दक्षिण भारत की 129 सीटों पर संकट में भाजपा!

Edited By Naresh Kumar,Updated: 12 Apr, 2018 09:43 AM

bjp in crisis over 129 seats in south india

15वें वित्त आयोग द्वारा राज्यों को दी जाने वाली आर्थिक मदद के नए फार्मूले को लेकर दक्षिण भारत में पैदा हुआ विवाद भाजपा के लिए राजनीतिक रूप से नुक्सानदेय साबित हो सकता है। दक्षिण भारत के 4 बड़े राज्यों में लोकसभा की 129 सीटें हैं। इनमें से कर्नाटक...

जालंधर(नरेश कुमार): 15वें वित्त आयोग द्वारा राज्यों को दी जाने वाली आर्थिक मदद के नए फार्मूले को लेकर दक्षिण भारत में पैदा हुआ विवाद भाजपा के लिए राजनीतिक रूप से नुक्सानदेय साबित हो सकता है। दक्षिण भारत के 4 बड़े राज्यों में लोकसभा की 129 सीटें हैं। इनमें से कर्नाटक में 28, केरल में 20, आंध्र प्रदेश में 25, तेलंगाना में 17 और तमिलनाडु में लोकसभा की 39 सीटें हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा और उसकी सहयोगी टी.डी.पी. को इन राज्यों में लोकसभा की 37 सीटें हासिल हुई थीं लेकिन जिस तरीके से राज्यों को मिलने वाली केंद्र की वित्तीय मदद को लेकर बवाल खड़ा हुआ है उसे देखते हुए भाजपा को इसका राजनीतिक खमियाजा भुगतना पड़ सकता है।

नए फार्मूले के खिलाफ एकजुट हुए दक्षिण के राज्य
दक्षिण भारत के राज्यों ने केंद्र सरकार के 15वें वित्त आयोग द्वारा राज्यों को केंद्रीय करों में मिलने वाली हिस्सेदारी को लेकर बनाए गए फार्मूले के विरोध में दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है। आंध्र प्रदेश के वित्त मंत्री वाई. रामकृष्ण नाड़ू कर्नाटक के कृषि मंत्री कृष्णा बायरेगौड़ा और केरल के वित्त मंत्री थॉमस इस्साक और पुड्डुचेरी के मुख्यमंत्री वी. नारायण स्वामी ने तिरुवनंतपुरम में एक बैठक करके 15वें वित्त आयोग के फार्मूले को रद्द कर दिया है। हालांकि बैठक में तमिलनाडु और तेलंगाना की तरफ से कोई भी मंत्री शामिल नहीं हुआ। दक्षिण के इन राज्यों में से पुड्डुचेरी व कर्नाटक में कांग्रेस की सरकार है जबकि आंध्र प्रदेश में भाजपा की सहयोगी रही टी.डी.पी. की सरकार है। मीटिंग के बाद इन राज्यों के वित्त मंत्रियों ने कहा कि 15वें वित्त आयोग द्वारा तैयार किए गए फार्मूले से दक्षिण के राज्यों को नुक्सान होगा। लिहाजा वह अपनी लड़ाई को आगे बढ़ाने के लिए और प्रयास करेंगे। इन वित्त मंत्रियों का आरोप है कि दक्षिण के राज्यों को केंद्र की योजनाएं सुचारू रूप से लागू करने की सजा दी जा रही है।

राज्य    आबादी  जी.एस.डी.पी.   प्रति व्यक्ति जी.एस.डी.पी.      केंद्रीय मदद
आंध्र प्रदेश   4.94   5470214.50 107802.40 6.74 प्रतिशत
कर्नाटक 6.11  8743947.90 134729.60 4.71 प्रतिशत
केरल 3.34   4808779.10   140107.40   2.5 प्रतिशत
तमिलनाडु 7.21     10190780.00   134145.70 4.02 प्रतिशत
तेलंगाना     3.52  4979574.40 132771.00     उपलब्ध नहीं

आबादी करोड़ में, जी. एस.डी.पी. मिलियन रुपए में, स्रोत आर्थिक सर्वेक्षण 2014-15

क्या है नया प्रस्ताव
15वें वित्त आयोग द्वारा राज्यों को दी जाने वाली केंद्रीय करों में हिस्सेदारी के लिए 2011 की जनगणना को आधार बनाया जा रहा है जबकि पहले यह आधार 1971 की जनगणना का रहा है। तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश और कर्नाटक ऐसे राज्य हैं जिन्होंने तेजी से जनसंख्या पर नियंत्रण किया है। 1971 में इन राज्यों की आबादी देश की आबादी का कुल 22 प्रतिशत थी जो 2011 में कम होकर 18.2 प्रतिशत रह गई है। दक्षिण भारत के राज्यों का आरोप है कि नए फार्मूले से दक्षिण भारत को नुक्सान होगा और ज्यादा जनसंख्या वाले यू.पी. व बिहार जैसे राज्यों को इसका फायदा होगा। 15वें वित्त आयोग की सिफारिशें 1 अप्रैल, 2020 से लागू की जानी हैं।

