भाजपा सरकार बनी तो दूसरे नंबर पर हो सकते हैं शाह!

Edited By vasudha,Updated: 31 Mar, 2019 10:53 AM

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भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के शनिवार को गांधीनगर सीट से नामांकन दाखिल करने के मौके पर केंद्रीय मंत्रियों तथा एनडीए के नेताओं के जमावड़े के जरिए गठबंधन की एकता का संदेश तो दिया ही गया, शायद यह जताने की कोशिश भी की गई कि भाजपा के घटक दलों में भी शाह सर्व...

नई दिल्ली(सुनील पांडेय): भाजपा अध्यक्ष अमित शाह के शनिवार को गांधीनगर सीट से नामांकन दाखिल करने के मौके पर केंद्रीय मंत्रियों तथा एनडीए के नेताओं के जमावड़े के जरिए गठबंधन की एकता का संदेश तो दिया ही गया, शायद यह जताने की कोशिश भी की गई कि भाजपा के घटक दलों में भी शाह सर्व स्वीकार्य हैं। इसे आने वाले दिनों में अमित शाह को बड़ी भूमिका दिए जाने के संकेत के तौर पर भी देखा जा रहा है।
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यदि चुनावी दृष्टि से देखा जाए तो गांधीनगर सीट भाजपा के लिए अनुकूल रही है। इसी लोकसभा सीट के एक विधानसभा क्षेत्र से अमित शाह लगातार जीत दर्ज करते रहे हैं। भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण अडवानी जब पहली बार गांधीनगर सीट से लोकसभा चुनाव लड़े थे, तब मैनेजमेंट का जिम्मा शाह के ही कंधों पर डाला गया था। कारण, इस सीट के मिजाज से शाह पूरी तरह परिचित हैं। उन्होंने बूथ अध्यक्ष से लेकर विधायक का सफर भी यहीं से तय किया है। अब जब शाह पार्टी अध्यक्ष हैं तब उनके नामांकन के वक्त भाजपा और सहयोगी दलों के दिग्गजों के इकट्ठा होने के कई अर्थ लगाए जा रहे हैं। 
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शाह के नामांकन के दौरान बड़े नेताओं की भीड़ का मतलब केवल जीत के लिए माहौल बनाना नहीं हो सकता। सूत्रों के मुताबिक सरकार के वरिष्ठ मंत्रियों, भाजपा के वरिष्ठ नेताओं तथा राजग नेताओं को बुलाकर यह संदेश देने की कोशिश की गई है कि देश में यही एक गठबंधन है जो राजनीतिक रूप से मजबूत है। इसके अलावा इसे शाह को भविष्य के लिए प्रोजेक्ट करने से जोड़कर भी देखा जा रहा है। समझा जा रहा है कि 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा की ओर से 2024 का विकल्प परोसने की कोशिश हो रही है। राजनीतिक गलियारों में लंबे समय से चर्चा है कि यदि चुनाव के बाद केंद्र में नरेंद्र मोदी की सरकार बनी तो शाह का ओहदा दूसरे नंबर का हो सकता है और उन्हें गृहमंत्री बनाया जा सकता है। 

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कुछ राजनीतिक विश्लेषक इसे भाजपा की उत्तराधिकार योजना के तौर पर भी देखते हैं। यदि वर्ष 2024 में नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री पद से अलग होते हैं, जिसका संकेत उन्होंने 2014 में ही दे दिया था, तो उस समय शाह प्रधानमंत्री पद के दावेदार हो सकते हैं। राजनीति के कुछ जानकारों का नजरिया यह है कि लोकसभा चुनाव लड़कर शाह यह जताना चाहते हैं कि वह केवल चुनावी रणनीतिकार या पार्टी की जीत के वास्तुकार नहीं हैं,अपितु वह एक जनप्रिय नेता भी हैं। 
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पार्टी कार्यकर्ताओं में शाह का प्रभाव कोई छिपी बात नहीं है, आम जनता भी उनकी रैलियों में तालियां बजाती दिखती है। उनकी लोकप्रियता का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि इस बार चुनावों में जहां मोदी की 150 से 200 रैलियां करने की योजना है, वहीं शाह के लिए संख्या 250 तक हो सकती है। प्रधानमंत्री के रूप में व्यस्तता के कारण मोदी की रैलियों की संख्या थोड़ी कम हो सकती है, लेकिन भाजपा प्रत्याशियों के लिए वह पहली पसंद हैं और यहां भी दूसरे नंबर पर अमित शाह ही हैं।

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