नजरिया: तेलंगाना में विधानसभा भंग होने से उभरे नए संकेत PM मोदी के लिए राहत

Edited By Anil dev,Updated: 08 Sep, 2018 04:14 PM

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देश में एक देश एक चुनाव की जब भी बात होती तो सबके जहन में एक ही बात आती थी कि बीजेपी एमपी, राजस्थान,छत्तीसगढ़ यहां तक कि हरियाणा महाराष्ट्र के चुनाव एक साथ कराने के लिए दांव चल सकती है। मंत्रिमंडल जब विधानसभा भंग करने की सिफारिश करते हैं तो संस्तुति...

नेशनल डेस्क( संजीव शर्मा): देश में एक देश एक चुनाव की जब भी बात होती तो सबके जहन में एक ही बात आती थी कि बीजेपी एमपी, राजस्थान,छत्तीसगढ़ यहां तक कि हरियाणा महाराष्ट्र के चुनाव एक साथ कराने के लिए दांव चल सकती है। मंत्रिमंडल जब विधानसभा भंग करने की सिफारिश करते हैं तो संस्तुति के लिए संसद  की भूमिका समाप्त हो जाती है और चीज़ें सीधे केंद्र सरकार के हाथ में आ जाती हैं। ऐसे में भंग विधानसभा वाले राज्यों में कार्यकारी मुख्यमंत्री रहते हैं और कब चुनाव कराना है यह कुछ हद तक केंद्र सरकार के रुख पर भी निर्भरर करता है।  यानी विधानसभा भंग होने के बावजूद केंद्र चाहे तो उसकी सरकारें कार्यवाहक सीएम ही चलाते रहते हैं। इसमें कभी कभार छह माह की सामयिक अवधि भी आगे पीछे हो जाती है। यानी केंद्र अपने हिसाब से चुनाव करा सकता है। यही कारण हैं कि जब बीजेपी ने जम्मू में महबूबा से किनाराकशी की थी तो यही माना गया कि  अब बीजेपी राज्यों और लोकसभा के चुनाव एकसाथ कराना चाहती है। इसके लिए  बीजेपी शासित राज्यों की विधानसभाएं भंग कराने की चर्चा गरमाई थी, लेकिन ऐसा कुछ बीजेपी करती उससे पहले टीआरएस ने मास्टर स्ट्रोक दाग दिया।

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 केसीआर यानी के चंद्रशेखर राव ने तेलंगाना में विधानसभा भंग कर दी। अब वे कार्यवाहक मुख्यमंत्री हैं और इसके पीछे उनकी एकमात्र रणनीति लोकसभा में मोदी की छाया से बचने और अन्य राज्यों के साथ विधानसभा चुनाव करवाकर अपनी सत्ता कायम रखने की है।  कीसीआर जानते हैं  कि लोकसभा चुनाव मोदी बनाम राहुल होगा।  ऐसे में  क्षेत्रीय दलों को चुनाव प्रचार को डोमिनेट करने का उतना मौका नहीं मिलेगा। यह रिस्की हो सकता था। तेलंगाना में फिलवक्त कांग्रेस धड़ाम है और बीजेपी कहीं नहीं। उलटे टीडीपी और अन्य  छोटी पार्टियां भी टीएसआर में समाहित हो गयी हैं। वर्ष 2013 में जब चंद्रशेखर राव सीएम बने थे तो उनके पास 65  विधायक थे। अब उनके पास 90  हैं। यानी समूचे विपक्ष में केवल 29  विधायक ही हैं। 

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ऐसे में वे अगर लोकसभा चुनाव तक रुकते जो राज्य विधानसभा के चुनाव का भी समय था, तो उन्हें नुक्सान की सम्भावना ज्यादा थी। इसलिए उन्होंने यह दांव चल दिया। लेकिन इस सबके पीछे एक और समीकरण छिपा हुआ है। वो समीकरण बीजेपी के लिए राहत भरा है। अगर आप जरा सा ध्यान देकर आकलन करेंगे तो पाएंगे कि शायद (लगभग पक्का ही ) टीआरएस के रूप में बीजेपी को एक और सहयोगी मिल गया है। आंध्र को अलग राज्य के दर्जे को लेकर पेश हुए अविश्वास प्रस्ताव के दौरान संसद में टीआरएस का रुख आपको याद ही होगा। उसके बाद  चंद्रशेखर राव और मोदी का एक दूसरे की तारीफ करना भी याद होगा। तो यह भी जान लें कि  वधानसभा भंग करने से ठीक दो दिन पहले केसीआर ने मोदी से मुलाकात की थी। लोक कल्याण मार्ग के सूत्रों के अनुसार  उस मुलाकात में  विधानसभा भंग करने को लेकर  पूरी चर्चा हुई थी।  

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केसीआर केंद्र में आना चाहते हैं और राज्य में अपने बेटे को बढ़ाना चाहते हैं। बीजेपी के लिए यह दोनों हाथों में लड्ड जैसा है।  से तेलंगाना में बैठे बिठाये  कुछ सीटें मिल जाएंगी।  भले ही वे एमपी टीआरएस के ही क्यों न हों।  गठबंधन के तहत वे एनडीए के ही होंगे।  यानी गठबंधन तय है। चुनाव से पहले या फिर बाद में अब यही तय होना बचा है। तेलंगाना में लोकसभा की 17 सीटें हैं। अगर समयपूर्व चुनाव कराकर केसीआर दोबारा सत्ता हासिल कर लेते हैं तो जाहिरा तौर पर  लोकसभा चुनाव में सरकार का असर साफ़ दिखेगा। ऐसे में  जो समीकरण हैं वे स्पष्ट हैं।केसीआर मोदी के साथ जा सकते हैं बशर्ते कांग्रेसनीत गठबंधन ने कोई बड़ा तीर न मार दिया तो।यानी मोदी को जो कम पड़ेगा वो यहां से आ जाएगा।
 

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