस को नए तथ्य और जेपीसी के गठन की मांग करनी होगी। 

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किसानों के बीच घटता जनाधार भाजपा की दूसरी बड़ी समस्या है। रायबरेली की सभा में मोदी को अपनी फसल बीमा योजना से लेकर स्वामीनाथन कमेटी की सिफारिशों के आधार पर किसानों को लागत के डेढ़ गुना ज्यादा देने की घोषणा को याद दिलाना पड़ा। मोदी को यह भी बताना पड़ा कि कैसे कांग्रेस ने 2008 में किसानों का साठ हजार करोड़ का कर्ज ही माफ किया था जबकि उस समय किसानों पर छह लाख करोड़ रुपए का कर्ज था। साफ है कि मोदी को भी इस बात का डर सता रहा है कि कांग्रेस इस बार भी किसानों का कर्ज माफ करने और एक निश्चित आय देने का बड़ा चुनावी वायदा कर सकती है। मोदी ने अभी से इसका जवाब देना शुरु कर दिया है । आगे मोदी को याद दिलाना पड़ा कि कैसे उनकी सरकार किसानों की आय 2022 तक दुगुना करने का इरादा रखती है। लेकिन मोदी सरकार को भी समझना पड़ेगा कि जमीनी हकीकत कुछ अन्य है।   
 

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इसी तरह फसल बीमा योजना को लेकर भी किसानों के अनुभव कटु ही हैं । सहकारी संस्थाओं से उधार लेने वालों का जदबरन दो फीसद प्रीमियम काट लिया जाता है । किसान को इससे भी एतराज नहीं है लेकिन जब फसल खऱाब होती है और पटवारी गिरदावरी करने तक नहीं आता है और किसान के बैंक खाते में ऊंट के मुंह में जीरे जैसा मुआवजा ही पहुंचता है तो किसान खुद को ठगा सा महसूस करता है। उदाहरण के लिए , राजस्थान में जयपुर जिले की फागी तहसील में मूंग की फसल खराब हुई तो राज्य सरकार ने साठ फीसद खराबी मानते हुए किसानों के लिए 8 हजार रुपए प्रति बीघा का मुआवजा तय किया। लेकिन बीमा कंपनी ने खराबी मानने से ही इनकार कर दिया। हैरानी की बात है कि एक तरफ राज्य सरकार फसल नुकसान होना मान रही है लेकिन बीमा कंपनी इससे इनकार कर रही है। किसान बीमा कंपनी के स्थानीय दफ्तर गए तो उन्हें बीमा कंपनी के हैदराबाद स्थित मुख्यालय जाने को कहा गया। ऐसे उदाहरणों की कोई कमी नहीं है। लेकिन क्या मोदी सरकार फसल बीमा योजना की मानिटरिंग पर ध्यान देगी। 

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आमतौर पर किसी भी फसल पर बीमा कंपनी औसत रुप से 12 से 16 फीसद का प्रीमियम लेती है। किसान दो फीसद देता है और बाकी केन्द्र और राज्य आधा आधा बांटते हैं। जब 98 फीसद प्रीमियम सरकारों की ही देना है तो फिर दो फीसद भी क्यों किसान से लिया जाए । इन चुनावों में भाजपा के लिए  चिंता की बात है कि उसे दलितो और आदिवासियों का भी साथ नहीं मिला । अब चाहे प्रधान मंत्री आवास योजना हो या फिर उज्जवला योजना। दलितों , पिछड़ो और आदिवासियों को ही ध्यान में रखकर दोनों योजनाएं बनाई गई थी। लेकिन इसके बाद भी वोट नहीं मिल रहा है या फिर पहले के मुकाबले कम हुआ है तो उसके कारण तलाशने ही होंगे। उज्जवला गैस योजना के तहत सिलेंडर तो बहुत दिये गए हैं लेकिन यहां भी एक बड़ा पेच है। सरकार उज्जवला के तहत मुफ्त में न तो चूल्हा देती है और न ही सिलेंडर। करीब करीब 1500 रुपऐ सरकार वसूलती है । इसके लिए सरकार पहले पांच गैस सिलेंडर बिना सब्सिडी के देती है। इस तरह हर सिलेंडर पर करीब तीन सौ रुपए की सब्सिडी बचा लेती है। पांच सिलेंडरों पर यह 1500 रुपया हो जाती है। 
 

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इन दिनों बिना सब्सिडी वाला सिलेंडर यूपी बिहार एमपी में करीब 900 से लेकर 1100 रुपए तक का पड़ता है । गांव में लोग कहते हैं कि सिलेंडर खाली होने पर रिफिल नहीं करवा पाते। सरकार के आंकड़े भी बताते हैं कि किसी किसी राज्य में तो 80 फीसद तक उपभोक्ताओं ने सिलेंडर की रिफिलिंग नहीं करवाई या फिर साल दो साल में दो सिलेंडर ही लिए। चुनावी साल में तो कम से कम सरकार रियायत दे सकती थी। अब सरकार ने उज्जवला वालों को पांच किलो का छोटा सिलेंडर देने का विकल्प दिया है लेकिन इसकी जानकारी नीचे गांव देहातों तक पहुंच नहीं पाई है।  प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत जिन्हें भी घर मिल रहा है वह खुशी-खुशी बीजेपी को वोट देता दिख रहा है। कहीं कहीं आखिरी की बीस तीस हजार कि किश्त नहीं मिली है जिसपर सरकार को ध्यान देना चाहिए। वैसे भी इस योजना के तहत अभी तक सिर्फ सवा करोड़ घर ही बने हैं  (यह दावा भी सरकार का है ) और चुनाव जीतने के लिए इतने भर से काम नहीं चलने वाला है । 


अब यह देखना दिलचस्प रहेगा कि  राजस्थान , मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की नई सरकारें इन योजनाओं पर क्या रुख अपनाती हैं। उस पर भी भाजपा को नजर रखनी होगी और कुछ भी गलत होने पर उसे बड़ा चुनावी मुद्दा बनाने की कोशिश करनी होगी। आयुष्मान योजना बीजेपी के लिए गेम चेंजिंग हो सकती है। लेकिन देखा गया है कि सरकार और  संगठन दोनों ने ही इसके बारे में बहुत कम प्रचार प्रसार किया है। यह अपने आप में हैरानी की बात है। जहां तक रोजगार के मुद्दे की बात है तो इसके लिए मोदी सरकार के पास वक्त नहीं बचा है। मुद्रा योजना के आंकड़े गिना गिना कर रोजगार नहीं दिया जा सकता। भाजपा का कहना है कि उसकी योजनाओं का लाभ 22 करोड़ से ज्यादा लोगों तक पहुंचा है और उसके11 करोड़ कार्यकर्ता हैं। ऐसे में 33 करोड़ वोट उसे मिलने चाहिए जो पिछली बार से दुगुने हो रहे हैं। लेकिन तीनों राज्यों में 2014 के मुकाबले बीजेपी के वोट दस फीसद तक औसत रुप से कम हुए हैं। यह अपने आप में चिंता की बात है जो बताती है कि विकास के नारे से काम नहीं चलने वाला है । तो क्या अंत में फिर वही राम मंदिर और फिर वही गाय ही काम आएंगे। 

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