Edited By Anil dev,Updated: 19 Mar, 2019 10:48 AM
सत्ता फिर से हासिल करने के लिए आतुर केन्द्र में भाजपा की सरकार चुनावी साल के आखिरी महीनों में भी ‘मास्टर स्ट्रोक’ खेलने से नहीं चूकी। पी.एम. नरेंद्र मोदी ने आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर हर वह ‘मास्टर स्ट्रोक’ खेला जो भाजपा को सत्ता के दरवाजे पर...
जालंधर (सूरज ठाकुर): सत्ता फिर से हासिल करने के लिए आतुर केन्द्र में भाजपा की सरकार चुनावी साल के आखिरी महीनों में भी ‘मास्टर स्ट्रोक’ खेलने से नहीं चूकी। पी.एम. नरेंद्र मोदी ने आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर हर वह ‘मास्टर स्ट्रोक’ खेला जो भाजपा को सत्ता के दरवाजे पर फिर से खड़ा कर सके। यहां हम गरमाए हुए सियासी माहौल में पी.एम. मोदी के उस ‘मास्टर स्ट्रोक’ की बात कर रहे हैं जिसमें आर्थिक रूप से कमजोर सवर्णों को 10 फीसदी आरक्षण देने के निर्णय पर मोहर लगा दी गई।
राजनीतिज्ञों की मानें तो 5 राज्यों में चुनाव हारने के बाद भाजपा को महसूस हुआ कि एस.सी.-एस.टी. मामले पर उन्हें जो नुक्सान हुआ है उसकी भरपाई के लिए सवर्ण वर्ग को 10 फीसदी आरक्षण देकर की जा सकती है। यही वजह है कि मोदी सरकार ने इस ब्रह्मास्त्र का इस्तेमाल लोकसभा चुनाव के मद्देनजर किया। मोदी ने नई तरह की सोशल इंजीनियरिंग इजाद की। लिहाजा लोकसभा में आरक्षण बिल को लाने के बाद राज्यसभा में 9 जनवरी को इसे पारित कर दिया गया। यह अलग बात है कि 14 फरवरी को पुलवामा हमले के बाद मोदी का यह ‘मास्टर स्ट्रोक’ आम जनता के आगे धुंधला गया।
इसलिए नहीं हुआ आरक्षण का विरोध
साल 2011 में मायावती ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को लिखा था जिसमें सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थाओं में गरीब सवर्णों को आरक्षण दिए जाने की वकालत की गई थी। इससे पूर्व 2009 के लोकसभा चुनाव में मायावती ने वायदा किया था कि अगर उनकी पार्टी सत्ता में आई तो अगड़ी जाति को आरक्षण देगी। मायावती ने 2015 और 2017 में भी गरीब सवर्णों को आरक्षण देने की मांग की थी। सपा के अलावा आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री और तेलगू देशम पार्टी के प्रमुख एन. चंद्रबाबू नायडू, माकपा और लोजपा भी सवर्णों को आर्थिक आधार पर आरक्षण देने की पक्षधर थी।
भारत में ऐसे शुरू हुआ आरक्षण
1882 में एजुकेशन में भारतीयों की भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए हंटर कमीशन का गठन किया गया था। महात्मा ज्योतिराव फुले ने शिक्षा से वंचित लोगों के बच्चों की शिक्षा में अनिवार्यता और उनके लिए नौकरियों में आरक्षण की मांग की थी। देश में 1902 में आरक्षण की पहली आधिकारिक अधिसूचना कोल्हापुर रियासत में जारी हुई थी जिसमें कहा गया कि पिछड़े व वंचित समुदाय के लोगों को नौकरियों में 50 फीसदी आरक्षण दिया जाए। देश के इतिहास में वंचित व पिछड़े वर्ग के लिए यह पहला आधिकारिक आदेश माना जाता है। 1908 में अंग्रेजों ने भी प्रशासन में नौकरियों में कमजोर जाति के लोगों की भागीदारी सुनिश्चित की थी।
ऐसे जन्मा ओ.बी.सी. शब्द
1953 में कालेलकर आयोग गठित किया गया था। आयोग का मुख्य कार्य था कि वह सामाजिक एवं शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की स्थिति का मूल्यांकन करे। ओ.बी.सी. शब्द का जन्म भी इसी आयोग से हुआ था।
मंडल कमीशन की पहल
पिछड़े वर्गों को आरक्षण देने की पहल 1979 में पूर्व प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के समय में हुई। आंकलन के आधार पर सीटों में आरक्षण कोटे को निर्धारित करने के लिए मंडल कमीशन का गठन किया गया। मंडल कमीशन के पास अन्य पिछड़े वर्गों ओ.बी.सी. का सही आंकड़ा नहीं था। कमीशन ने 1930 के आंकड़ों के आधार पर 1257 जातियों को पिछड़ा घोषित कर दिया और इनकी आबादी 52 फीसदी तय कर दी।
मंडल कमीशन ऐसे हुआ लागू
1980 में कमीशन ने अपनी रिपोर्ट सौंपते हुए पिछड़ी जातियों के कोटे को 22 से 49.5 फीसदी करने की सिफारिश की। इसमें ओ.बी.सी. के लिए 27 फीसदी का प्रावधान किया गया। इसके विरोध में जब सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई तो आरक्षण को जायज ठहराते हुए कोर्ट ने आदेश दिए कि आरक्षण का दायरा 50 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए। 1990 में मंडल आयोग की सिफारिशों को तत्कालीन प्रधानमंत्री विश्वनाथ प्रताप सिंह ने सरकारी नौकरियों में लागू किया था।