बहुमत से चूकी पार्टी तो सहयोगी करेंगे बड़ी मांग, भाजपा को चुकानी पड़ सकती है समर्थन की बड़ी कीमत

Edited By Pardeep,Updated: 19 May, 2019 05:43 AM

bjp may have to pay big price for support

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा भले ही 300 से ज्यादा लोकसभा सीटें जीतने का दावा किया जा रहा है लेकिन यदि असल नतीजे इसके विपरीत आए और भाजपा को सरकार बनाने के लिए सहयोगियों की जरूरत पड़ी तो भाजपा के अपने सहयोगी इस जरूरत के...

इलेक्शन डेस्क(नरेश कुमार): प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह द्वारा भले ही 300 से ज्यादा लोकसभा सीटें जीतने का दावा किया जा रहा है लेकिन यदि असल नतीजे इसके विपरीत आए और भाजपा को सरकार बनाने के लिए सहयोगियों की जरूरत पड़ी तो भाजपा के अपने सहयोगी इस जरूरत के लिए बड़ी कीमत मांग सकते हैं। भारतीय जनता पार्टी के साथ पुराने सहयोगियों के रूप में शिवसेना के अलावा जनता दल (यू), अकाली दल, रामविलास पासवान की लोजपा सहित कई छोटे-मोटे दल हैं जो केंद्र में भाजपा को समर्थन की बड़ी कीमत मांगेंगे। 
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महाराष्ट्र में सी.एम. की कुर्सी मांगेंगे उद्धव ठाकरे 
भारतीय जनता पार्टी की सहयोगी शिवसेना पिछले 5 साल से सरकार के साथ सत्ता में है और केंद्र में उसका मंत्री भी है लेकिन पिछले 5 साल में शिवसेना हमेशा पार्टी को सम्मान न दिए जाने की बात करती रही है। शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे को महाराष्ट्र में बड़े भाई का दर्जा खोए जाने का भी दर्द है। 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद ही भाजपा ने विधानसभा चुनाव में बेहतरीन प्रदर्शन करके भाजपा का सी.एम. बनवाया और इससे महाराष्ट्र में शिवसेना की धाक कम हुई। अब यदि सरकार बनाने के लिए भाजपा को शिवसेना की जरूरत पड़ती है तो शिवसेना न सिर्फ केंद्र में ज्यादा मंत्रियों की मांग करेगी बल्कि इसके साथ ही महाराष्ट्र में भी वह बड़े भाई वाला दर्जा मांगेगी और शिवसेना का मुख्यमंत्री बनाने की शर्त पर समर्थन के लिए तैयार होगी। 
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नीतीश चाहेंगे बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार सियासत में सबसे जल्दी पलटी मारने वालों में से हैं। यदि उन्हें लगा कि जनता दल (यू) के समर्थन के बिना केंद्र में भाजपा की सरकार नहीं बन सकती तो वह इस समर्थन की कीमत के रूप में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा देने की मांग करेंगे। पार्टी के महासचिव के.सी. त्यागी ने हाल ही में बयान दिया था कि यदि जनता दल (यू) को 15 से ज्यादा सीटें मिलीं तो बिहार के लिए विशेष राज्य का दर्जा दिलाने को लेकर आसानी हो जाएगी। 
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सुखबीर मांग सकते हैं केंद्र में ज्यादा मंत्री
पिछले लोकसभा चुनाव के बाद ही 4 सीटें हासिल करने वाले अकाली दल को केंद्र की राजनीति में हाशिए पर रखा गया था और पार्टी की एक ही सांसद हरसिमरत कौर बादल को केंद्र में मंत्री बनाया गया। यदि इस बार अकाली दल के सांसदों की संख्या बढ़ी और उसके समर्थन के बिना सरकार बननी मुश्किल हुई तो अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल केंद्र में ज्यादा मंत्रियों की मांग कर सकता है। इसके अलावा वह पंजाब के लिए कर्ज माफी की अपनी पुरानी मांग को भी पूरी करने की शर्त रख सकता है। 
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पासवान को राज्यसभा और केंद्र में ज्यादा मंत्रियों की दरकार
सियासी मौसम के विशेषज्ञ समझे जाते रामविलास पासवान को पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान 6 सीटें हासिल हुई थीं और उन्हें केंद्र में सिर्फ एक मंत्री पद मिला था लेकिन इस बार यदि नतीजे उनकी आशा के अनुरूप हुए तो वह अपने समर्थन की बड़ी कीमत मांगेंगे और केंद्र में ज्यादा मंत्रियों के साथ-साथ वह केंद्र के विभागों में अपनी पार्टी के नेताओं को एडजस्ट करने की मांग रखने के साथ-साथ संसद की बड़ी कमेटियों में अपने सांसदों को महत्व दिलवाने की कोशिश करेंगे। असम से रामविलास पासवान को राज्यसभा में भेजने का वायदा भाजपा पहले ही कर चुकी है। 
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ओडिशा के लिए आर्थिक मदद चाहते हैं पटनायक
हालांकि बीजू जनता दल के अध्यक्ष और ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक किसी मोर्चे में शामिल नहीं हैं लेकिन शनिवार को उन्होंने साफ कर दिया है कि जो पार्टी ओडिशा के हित के लिए काम करेगी बी.जे.डी. का समर्थन उसी पार्टी को मिलेगा। ओडिशा में लोकसभा की 21 सीटें हैं और पिछली बार बी.जे.डी. ने इनमें से 16 सीटें जीती थीं। लिहाजा यह राज्य केंद्र की राजनीति में अहम स्थान रखता है। यदि भाजपा को नतीजों के बाद बी.जे.डी. के समर्थन की जरूरत पड़ी तो उसे इसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ेगी। यह कीमत ओडिशा को बड़ी वित्तीय मदद के रूप में भी हो सकती है। 

106 सीटों पर भाजपा के सहयोगी 
भाजपा इन चुनावों में 437 सीटों पर चुनाव लड़ रही है, इसके अलावा उसने अपने साथियों के लिए 106 सीटें छोड़ी हैं। इनमें से तमिलनाडु में भाजपा ने सहयोगियों के लिए 34, बिहार में 23, महाराष्ट्र में 23, पंजाब में 10, यू.पी. में 2, झारखंड में एक और केरल में भारत धर्म जन सेना के लिए 7 सीटें छोड़ी हैं जबकि अन्य राज्यों में छोटे सहयोगियों के लिए 6 सीटें छोड़ी गई हैं। इन चुनाव पूर्व सहयोगियों के अलावा भाजपा उन सहयोगियों तक भी पहुंच कर सकती है जो 2004 तक वाजपेयी सरकार के समय राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए.) का हिस्सा थे। 

छोटे दलों की भी लग सकती है लॉटरी
चुनाव के नतीजों के बाद यदि सरकार के गठन के लिए सदस्य कम पड़े तो उस समय एक-एक वोट की कीमत बढ़ जाएगी। ऐसे में एक-एक सांसद का प्रबंधन करना बड़ी चुनौती होगी। ऐसी स्थिति में छोटी पार्टियों के सांसदों को मंत्री पद तक के ऑफर मिल सकते हैं और समर्थन के एवज में कई छोटी पार्टियों को बड़े मंत्रालय भी दिए जा सकते हैं। 

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