Edited By Seema Sharma,Updated: 07 Jan, 2019 08:33 AM
भाजपा नेतृत्व इस बात को लेकर दुविधा में है कि उसे महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के संबंध में ऐसा क्या कुछ करना चाहिए जहां विधानसभा चुनाव अक्तूबर-दिसम्बर 2019 के बीच होने हैं।
नेशनल डेस्कः भाजपा नेतृत्व इस बात को लेकर दुविधा में है कि उसे महाराष्ट्र, हरियाणा और झारखंड के संबंध में ऐसा क्या कुछ करना चाहिए जहां विधानसभा चुनाव अक्तूबर-दिसम्बर 2019 के बीच होने हैं। भाजपा में कोर नीति ग्रुप इन राज्यों में चुनावों को आगे कराने के लाभ-हानि का अध्ययन कर रहा है और इनको अप्रैल-मई में होने वाले लोकसभा चुनावों के साथ ही इन राज्यों में भी चुनाव कराने के फायदे पर भी विचार कर रहा है। यद्यपि भाजपा ने इन राज्यों में विधानसभा चुनाव अपने बल पर लड़े थे और हरियाणा तथा झारखंड में अपने जोर पर सरकारें बनाई थीं। महाराष्ट्र में भाजपा को शिवसेना के साथ चुनाव के बाद गठबंधन करना पड़ा।
भाजपा को 288 सदस्यीय विधानसभा में 122 सीटें मिली थीं, शिवसेना को 63। यद्यपि दोनों पार्टियों ने मिलकर लोकसभा के चुनाव लड़े थे मगर विधानसभा के चुनाव के दौरान ये अलग हो गई थीं। इन दोनों पार्टियों में मतभेद बरकरार रहे क्योंकि शिवसेना ने मुख्यमंत्री का पद भाजपा के हाथों खोने पर कभी समझौता नहीं किया। ऐसा विचार है कि भाजपा मोदी लहर को लेकर इन राज्यों में विधानसभा चुनावों के नतीजे अपने पक्ष में कर सकती है बशर्ते यहां चुनाव भी लोकसभा के साथ कराए जाएं। इन राज्यों में चुनाव आगे कराने के कारण अलग-अलग हो सकते हैं। महाराष्ट्र में ऐसी जोरदार मांग है कि भाजपा को लोकसभा चुनावों में शिवसेना को साथ लेकर चलना चाहिए मगर सेना चाहती है कि विधानसभा के चुनाव लोकसभा के साथ करवाए जाएं और विधानसभा सीटों के बंटवारे में 50-50 हिस्सेदारी का फार्मूला निर्धारित किया जाए।
शिवसेना चाहती है कि मुख्यमंत्री का पद दोनों पार्टियों के बीच अढ़ाई-अढ़ाई वर्ष के लिए निर्धारित हो, बेशक कोई भी पार्टी अधिक सीटें क्यों न जीत पाए। भाजपा नेतृत्व उस समय तक बहुत ऊंची उड़ान में था जब तक वह राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ के हिन्दी भाषी राज्यों में कांग्रेस के हाथों पराजित नहीं हुआ था। 12 दिसम्बर के बाद भाजपा नेतृत्व अपने सहयोगियों को साथ रखने की कोशिश कर रहा है और उनकी मांगों को भी मान रहा है। वह चाहता है कि उसके मौजूदा सहयोगी दल साथ रहें और वह एन.डी.ए. के विस्तार के लिए कड़ी मेहनत कर रहा है। भाजपा नेतृत्व जानता है कि शिवसेना को खो देने से मौजूदा परिस्थितियों में उसे बड़ा आघात पहुंचेगा लेकिन भाजपा मजबूरियों के बावजूद शिवसेना को मुख्यमंत्री का पद सौंपने के मूड में नहीं। इस संबंध में अभी कोई अंतिम फैसला नहीं लिया गया और भाजपा ने सभी विकल्प खुले छोड़ रखे हैं।