कम होगा दक्षिण का राजस्व
पुड्डुचेरी के वित्त मंत्रालय का भी काम देखने वाले मुख्यमंत्री नारायण स्वामी ने कहा कि केंद्र की प्रस्तावित नीति दक्षिण भारत के राज्यों को विद्रोह करने पर मजबूर कर रही है। केरल का कहना है कि यदि 15वें वित्त आयोग की सिफारिशें लागू हुईं तो केरल को 20 हजार करोड़ रुपए का नुक्सान होगा। वित्त मंत्री अरुण जेतली ने दक्षिण भारत के राज्यों द्वारा खड़े किए जा रहे इस विवाद को निरर्थक बताया है और कहा है कि 15वें वित्त आयोग की सिफारिशें राज्यों की जरूरतों पर आधारित हैं। इसके अलावा इन सिफारिशों में राज्यों के लोगों की औसत आमदनी को भी ध्यान में रखा गया है। ये राज्य विकास की दृष्टि से पिछड़े हुए हैं। लिहाजा इन राज्यों में ज्यादा विकास की जरूरत है। इन राज्यों के लोगों को शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुविधाएं नहीं मिल रहीं। लिहाजा उन्हें ये सुविधाएं मुहैया करवाना जरूरी है और ये राज्य अपने दम पर ऐसी सुविधाएं मुहैया करवाने में सक्षम नहीं हैं।

कांग्रेस सक्रिय, भाजपा के पास चेहरा नहीं
भाजपा के वरिष्ठ नेता वेंकैया नायडू को उपराष्ट्रपति बनाए जाने के बाद से ही भाजपा दक्षिण भारत में विश्वसनीय व जमीन से जुड़े चेहरे की कमी से जूझ रही है। 15वें वित्त आयोग के फार्मूले को लेकर पैदा हुए विवाद और इस पर हो रही राजनीति का जवाब देने के लिए भाजपा को दक्षिण का कोई बड़ा चेहरा नहीं मिल रहा। कांग्रेस की तरफ से इस मामले में आक्रामक राजनीति शुरू कर दी गई है। इस राजनीति की शुरूआत केरल से आने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर ने अखबारों में लेख लिख कर शुरू की। इस लेख में कहा गया कि 15वें वित्त आयोग के राज्यों के दी जाने वाली केन्द्रीय सहायता के फार्मूले से दक्षिण भारत के राज्यों को नुक्सान होगा। शशि थरूर की तरह ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता व पूर्व वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम ने भी अखबारों में लेख लिख कर 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों को दक्षिण भारत के राज्यों के खिलाफ बताया। कर्नाटक में मुख्यमंत्री सिद्धरमैया पहले से ही कर्नाटक की अस्मिता को लेकर राजनीति कर रहे हैं और उन्होंने कर्नाटक के चुनाव का स्थानीय स्तर पर ही पूरी तरह प्रबंधन किया है और कांग्रेस को दक्षिण भारत की क्षेत्रीय पार्टी के रूप में बदल दिया है।

पूर्व कांग्रेसियों की पार्टी बनी भाजपा
दक्षिण भारत में भाजपा 2014 के चुनाव से पहले पार्टी में शामिल किए गए पूर्व कांग्रेसी नेताओं के सहारे ही राजनीति कर रही है। इन नेताओं का स्थानीय स्तर पर तो दबदबा है लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर ऐसे नेताओं की उतनी पहचान नहीं है। टी.डी.पी. द्वारा एन.डी.ए. से नाता तोडऩे और भाजपा को दक्षिण भारत की विरोधी पार्टी के तौर पर प्रचारित किए जाने के बाद भाजपा इन आरोपों का जवाब देने के लिए उन्हीं नेताओं को मैदान में उतार रही है जो 2014 के चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हुए थे। कई बार सांसद रह चुके कन्ना लक्ष्मी नारायण और पूर्व केन्द्रीय मंत्री के.एस. राव और डी. पुंडरेश्वरी जैसे नेताओं ने पिछले लोकसभा चुनाव से पहले आंध्र के विभाजन के बाद कांग्रेस छोड़ कर भाजपा ज्वाइन की थी। टी.डी.पी. के साथ गठबंधन होने के कारण भाजपा इन नेताओं का बड़े स्तर पर राजनीतिक इस्तेमाल नहीं कर रही थी और इन नेताओं को लो प्रोफाइल रखा गया था। अब टी.डी.पी. के हमले का जवाब इन्हीं नेताओं के जरिए दिया जा रहा है।

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