Gujarat Election 2022: क्या कच्छ में अपनी जीत बरकरार रखेगी भाजपा, कांग्रेस कर रही साइलेंट प्रचार

Edited By Anil dev,Updated: 28 Nov, 2022 10:47 AM

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भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को गुजरात विधानसभा चुनावों में कच्छ जिले में अपना विजयी अभियान बरकरार रखने का भरोसा है जबकि कांग्रेस ग्रामीण इलाकों में बड़ी खामोशी से अभियान चला रही है और आम आदमी पार्टी (आप) चुनाव को त्रिकोणीय बनाने के लिए तैयार है।

नेशनल डेस्क: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को गुजरात विधानसभा चुनावों में कच्छ जिले में अपना विजयी अभियान बरकरार रखने का भरोसा है जबकि कांग्रेस ग्रामीण इलाकों में बड़ी खामोशी से अभियान चला रही है और आम आदमी पार्टी (आप) चुनाव को त्रिकोणीय बनाने के लिए तैयार है।

असदुद्दीन ओवैसी के नेतृत्व वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) दो अल्पसंख्यक बहुल सीट पर चुनाव लड़ रही है। कच्छ में पहले चरण के तहत एक दिसंबर को मतदान होना है। जिले में छह विधानसभा क्षेत्र पाकिस्तान की सीमा से लगते अबडासा, भुज और रापर के अलावा मांडवी, अंजार और गांधीधाम शामिल हैं। जिले में छह निर्वाचन क्षेत्रों में करीब 16 लाख मतदाता हैं जिनमें पुरुष और महिला मतदाताओं की संख्या समान है। कुल मतदाताओं की करीब 19 प्रतिशत आबादी मुस्लिम है जबकि दलित 12 प्रतिशत और पटेल करीब 10.5 प्रतिशत हैं। क्षत्रिय और कोली समुदायों की आबादी क्रमश: 6.5 प्रतिशत और 5.2 प्रतिशत है। 

दलित, क्षत्रिय, कोली, ब्राह्मण और राजपूत पिछले दो दशक से भाजपा के मतदाता रहे हैं जबकि 2012 तक भाजपा के साथ रहा पटेल का एक बड़ा वर्ग 2015 के पाटीदार आंदोलन के बाद सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ हो गया। वहीं, कांग्रेस अल्पसंख्यकों की पहली पसंद रही तथा ग्रामीण इलाकों में पटेल, क्षत्रियों के एक वर्ग तथा रबारी जैसे छोटे समुदायों का भी उसे साथ मिला है। इस सूखे क्षेत्र में आक्रामक प्रचार अभियान चलाने वाली आप शिक्षा, स्वास्थ्य और पानी जैसे बुनियादी मुद्दों पर जोर दे रही है। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल कच्छ में तिरंगा यात्रा निकाल रहे हैं। एआईएमआईएम ने इलाके में अल्पसंख्यकों के विकास को मुद्दा बनाया है। कच्छ जिले में 2002 से ही छह में से ज्यादातर सीटें जीतती आ रही भाजपा को इस बार विकास और विभाजित विपक्ष दोनों का फायदा उठाकर सूपड़ा साफ करने की उम्मीद है। कच्छ जिले के लिए पार्टी के मीडिया प्रभारी सात्विक गढ़वी ने ‘पीटीआई-भाषा' से कहा, ‘‘हमें इस बार सूपड़ा साफ करने की उम्मीद है। 

भाजपा का कोई विरोध नहीं है क्योंकि 2001 में भूकंप के बाद से किए गए विकास के लिए लोग हमारे साथ हैं।'' भाजपा सूत्रों के अनुसार, पार्टी जिले में बिखरे विपक्ष को ज्यादा तवज्जो नहीं दे रही है और उम्मीदवारों के चयन में पार्टी कार्यकर्ताओं के एक वर्ग के बीच रोष उसके लिए चिंता का सबब है। अबडासा सीट पर भाजपा ने क्षत्रिय समुदाय के पूर्व कांग्रेस नेता और मौजूदा विधायक प्रद्युमन सिंह जडेजा को उम्मीदवार बनाया है। भुज सीट पर पार्टी ने दो बार के मौजूदा विधायक और विधानसभा अध्यक्ष नीमाबेन आचार्य के स्थान पर स्थानीय पार्टी नेता केशुभाई शिवदास पटेल को टिकट दिया है जिन्हें उनके संगठनात्मक कौशल के लिए जाना जाता है। आचार्य के समर्थक इस बात से खफा हैं। अंजार में पार्टी ने मौजूदा विधायक वसनभाई अहिर का टिकट काटकर त्रिकमभाई छंगा को उम्मीदवार बनाया है। 

मांडवी में भाजपा ने मौजूदा विधायक विरेंद्रसिंह जडेजा के बजाय अनिरुद्ध दवे को टिकट दिया है। जडेजा को पड़ोसी रापर सीट से टिकट दिया गया है जिस पर 2017 में कांग्रेस ने जीत हासिल की थी। कांग्रेस बिना किसी शोर-शराबे के अपना अभियान चला रही है। विपक्षी दल साम्प्रदायिक राजनीति को नजरअंदाज कर शासन के मुद्दों पर अधिक ध्यान दे रही है। कांग्रेस के लिए जिले में वापस जीत दर्ज करना और खासतौर से पिछली बार जीती गयी दो सीटों पर कब्जा बरकरार रखना सबसे बड़ी चुनौती है। कांग्रेस के जिला अध्यक्ष यजुवेंद्र जडेजा ने कहा, ‘‘हमें कच्छ जिले में सभी छह सीटों पर जीत का भरोसा है। यहां लोग भाजपा के कुशासन से परेशान हो गए हैं। भाजपा चुनाव जीतने के लिए साम्प्रदायिक अभियान से लेकर सभी हथकंडे अपना रही है।'' 

बहरहाल, आप और एआईएमआईएम के मुकाबले में आने से क्षेत्र का चुनावी गणित गड़बड़ हो गया है। कांग्रेस और भाजपा को डर है कि आप पटेल समुदाय, क्षत्रिय और दलितों के बीच उनके वोटों को काट सकती है। हालांकि, स्थानीय भाजपा नेता एआईएमआईएम के चुनाव लड़ने से खुश है क्योंकि भुज और मांडवी जैसी सीटों पर अल्पसंख्यक मतदाताओं के पास कांग्रेस के अलावा और भी विकल्प होगा। चुनाव की तैयारियों के बीच पाकिस्तान की सीमा से सटे कच्छ जिले में हजारों करोड़ रुपये की मादक द्रव्यों की तस्करी, पानी का संकट और सांप्रदायिक झड़पों की छिटपुट घटनाएं प्रमुख चुनावी मुद्दे हैं। 

पाकिस्तानी जेलों में बंद मछुआरों के परिवार वालों के लिए उनकी रिहाई ही इकलौता चुनावी मुद्दा है। गुजरात के तटीय क्षेत्र खासतौर से सौराष्ट्र, पोरबंदर, वेराल, द्वारका और मगरोल के 655 मछुआरों के परिवारों के लिये पाकिस्तानी जेलों में बंद अपने प्रियजनों को वापस लाना ही चुनावी मुद्दा है जो पिछले कई वर्षों से वहां बंद हैं। पाकिस्तानी जेलों में बंद मछुआरों के परिवार के सदस्यों का कहना है कि वे आगामी चुनाव में उस पार्टी को ही वोट देंगे जो उनसे पड़ोसी देश से उनके रिश्तेदारों को वापस लाने का वादा करेगी। 

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